(महाभारत महाकाव्य में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -15
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
मेरे नियमित पाठक व विद्वान् समीक्षक श्री गजेंद्र बहुगुणा ने मेरे द्वारा उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म को महाभारत से जोड़ने पर घोर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि महाभारत कोई प्रमाणिक इतिहास नहीं है और यदि महाभारत के चमत्कार सत्य थे तो वह टेक्नोलॉजी कहाँ गयी।
आज उत्तर देने का समय आ गया है। पहली बात यह है कि मैं मुख्यतया मार्केटिंग पर लेख लिख रहा हूँ ना कि अकाट्य इतिहास पर। मार्केटिंग कुछ नहीं है अपितु एक कला, विज्ञानं व दर्शन का मिश्रण है और हर संवाद (चित्र , शब्द, स्वाद , सूंघने व स्पर्श से जो अनुभव हो ) मार्केटिंग ही है। फिर मान भी लिया जाय कि महाभारत महाकाव्य सर्वथा काल्पनिक है जैसे जेम्स हेडली के उपन्यास तो भी यह सत्य है कि यह महकाव्य है ही। महाभारत में जो है उसकी विवेचना या महाभारत का संदर्भ देने में कोई बुराई नहीं है। महाभारत के उदाहरण देने में कोई कुतर्क भी नहीं है।
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उत्तराखंड को महाभारत से लाभ
महाभारत में उत्तराखंड पर बहुत अधिक लिखा गया है और हस्तिनापुर पर कम। महाभारत में उत्तराखंड का भूगोल , नदियां , पहाड़ , भूमि , पेड़ , समाज , संस्कृति , दर्शन सभी कुछ मिल जाता है। महाभारत में उत्तराखंड विवरण से आज भी उत्तराखंड पर्यटन या स्थान छविकरण को लाभ ही मिलता है। महाकवि कालिदास ने महाभारत से विषय उठाकर कई नाटकों की रचना की जिसमे मध्य हिमालय ही केंद्र में हैं। महाभारत के कारण कई प्राचीन संस्कृत व आधुनिक हिंदी नाटकों की पृष्ठभूमि उत्तराखंड ही रही है महाभारत में उत्तराखंड वर्णन से उत्तराखंड के बारे में कई धारणाएं आज भी हैं और कई धारणाओं ने इतिहास भी रचा है। तैमूर लंग का गढ़वाल पर धावा बोलने प्रयाण के पीछे महाभारत की रची छवि थी कि गढ़वाल में स्वर्ण चूर्ण भंडार व धातु अणु शालाओं की भरमार। शाहजहां के सेनापति द्वारा गढ़वाल पर आक्रमण के पीछे भी उपरोक्त दोनों धारणाएं थी। और मजेदार बात यह रही कि दोनों बार घटोत्कच के पत्थर फेंकने की रणनीति ने आक्रांताओं को ढांगू क्षेत्र से भगाया गया। दोनों बार गढ़वालियों ने घटोत्कच का ही रूप लिया।
महाभारत में वर्णित तीर्थ बद्रिकाश्रम , गंगोत्री या गंगा महत्व ने उत्तराखंड की छवि को मलेसिया -इंडोनेसिया , ईरान तुरान तक पंहुचाया। उत्तराखंड यदि हजारों साल पहले ही धार्मिक स्थल बन पाया तो उसके पीछे महाभारत जैसे महाकाव्य या अन्य श्रुतियाँ ही थीं।
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महाभारत और स्थान छविकरण में मीडिया प्रतिनिधित्व का महत्व
महाभारत , कालिदास साहित्य , ध्रुवस्वामिनी नाटक , हुयेन सांग का यात्रा वर्णन , स्कंदपुराण (केदारखंड ) , तैमूर लंग का लिखवाया /लिखा इतिहास , पीछे बहुत से यात्रियों द्वारा यात्रा वर्णन वास्तव में आज के मीडिया द्वारा उत्तराखंड विषयी जानकारी देना जैसा ही है। कई टीवी चैनलों में उत्तराखंड संबंधित विषय दिखाना भी महाभारत में वर्णित उत्तराखंड जैसा ही तो है। स्थान ब्रैंडिंग (मेडिकल टूरिज्म एक भाग है ) हेतु उत्तराखंड पर्यटन के भागीदारियों को मीडिया प्रतीतिनिधित्व क महत्व समझना आवश्यक है।
प्रसिद्ध प्लेस ब्रैंडिंग विशेषज्ञ मार्टिन बोइसेन (2011 ) ने सिद्ध किया कि मीडिया द्वारा किसी भी स्थान की छवि वृद्धि या छवि बिगाड़ने में अत्यंत बड़ी भूमिका निभाते हैं। इसका अनुभव हमें तब होता है जब उत्तराखंड में जब यात्रा मार्ग पर सड़क टूट जाती है और टीवी मीडिया सुबह से शाम तक ब्रेकिंग न्यूज द्वारा ऐसा दिखलाता है जैसे फिर से केदारनाथ डिजास्टर पैदा हो गया है। बहुत से संभावित पर्यटक अपनी उत्तराखंड यात्रा स्थगित कर देते हैं। किन्तु फिर यही मीडिया उत्तराखंड की बाड़ियों में बर्फबारी (बर्फ का राक्षस ही सही ) की सूचना देता है तो हिम का आनंद लेने वाले उत्तराखंड की ओर गमन करने लगते हैं। मसूरी पर्यटकों से भर जाता है।
