
286 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
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नैम सारण्य म तब ऋषियों क सम्मेलन हूणु छौ। ऋषियों न माणा क गणेश उड़्यार का व्यास श्री तैं पूछ , ” महामुनि ! महाज्ञानी ! विष्णु भक्ति ुतकर्षक ! भगवान बद्रीनाथ की कथा सुणावो। “
विष्णु चरित्र प्रसारक न तब ब्वाल , ” उन तो बद्रीनाथ भगवान की चार पांच कथा प्रचलन म छन। आज मि एक कथा सुणांदु , शेष अन्य दिन सुणौलु। तब व्यास श्री न इन कथा सुणायी –
एक दैं एक खांद पींद घर म कुछ कलह पैदा ह्वे गे। वीं मौक बैक पुछेर म गे। पुछेर न बतै कि तुमन भगवान बद्रीनाथ यात्रा क उठाणु उठै छौ किंतु दस वर्ष ह्वे गेन किंतु तुमन यात्रा नि कार। बद्रीनाथ की यात्रा से पैल घडेळा अवश्य धरिन।
बद्रीनाथ श्री क घडेळा धरे गे तो जागरी न या कथा सूणायी –
एक समय भगवान विष्णु तपस्या म घनघोर लीन छा। अचाण चक शक्तिशाली हिमपात शुरू ह्वे गे। ह्यूं से भगवान विष्णु ढकेण लग़ गेन। मां लक्ष्मी तैं अति चिंता ह्वे। लक्ष्मी तुरंत बेर बृक्ष बणी गे अर हिमपात तैं अपर मथि लीण मिसे गे। भगवान विष्णु ह्यूं से पूरी प्रकार से बच गेन। बेर बृक्ष घर को कार्य करणु छौ। भगवान विष्णु क तपस्या भंग नि ह्वे। मां लक्ष्मी स्वयं विष्णु श्री तैं हिमपात , जड्डू , घाम बरखा से बचाणो हेतु तपस्यालीन ह्वे गे। वर्षों उपरान्त जब भगवान विष्णु तपस्या से निवृत ह्वेन तो तौंन पायी कि मां लक्ष्मी ह्युं से ढकीं च। विष्णु श्री समज गेन कि क्या ह्वे। तब भगवान विष्णु न लक्ष्मी श्री से ब्वाल , ” भार्गवी ! तीन मेरो जन हि कठोर तपस्या कार। अतः ये स्थान म तेरी अर मेरी दगड़ी पूजा ह्वेलि। यो स्थान विष्णु जगत को सबसे पुण्यवान स्थल होलु। भक्त सैकड़ों मील से ये स्थल म पूजा हेतु आला. चूंकि तीन बदरी (बेर ) रूप धौरी मेरी तपस्या म सहायता दे तो आज से ये मेरो नाम ‘बदरी को नाथ ‘ अर्थात ‘बद्री नाथ . बुले जालो।