१८वीं सदि मा प्रबल गढ़वाळ राज्या परसिद्ध अर जण्या-मण्या दीवान कृपाराम डोभाल का वंशज श्रीराम डोभाल जी का यख 26 जनवरी, सन् 1901 मा विद्यावती जी कु जलम ह्वे। ब्वे को नौं सीता देवी छौ। सि टीरी गढ़वाळै अकरी पट्या सैंज गौं मा जलमिन। वूंका परनाना जी माराजा बिलासपुरा ( हिमाचल) राजपुरोहित छा। जौंकि असमै मिरत्यु ह्वेगे। नना-ननिन विद्यावती तैं सैंति-पाळि, हालांकि सि बि भौत जल्दि परलोक चलि गेन। वूंका बाद मामौंन विद्यावती अर वूंकि चार बड़ि बैण्यौं कु लालन-पालन करि।
वे बग्तै सामंती परथै वजै से विद्यावती जी तैं पढ़ै से वंचित रैण पड़ि। वन त एक राजकीय कन्या पाठशाला मा कुछ दिन जाणौ मौका नौनि विद्यावती तैं मिलि, जांसे वूंका मन मा पढ़णै उत्कट इच्छा जगिगे। पांच-छै दिना बाद यूंका चचा जी ऐन अर यूं तैं अपणा गौं सैंज ल्हीगिन।
साढ़ै बारा सालै उमर मा मामा अर बड़ि मौसिन विद्यावती कु ब्यो सकलाना घराना मा करै। ताल्लुकेदार मुआफीदार साहबराय महेन्द्रदत्त सकलानी गढ़वाळ राज्या अंतर्गत उच्च अधिकारी छा। महेन्द्रदत्त सकलानी कु दर्जा टीरी रज्जा बाद दुसरो छौ। वूंका पैलि घौरवाळि से 11 बच्चा छा। सौर्यास मा सबि परकारै संपन्नता छै, कै बि तरां कि कमि-कसर नि छै । विद्यावती जी अर वूंका पति कि उमर मा काफि सालौ फरक छौ। ब्यो का बाद बि विद्यावती जी कि पढ़णै य लगन बुढयांदि दौं तलक जन्योतनि बणी रै। 28 बरसै उमर तलक विद्यावती जी नौ बच्चौं कि ब्वे बणिगि छा। यूं मदे सिरफ द्वी नौनि अर एक नौनु ज्यूंदा रैन। 28 मार्च, 1928 मा विद्यावती जी का पति कु बि अचणचक निधन ह्वेगे।
एक त ब्वे-बाबै छत्रछाया पैलि हि उठिगे छै अर वे पर सौतेलु कुटुम। विद्यावती जी सणि विधवै जिंदगी बितौण भौत कठिण ह्वेगे। अफु तैं असहाय समझण लगिन। हालांकि सि हिकमत बिटोळी अफु से सिरफ एक बर्स छोटि अपणि सौतेलि बेटी मंगला देवी का दगड़ा हि पढ़ण लगिन। घौरा कामकाजा वास्ता नौकर-चाकर भौत छा। ब्वे विद्यावती अर मंगला देवी का बीच गैरु प्रेम छौ। सन् 1918-19 बिटि विद्यावती जीन टूट्यां-फूट्यां शब्दों मा मना भाव परगट कन्ना वास्ता लेख लिखण अर छपणौ भेजण सुरु करिन। हँ, अपणा नौं का अगनै सकलानी नि लिखिक डोभाल लिखद छा किलैकि वे जमाना मा जनान्यूं तैं लिखणै आजादी नि छै। ना ही जनान्यूं का लिखणौ रिवाज छौ। विद्यावती जी जल्द हि बिना इस्कूल जयां इतगा पढ़ि -लिखि गेन कि शिक्षिका बणि गेन।
विद्यावती जीन द्वी दौं कन्या गुरुकुल मा अध्यापन करि। हरिद्वार मा बि द्वी इस्कुल्यूं मा पढ़ायि। जब यूंको मनोबल बढ़ि त सन् 1934 मा मूलचंद कंपनी मा हवै जाज मा विमान परिचारिका बणिन। वे जमाना मा घोर रूढ़िवादि विचारौं वाळा मनख्यूं का परति यु काम हरहाल मा वर्जित छौ, फेर बि सूरो सांसु करी सदानि अगनै बढ़ण वाळि विद्यावतिन विमान परिचारिका पद पर काम करि। दुर्भाग से जाज मा आग लगणा कारण हादसा होण से परियोजना नाकाम रै अर बंद ह्वेगे।
