
290 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
नैमसारण्य म माणा गणेश उड़्यार का ऋषि व्यास उत्तराखंड क पौराणिक कथा सुणाना छा तो मुनि विश्वामित्र क प्रार्थना पर माणा का ऋषि व्यास न केदारनाथ संबधी या कथा सुणाई –
एक समय की बात च बल भगवान विष्णु शेषनाग म विश्राम अवस्था म पड़्यां छा कमल पुष्प से लक्ष्मी क गल्वड़ सहलाणा छा कि जगत सूचना केंद्र नारद ऋषि तख पौंछि गेन। नारद श्री न विष्णु श्री तैं मित्रवत उलाहना दींद ब्वाल , ” विष्णु तुम प्रत्येक समय शेष नाग म विश्राम करदा अर मां लक्ष्मी तै प्रसन्न करण म समय वयवय करणा रौंदा। यु मानव हित हेतु भौत इ निष्कृष्ट उदाहरण च। तुम तैं कुछ अर्थपूर्ण कार्य करण चयेंद . ” अर उलाहना देक मुनिश्रेष्ठ चल गेन।
विष्णु श्री न बि मनन कार तो पायी कि वूं तैं पृथ्वी लोक म कार्य करण चयेंद। पृथ्वी म घर क शोध म वो हिमालय म ऐन अर नर नारायण पर्वत मध्य बद्री स्थल म तौं एक घर दिखे जो वूंक स्वप्न अनुसार गृह स्थल छौ। मानव हित हेतु साधना कुण विष्णु श्री तैं यू घौर सर्व श्र्रेष्ठ लग। घर भितर छिरकदा इ विष्णु श्री तैं ज्ञान ह्वे गे कि यू घर शिव अर पार्वती को च। शिव को क्रोध से विष्णु विज्ञ छा कि शिव यदि क्रोधित ह्वे जावन तो वो अपर गौळ कटण से बि भयभीत नि हूंदन।
वै समय शिव पार्वती विहार हेतु भैर जयां छा।
विष्णु तो मायावी छा। तौन एक बच्चा रूप धार अर चौक म बैठ गेन जनि शिव पार्वती बौड़ी ऐन तो बाल विष्णु तैं रूंद द्याख तो मां पार्वती क ममत्व जग गे। पार्वती रूंद बच्चा तैं उठाणो झुक तो भविष्य द्रष्टा महादेव न रोक अर ब्वाल , ” ये बच्चा तैं हथ नि लगै। “
पररवती न उलाहना दे , “कतना करूड़ (क्रूर ) छा तुम निरीह बच्चा १ मेरी तो ममत्व जग गे। “
शिवजी न तर्क दे कि इथगा हिमपात अर तीब्र शीत म यु बच्चा इखुलि , बिन ब्वे बाब क च अर सबसे बड़ो प्रश्न च यु बच्चा हमर चौक म कन आयी।
किन्तु पार्वती तो स्त्री छे तो ममता अर करुणा क घर छे पार्वती। बच्चा तैं घर भितर लीग , भितर देव शाकाहारी बच्चा लैक भोजन कहलायी , याक को पौष्टिक दूध पिलाई।
कुछ समय उपरान्त शिव पार्वती निकट क गर्म जल कुण्ड म नयाणो हेतु गेन तो जब नयेक ऐन तो तौंक घर क द्वार भितर बिटेन बंद छा। पार्वती बि चकित छे कि भितर बिटेन कपाट बंद कनै ह्वे अर कैन कार।
शिव जिन उलाहना दे , ” मीन बोल छौ ना बच्चा पर हथ नि लगा. सि देख ली तैंन भितर बिटेन कपाट बंद कर आलिन। “
पार्वती न शिव श्री से पूछ , ” अब हम क्या करवां ?’
” चूँकि तेरो यू दत्तक पुत्र च तो मि चाह क बि ये तैं भस्म नि कौर सकदो। ” शिव क बोल छ , ” ेकी विकल्प च हम कखि हौर वास करवां ” शिवश्री न बोल पूर करिन।
अब द्वी अपर घर ह्वेक बि निघर का ह्वे गेन अर उचित घर क शोध म घुमण लग गेन। शिव श्री तो उखी रौंदन जख नदी या गदन बगणु हो। जख नदी या गदन नि बौगो उख शिवश्री नि रौंदन। तो शिवश्री अर मां श्री भटकदा भटकदा मंदाकिनी तट पर तेईस हजार फ़ीट उच्च स्थान म गेन। शिवश्री न स्थल को नाम केदार धार तो पार्वती श्री न केदारेश्वर नाम धार । जब गढ़वाळ राजा पर नाथ ऋषियों क प्रभाव पोड़ तो केदारेश्वर तैं केदारनाथ बुलणो संस्कृति शुरू ह्वे