
288 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
1648 सन म जब दिल्ली म जमुना तट पर लाल किला या किला ये मुबारक बस पूर हूणो तत्पर ही छौ। किन्तु तब भी सामान्य लोक अर अभिजात्य वर्ग वळ लाल किला क लाल पत्थर की निर्माणकला, ‘दीवाने ख़ास, ‘दीवाने -आम , रंग महल , इम्तियाज महल , दिल्ली दरवाजा , लाहौर दरवाजा , अखबर दरवाजा, बर्खि दरवाजा, नावेल दरवाजा या हुमायूं दरवाजा की प्रशंसा करदा अघाणा नि छा। इन इन उपमा तै समय प्रचलित ह्वे कि उपमा अलंकार बि लज्जाणु छौ कि म्यार इथगा प्रकार !
बादशाह शाहजहां प्रसन्न छौ कि द्वी तीन दिन म जब महल निर्मित ह्वे जालो तो बुजुर्गों , दीवानों , उस्तादों तैं पूछिक उचित दिन पर महल की भितर -पैंछ करे जाव।
बस कुछ कार्य मथि बच्युं छौ। सी बि द्वी चार दिन म ह्वे इ जाल।
जुम्मा क दुसर दिन छौ कि क्वी बि शिल्पी , इख तक कि चीफ आर्किटेक्ट उस्ताद अहमद लाहौरी अंतर्धान ह्वे गेन। पत्थर चण , माटो मिलाण वळ तक अंतर्धान ह्वे गेन।
एक दिन राज कर्मचारी , पर्यवेक्षकों न प्रतीक्षा कार कि क्वी विशेष कारण ह्वे होलु कि शिल्पी अर बड़ शिल्पी निर्माण कार्य हेतु नि ऐ होला। जब अतवार (ऐतवार ) , परदिन (सोमवार ) को बि शिल्पी अर श्रमिक नि ऐन तो बात बादशाह एक पंहुचाये गे।
शाहजहां न शीघ्रता पूर्वक अपर दीवानों बजीरों की बैठक बुलाई अर समस्या चर्चा हेतु सबुक समिण रखें गे। और तो और लाल किला का प्रमुख आर्किटेक्ट उस्ताद अहमद लाहोरी क अंतर्धान हूण सबसे आश्चर्यजनक छौ। उस्ताद अहमद लाहौरी तो शाहजहां क नाकौ बाळ छौ। उस्ताद लाहौरी अर बादशाह घंटों अरबी वास्तु अर भारतीय वास्तु पर छ्वीं लगांदा छा तो भि दुयुं क पुटुक नि भरेंदो छौ।
बीरबल को नाती पंडित सांभरमल न सलाह दे कि उस्ताद अहमद लाहौरी क परिवार से इ पुछे जाय। जब दूत उस्ताद लाहौरी डेर गे तो घर म क्वी नि मील.
बात बड़ी गंभीर छे तो चारों ओर गुप्तचर दौड़ाये गेन। वास्तु शास्त्री उस्ताद अहमद लाहौरी अर कुछ मुख्य शिल्पी पकड़ म ऐ गेन. वास्तव म यी लोग प्रसिद्ध छा तो पछ्याण म ऐ गेन अर पकड़े गेन।
मुश्क बाँधी सब तैं बादशाह शाहजहां क अस्थायी सभा (दीवाने ख़ास ) म बादशाह क समिण प्रस्तुत करे गे। बादशाह न तुरंत सब्युं मुश्क (डोर से हथ बंधाई ) खोलणो आदेश देन।
तब उस्ताद अहमद लाहौरी व अन्य से ज्ञान ह्वे कि सब तै आगरा म ताज महल निर्माण उपरान्त शिल्पियों क हाथ कटणो घटना याद छे तो सब लाल किला क अधूरा कार्य छोड़ि भाग गेन।
बादशाह क मंत्रिओं न ढाढस दे कि कै बि शिल्पी क हथ नि कटे जाल तो कुछ शिल्पी वापस निर्माण कार्य पर ऐन अर लाल किला को निर्माण सम्पन कार।
किन्तु जनि लाल किला क भितर पैंछि पूरी ह्वे तनि धीरे धीरे चुपके चुपके शिल्पियों तै खोज खोजी तौंक हथ कट्याण शुरू ह्वे गे। जो उत्तराखंड अर हिमाचल क ओर चल गे छा वो शिल्पी बच गेन।
बुलण वळ तो इन बि बुल्दन कि प्रमुख वास्तु शास्त्री उस्ताद अहमद लाहौरी व अन्यों क तो हथ इ ना जीव बि कटे गे छौ कि यी वास्तु विज्ञ लाल किला निर्माण कला व तकनीक कै हौर तैं नि सिखाई साकन।
बुलण वळ बुल्दन कि ताजमहल अर लाल किला क शिल्पियों क हथ कटणो जन अमानुषिक कार्य तै जनता न बि अपनायी अर क्वाठा भितर निर्माता अपर ओडुं हथ कटण लग गेन। तर्क करण वळ तर्क दींदन कि हिन्दू शाशक तो ओडुं क परिवार पाळणो गाँव का गांव तौंक परिवार तै दे दींदा छ किंतु हिंसक प्रवृतिक मुस्लिमो क राज म ओडुं हथ कटाई क रिवाज शुरू ह्वे जो स्वतन्त्रता दिन तक चलदो राई। हे राम ! इथगा निर्दई रिवाज !
(कल्पित केवल अमानुषिक संस्कृति दिखाणो हेतुकथा रचे गे )