येका बाद 1935-36 मा छै मैना तलक द्वी कन्या पाठशालों मा अध्यापिका रैन अर 1937 मा हि पंजाबा बहावलपुर राज्य मा प्रधानाध्यापिका का रूप मा भौत हौंस-रौंस का दगड़ा काम करि। सौकार कुटुम्वी बेटि -ब्वारियों सणि धार्मिक ग्रंथ पढ़ौणौ कारिज बि बरसौं तलक करदि रैन। विद्यावती जी मिचनाबाद मा हि 22 अगस्त 1947 तलक रैन। सि अपणा नौं का अगनै ‘समाजपीड़िता’ लिखदा छा। अपणा नौना तैं सेना मा अफसर बणौण वूंका संघर्षपूर्ण जीवनै बड़ि उपलब्धि छै। साहित्यकार श्री मदन मोहन बहुखण्डी जी से एक मुखाभेंट मा विद्यावती जी बोलदिन, ”पुलिस मेरा पिछनै घूमणी छै पर मेरा भाषण सिरफ समाज सुधार अर नारी उत्थाना बारा मा होंदा छा। इलै कांग्रेसी बि मेरा धड़्वे ह्वेगेन। ”
विद्यावती जीन जिंदगी भर साहित्य लिखण अर जनान्यूं तैं अगनै बढ़ौण मा अपणु अमूल्य योगदान दीनि। सि सदानि शिक्षा प्रचार-प्रसार मा लग्यां रैन। वूंकु मन चित्रकारि मा खूब रमद छौ। कुछ चित्र वूंकि नौनि वसुंधरा जीन अपणि ब्वे कि श्रद्धांजलि पुस्तिका (1988) मा बि छपवैन। विद्यावती जी तैं बाड़ि-सग्वाड़्यौं कु बि खूब शौक छौ। सि धौन-चौन से बि बिज्यां प्यार करदा छा। जब तलक सि महेन्द्रपुर मा रैन वूंन कुकूर, बिराळा, गौड़ि पाळिन। विद्यावती जीन हिंदी, संस्कृत अर धार्मिक पोथ्यों का अलावा मुस्लिम समाजै कुरीत्यौं का विरोधी पंजाबी शायर मौलाना अल्ताफ हुसैन ‘हाली’ को साहित्य पढ़ि। वूंकि द्वी किताबों कु उर्दू से हिंदी मा अनुवाद बि करि। विद्यावती जी जब हरिद्वार रैन तब सन् 1933 मा लाहौर अर क्वेटै गढ़वाळि सामाजिक संस्थौं का संपर्क मा ऐन। आजादी लड़ै मा बि वूंको बड़ी भारि योगदान छ। सन् 1947 मा जब देस आजाद ह्वे तब पाकिस्तान बण्न पर भौत बुरा हाल ह्वेन। वख जिकुड़ि झकोळि देण वाळा दृश्य देखिन। जै घौर मा सि रैंदा छा वेका नजीक रैण वाळा मुसलमान भै-बंदौंन वूंकि मदत करि, ये तरां से वूंकि जान बचि सकि। मंगण्या बणीक आठ मैना अबोहर मा रैन। बाद मा देरादूण ऐक रिफ्यूजी इस्कूल काबुल हाउस मा पढ़ायि।
सन् 1923 बिटि यूंकि लिखीं कविता इलाहाबादै ‘चांद’, ‘गृहलक्ष्मी’ अर मेरठ बिटि ‘सुकवि’ मा छपण बैठिन। विद्यावती जीन मई सन् 1928 मा ‘अमृत की बूंदें’ अर ‘पगली के प्रलाप’ किताबों कु प्रकाशन करि। येका बाद तीन ‘गढ़वाली गीतिका'( 1975), ‘माँ की ममता’, ‘बाल विधवा’, स्वर्गीय मंगला देवी की जीवनी’, ‘श्रद्धांजलि’, ‘खण्डूड़ी कुल की विभूतियाँ’ अर ‘एवरेस्ट के देवता’ जन किताब लिखिन। गढ़वाली प्रेसा मालिक अर जाणी-माणी ‘गढ़वाली’ पत्रिका का संपादक विश्वम्भरदत्त चंदोला जीन विद्यावती जी तैं लिखणौ प्रेरित करि अर वूंकि कुछ किताब बि छपैन। अलग- अलग पत्र-पत्रिकौं मा लेख अर कविता प्रकाशित होणी रैन। विद्यावती जी वर्ष 1987 मा अखिल भारतीय साहित्य समिति मथुरा बिटि ‘राष्ट्रभाषा आचार्या’ कि उपाधि, गंगा प्रसाद साहित्यिक मंच टीरी बिटि भव्य अभिनंदन का दगड़ा ‘जय श्री’ सम्मान से बि सम्मानित ह्वेन। नयु इत्यास रचण वाळि जीवटतै अद्भुत मिसाल विद्यावती जी 25 नवम्बर, 1993 का दिन भग्यान ह्वेगेन।
–बीना बेंजवाल की फेसबुक वाल से साभार
(संदर्भ : उत्तराखंड की महिलाएँ :संघर्ष और सफलता की कहानियाँ- वीणा पाणी जोशी)
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