278 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
मि तब देहरादून म चुखुमोला म रौंद छौ। पढ़ाकू छौ तो ‘जब सब लोग सोते हैं तब योगी जगता है ‘ क पदचिन्हों पर चलदो रात भौत देर तक पढ़नु रौंद छौ या सुबेर जल्दी जगिक पढ़ण शुरू कर दींदो छौ।
एक रात मि सुबेर रात साढ़े तीन बजि बिजि ग्यों। मीन चा बणै अर जनि कप ऊंठ पर लगै कि एक छत से या पैलि मंजिल से ध्वनि सुणै दे , ” ठा ले , ठा ले बे , ठा ले। “
अर उना से या ध्वनि आयी कि मुहल्ला क दस बीस घरों से बि ,”ठा ले , ठा ले बे , ठा ले। ” आण लग गे।
यूं ध्वनियों मध्य खरखराती क्रोधित ध्वनि ऐ –
” हराम के पिल्लो तुमरी सुबै सुबै बि मड़घट चल गे ?”
” अपर ब्वे का मैसो सुबेर सुबेर कन लग तुमर डांडी ?”
” अपर बैण्यूं मैस जा तुमर बुबा तै ठा लेन। “
” रांड को नौन मरदा बि नीं अर ठा ले ठा ले बुलणा छन , तुमर ब्वे तैं ज्यूंरा उठाल “
अर मि बि चितै ग्यों कि या ध्वनि रिबतु की च। अब मुहल्ला से कति ध्वनि हौर ऐन , ” ठा ले , ठा ले बे , ठा ले। “
प्रत्येक ध्वनि क उत्तर म रिबतु की बनि बनि गाळी बि सुण्याणि छे। यदि तब मि साहित्यकार हूंदो तो गढ़वळि गाळी क शब्दकोश त्यार कर लींदो -इन इन गाळी रिबतु दीणो छौ जो कम प्रचलन म ह्वे गे छा। मुहल्ला वळ गाळ्यूं से क्रोधित नि हूणा छा अपितु गाळ्यूं से आनंदित जि हूणा छा।
बिचर रिबतु सही तो गाळी दीणू छौ कि लोक साढ़े तीन बजि सुबेर बि चिरड़ाणा छा। दिन या स्याम तो उचित किंतु सुबेर साढ़े तीन बजि बि ?
लोगुं दृष्टि नि पोड़ यांको कारण तो रिबतु साढ़े तीन बजि सुबेर उठिक रोड पर आयी कि रोड से कुछ लखड़ उठाये जावन। दिन म तो सरा मुहल्ला क बच्चा रिबतु देखिक चिल्लाण मिसे जांदन ” ठा ले , ठा ले बे , ठा ले। ” चाहे वो लखड़ उठा या ना।
रिबतु बि अपर बड़ी जिमदारी छोड़ी देहरादून भाग्य बढ़ानो ऐ छौ। पढ़यां लिख्यां युवाओं तै उचित आजीविका नि मिल्दि छे तो रिबतु क सपना क्या हूंद पूर। प्रतिदिन की ध्याड़ी पर आजीविका चलाणु छौ। मुहल्ला म गंदो नाळो किनारा पर दस बाई दस की एक कुठड़ी म रौंद छौ। स्टोव लेणो औकात बि नि छे किलेकि घर जि मनीऑडर भिजण पड़द छौ। तो आग जळाणो हेतु रस्ता म पड़्यां लकड़ी छुट मुट तख्ती , डुंडी सीढ़ी लकड़ी , पट्ठा , बॉक्स आदि उठैक घर ले आंदो छौ। गुजर बसर करणु छौ। मुहल्ला वळों तैं रिबतु की यु सुभाव पता छौ। कति तो वै तै अफिक लखड़ बि दीण लग गे छा। एक दिन क्या ह्वे कि एक मौक गेट भितर एक टिक्वा जन लखड़ खड़ धर्युं छौ तो रिबतु लालच म ऐ अर चुपके से लखड़ उठैक लै गे। रिबतु क दुर्भाग्य कि एक युवा अपर छत से रिबतु क यु करतब दिखणु छौ तो वो जोर से चिल्लाई , ” ठा ले , ठा ले ,बेटा कोई नहीं देख रिया “
अर कुछ हौर युवाओं न यो सूण , ” ठा ले , ठा ले ,बेटा कोई नहीं देख रिया “
तो अब जब बि रिबतु तौंक समिण लखड़ उठाओ तो युवा धै लगाण शुरू कर द्यावन ” ठा ले , ठा ले ,बेटा कोई नहीं देख रिया “
कुछ दिन तो रिबतु न सहन कार किन्तु कुछ दिन उपरान्त चिरड़याण मिसे गे अर गाळी दीण मिसे गे। युवा अर बच्चों तै गाळी से आनंद आण लग गे। अब बच्चा अर युवा ही ना बुड्या बि गाळी सुणनो हेतु जनि रिबतु द्याखन तो ” ठा ले , ठा ले ,” चिल्लाण लग जावन। बिचारो कुण दिन म आण जाण ही कठिन ह्वे गे
आज सुबेर वो लखड़ निड़ाणो आयी कि क्वी नि द्याखल पर यीं सुबेर बि बिचर तैं ” ठा ले , ठा ले ,बेटा कोई नहीं देख रिया ” सुणनो मील।
ये दिन क उपरान्त मीन ना तो रिबतु द्याख ना ही या ध्वनि सूण. ” ठा ले , ठा ले ,बेटा कोई नहीं देख रिया “