
283 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
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डाकू गब्बर डाकू परिवारों पर बि उनि छौ जनि धौलिया, कुतरु , मौसी , रहीम चाचा या कालिया सांभा पर छौ। ठाकुर बलदेव प्रकरण से भौत पैलि हि डाकू गब्बर सिंग न आर्य समाज पंथ अंगीकार कर याल छौ। गब्बर सिंग क मनण छौ कि डाकुओं कुण आर्य समाज पंथ से अति सुविधा मिल्दन जनकि डाका डळणो क्वी मुहूर्त नि दिखण पढ़दी , डाका डळण जांद दैं डाकू पत्नी तैं पति की आरती नि उतरण पड़दी अनावश्यक तंत्र मंत्र , धात घळण , घडेळों से दूर रौंदन अब डाकू परिवार। बस एकी हीनता छे कि हवन करण पड़द छौ अर हवन की गंध व धुंवा पुलिस वळों तै लग जांद छौ।
पंथ का नियम धियम मनण अर मनवाण म गबर सिंग इनि तत्पर रौंद छौ जन गाँव से अनाज क डड्वार मंगण म। जरा बि दाएं बाएं ना। अब डाकू लोक हथ पर काळ सफेद दाग नि पैर सकद छा जो बि धागा होला वो सं पंथ अंगीकार करण से पैल। काळ टीका लगाण जब डाकुओं कुण अनिवार्य नि छौ। जै काली की ध्वनि गड़ण अब डाकुओं कुण अनिवार्य नि छौ।
पंथ का नियम पालन डाकू इ ना तौंक परिवारों तै मनण आवश्यक छौ। जब बिटेन गब्बर सिंग मंडली न पंथ स्वीकार कार तब बिटेन डाकुओं क गाँव म कर्मकांडी बामण , पुछेर , जागरी , झाड़ ताड़ दीण वळ , पुजारियों , डळ्यों आण बिलकुल बंद ह्वे गे।
एक दिन कालिया क नौन बीमार ह्वे गे। दवा क्या दारु पिलाण से बि स्वस्थ नि ह्वे , कालिया की ब्वारी छुप छुप के दूर एक गाँव म पुछेर म पौंछ पुछेर न बताई कि भौत दिनों से देवी नि पुजे तो देवी क घडेळआ आवश्यक च अर एक खाड़ू की बलि बि आवश्यक च।
समस्या यि छे कि गब्बर सिंग न तो डाकू गाँव म घडेळा -उडेळा सब बंद करे दे छा अर ढिंढोरा पिटवायुं छौ कि जु क्वी डाकू पंथ नियम तोड़ल वो जिंदगी से हथ बि छोड़ल। तो मृत्यु क भय से क्वी पंथ नियम विरुद्ध कर्मकांड नि करदो छौ।
कालिया की ब्वारी अर सास कालिया क पैथर पड़ गेन कि देवी पुजै हेतु घड्यळ धरण आवश्यक च तो गब्बर सिंग की स्वीककार्यता आवश्यक च। कालिया पर भयंकर दबाब पोड़ की वो गब्बर सिंग की अनुमति ले ल्यावो। कालिया न समजायी कि गब्बर सिंगन नियम बणै ऐन तो गब्बर नियम परिवर्तित कतै नि करद। एक दैं वैन नियम बणै कि पाख चंठ/कांठ म साम्भा राल तो साम्भा कथगा बि अस्वस्थ राओ तो भी चोटी पर साम्भा ही बैठद।
बच्चा बिंडी अस्वस्थ हूण लग गे तो सांस कौरि कालिया गब्बर सिंग म गे कि बच्चा अस्वस्थ च तो देवी पुजैक घडेळा धरणों आज्ञा द्यावो। गब्बर सिंग तो गब्बर सिंग छौ क्वी भाना डाकू तो नि छौ तो वैन बीस पचीस मां बैणी गाळी सुणैन अर अंतम ब्वाल , ” एक बच्चा मोर बि जालो तो गब्बर क दल म डाकुओं आण समाप्त नि होलु। आठ दस गाँवों म सैकड़ों आजीविका हीन युवा पंगत म बैठ्यां छन डाकू बणनो। जा मरण दे वै बच्चा तै जैन देवी क घडेला से बचण , “
द्वी तीन दिन म कालिया क बच्चा मोर गे। गब्बर पुळेणु छौ कि वैन पंथ क नियम नि तोड़िन।
कुछ दिन उपरान्त साम्भा क भै भैरों डाकू क बेटी अस्वस्थ ह्वे। कुछ दिन वैद्यों क औषधि दिए गे किंतु बेटि स्वस्थ नि ह्वे। भैरों डाकू की कज्याण लुकिक दूर पुछेर म गे तो बक्कि न नरसिंग क द्वासः लग्युं च। नरसिंग क घड्यळ धरण अर खाड़ू मरण पोड़ल। साम्बा अर भैरों द्वी गब्बर सिंग म घडेळा धरणो आज्ञा लीणो गेन तो रोष म गब्बर न भैरों क एक आँख ही फोड़ दे।
बेटी बि मोर गे। गब्बर सिंग न सभी डाकुओं मध्य अपर पीठ थपथपाई कि पंथ क नियम नि टूटेन। कालिया , भैरों अर साम्भा मन इ मन म गाळी कि गब्बर की जड़ नाश ह्वे जैन।
कुछ दिनों उपरान्त एक रात गब्बर सींग क नौन क स्वास्थ्य अति गिर गे। रात वैद्य बुलाये गे। वैद्य न औषधि देन किंतु बच्चा क अखळ (उलटी ) बंद नि ह्वेन। वैद्य गब्बर क घर म राई। दुसर संध्या म बच्चा मरणासन्न ह्वे तो गब्बर सिंग क कज्याणी अर वैद्य न राय दे कि पुछेर म जावो। कुछ समय उपरान्त जब बच्चा क इखारी सांस लीण मिसे गे तो गब्बर सिंग न द्वी डाकू ठाकुर बदलदेव सिंह क गांव बिटेन पुछेर लाणो भेज। पुछेर आयी वैन कैंतुराओं दोष बताई अर घडेळा धरणों उठाणो निकाळणो ब्वाल। जनि कैंतुरा नचौणो उठाणो धार कि गब्बर सिंघ क बच्चा आंख उफारण लग गे।
दुसर दिन कैंतुरा नचाण वळ जाएगी बुलैक घडेळा धरे गे। द्वी बुगठया कटे गेन।
कैक बि गब्बर सिंग तै पुछणो सांस नि छौ कि पुछे जाय कि अफु पर बिपदा आयी तो पंथ का सब नियम तोड़े गेन। ये से बड़ो पाखं क्या होलु ?