
उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
294 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
शकुंतला -दुष्यंत पुत्र सम्राट भरत क पांच पुत्र छा। सब ओर से विचार कौरि निर्णय ले कि चूँकि म्यार पुत्र शासन करण लैक नि छन तो ऊंन शोध कार अर वृहस्पति क अवैध पुत्र विरथ तैं अपर उत्तराधिकारी चुन। विरथ महान राजा प्रमाणित ह्वेन।
विथक क चौदवीं पीढ़ी म शांतुन पैदा ह्वेन ( पांडव -कौरवों पड़ददा)। शान्तिं पिछ्ला जन्म म महाभिषक छा।
महाभिषक को पतन
पूर्ण रूप से सिद्ध व्हेका महाभिषेक देवलोक चल गे छा। देवलोक म एक दिन महाभिषेक इंद्र की सभा म अपर स्थान म बैठ्यां छा कि तबि गंगा ऐ गे। गंगा क असावधानी कारण गंगा क पल्लू (उत्तरीय ) तौळ ऐ गे तो गंगा क मथ्या भाग नंगा ह्वे गे। देवलोक का आचार संहिता अनुसार पुरषों न आँख तौळ कार किन्तु महाभिषेक देवलोक का निर्णय दे , नियम से अजाण गंगा तैं घुरणा रैन। गंगा तैं महाभिषेक क घुरण म आनंद आयी।
यीं घटना पर इंद्र न अपर निर्णय दे,” महाभिषेक तुम तैं पुनः मनुष्य बणन पोड़ल अर पुनः सिद्धि प्राप्त करण पोड़ल कि तुम देवलोक लैक ह्वे जयां। गंगा तुम न बि अशुद्ध आचरण म आनंद ले। त्वे बि भूलोक जाण पोड़ल तख मनिखों सुख , पीड़ा सहन करण पोड़ल। जब तुम अंहकार मुक्त ह्वे जैली तो देवलोक ऐ जै ! “
शांतनु अर गंगा मिलन , भीष्म जन्म
महाभिषे को जन्म कुरु वंश (भरत क पंद्रहवीं पीढ़ी ) म ह्वे। शांतनु तै पिछले जन्म स्मरण नि छौ किन्तु गंगा तैं छौ। शांतनु क एक ढब छौ कि जब शिकार करणो जांद छौ तो शिकार को अतिरिक्त कै पर ध्यान नि जांद छौ। गंगा क छाल पर शिकार करणा बि छा कुरु सम्राट किन्तु ऊंक ध्यान बगदी गंगा जिना नि गे। एक दिन तौं तीस लग अर सेवक नि हूण से सि गंगा जिना गेन। गंगा स्त्री रूप म छे। जनि शांतनु न गंगा देख वो गंगा पर मन , बुद्धि अर अहम से आकर्षित ह्वे गेन। शांतनु न प्रेम विनती व ब्यौ को प्रस्ताव गंगा तैं दे। गंगा उद्यत तो ह्वे गे किन्तु तैन एक शर्त राख कि मि जो बि करलु तुम प्रश्न नि पुच्छीला। प्रेम म शत प्रतिशत कामातुर शांतनु न शर्त स्वीकार कौर दे। दुयुं व्यू ह्वे। गंगा अति बिगरैली बांद छे।
विवाहोपरांत तौंक एक पुत्र ह्वे तो गंगा न सीधा तै पुत्र तैं गंगा म बगै दे। शांतनु कुछ बुलण चाणो छौ किंतु शर्तानुसार पुछ नि सौक। तौंक दूसर पुत्र बि ह्वे तो गंगा न सि बि गंगा म बगै दे। दुखी शांतनु प्रश्न नि पूछ साक कि कखि गंगा तै छोड़ि नि चल जा। इनि सात पुत्र ह्वेन अर गंगा न सातों तैं नदी म बौगै दे। जब आठौं पुत्र पैदा ह्वे तो गंगा बौगाणो जाणी इ छे कि शांतनु न बच्चा नदी म बौगाणो कारण पूछ।
तब गंगा न एक पौराणिक कथा सुनायीं किस्वर्गलोक का आठ वसुओं न गुरु वशिष्ठ तेन क्रोधित कार तो वशिष्ठ न श्रम दे कि तुम तैं मनुष्य रूप म भूलोक म जन्म लीण पोड़ल। जब वसुओं तेन ज्ञान ह्वे कि मी (गंगा ) बि भूलोक म जन्म लीण वळ छौं तो तौन में से प्रार्थना कौर कि भूलोक म मि तौं तैं जन्म ही नि द्यों अपितु हमर मनिख जीवन छुट से छुट हो। यि सात बच्चा वाशु ही छा। आठवां वाशु यो च जैन वशिष्ठ क गौड़ चुरयाण सबसे बिंडी भाग ले छौ। इलै ये तैं लम्बो समय भूमि म व्यतीत करण पोड़ल।
शांतनु न शर्त को उल्लंघन कौर छौ तो गंगा आठवां बच्चा लेक अंतर्धान ह्वे गे। गंगा दगड़ म नवजात बच्चा तैं बि ल्ही गे।
16 वर्ष उपरान्त गंगा शांतनु समिण एक युवा साहसी वीर युवा तैं लेक प्रकट ह्वे तेक नाम देवव्रत छौ अर दुयूं क पुत्र छौ। देवव्रत अग्नै भीष्म नाम से प्रसिद्ध ह्वे।