सचिन तेंदुलकर या महेंद्र सिंह धोनी का मसूरी में घर खरीदना या उमा भारती का उत्तराखंड में आश्रम होना , प्रधान मंत्री मोदी द्वारा केदारनाथ वास आदि का मास मीडिया द्वारा सूचना उत्तराखंड पर्यटन या निवेश हेतु सकारात्मक समाचार बन जाता है।पतांजलि विश्वविद्यालय आदि का मीडिया में स्थान पाना उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म हेतु सकारात्मक पहलू है।
किसी प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा उत्तराखंड भ्रमण जैसे प्रधान मंत्री द्वारा केदारनाथ यात्रा का विवरण मीडिया द्वारा देना एक लाभकारी सूचना थी। केदारखंड में डिजास्टर के बाद केदारनाथ यात्रा की जो नकारात्मक छवि बनी थी वह छवि मोदी जी की यात्रा से धूमिल पड़ गयी है और अब दूर दूर के यात्री केदारनाथ यात्रा हेतु तैयार हो गए हैं।
अभी कुछ दिन पहले केदारनाथ मंदिर में कपाट बंद समय बर्फबारी में कुछ अधिकारी या नेताओं द्वारा बर्फबारी में भी कपट खोलने की चित्र सहित सूचना मीडिया में फैली। हमारे कई पत्रकार जो उत्तराखंड पर्यटन को ऊंचाई पर देखना चाहते हैं और स्वयं कई धार्मिक पर्यटन स्थलों के बारे में सूचना देने बहुत खोज व परिश्रम करते हैं ने इस घटना नकारात्मक पहलू को सोशल मीडिया में प्रचारित करना शुरू कर दिया । आधुनिक प्लेस ब्रैंडिंग से अपरिचित इन विद्वानों ने शीतकाल में केदारनाथ कपाट खोलने पर इंटरनेट मीडिया में प्रश्न चिन्ह लगाने शुर कर दिए। जब कि यह सूचना तो समस्त भारत के कोने कोने में जानी चाहिए थी कि अब केदारनाथ यात्रा सुरक्षित यात्रा है। वास्तव में शीतकाल में केदारनाथ कपाट खुलने पर कई संवेदनशील व उत्तराखंड प्रेमी पत्रकार द्वारा नकारात्मक रुख अपनाना यह दर्शाता है कि तत्संबन्धी विभाग ‘प्लेस ब्रैंडिंग में मीडिया रिप्रेंजेंटेसन ‘ का महत्व नहीं समझ सके। अधिकारियों को पत्रकारों को अवगत कराना चाहिए था व उन्हें विश्वास दिलाना चाहिए था कि शीत काल में केदारनाथ कपाट खोलने का अर्थ है अब हम नई से नई टेक्नोलॉजी प्रयोग कर रहे हैं। प्लेस ब्रैंडिंग के भागीदारों को भी (उत्तराखंड के पत्रकार व राजनीतिक कार्यकर्ता भी भागीदार हैं -स्टेकहोल्डर ) प्लेस ब्रैंडिंग/स्थान छविकरण की समझ में बदलाव लाना आवश्यक है। आज प्लेस ब्रैंडिंग में भारी बदलाव आ चुका है।
प्लेस ब्रैंडिंग विशेषज्ञ जैसे कैरोल व मैककॉम्ब्स (2003 ) का सही कहना है कि मीडिया कवरेज जितनी अधिक हो स्थानछवि वृद्धि या छवि कमी को उतना लाभ -हानि होता है। मीडिया समाचार में वर्णित स्थान गुणों से ग्राहक स्थान छवि बनाता जाता है।
मूर्धन्य लेखकों /पत्रकारों को उत्तराखंड से बाहर के पत्र पत्रिकाओं में लिखना चाहिए
प्लेस ब्रैंडिंग पिता एस. ऐनहोल्ट प्लेस ब्रैंडिंग के भागीदारों को सदा आगाह करते हैं कि प्लेस ब्रैंडिंग में जनसम्पर्क सूचना सबसे अधिक कारगार हथियार है। उत्तराखंड के लेखकों को अन्य प्रदेशों , देशों के पत्र पत्रिकाओं में उत्तराखंड संबंधी लेख समाचार प्रकाशित करने या करवाने चाहिए।
राज्य को जियोग्राफी , बीबीसी जैसे चैनलों के साथ सामंजस्य कर उत्तराखंड पर्यटन , संस्कृति आदि का प्रसारण करवाना चाहिए जैस िर्धन मंत्री मोदी द्वारा मैन ऐंड वाइल्ड (बियर ग्रिल्स संग ) विषयी समाचार उत्तराखंड के लिए लाभदायी रहा।
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मीडिया को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है
बहुत बार मीडिया स्थान विषय के बारे में नकारात्मक सूचना देते हैं। प्लेस ब्रैंडिंग विद्वान् मर्फी का कहना है कि स्थान छवि भागीदारों को इन नकारात्मक सूचनाओं को एकदम से खारिज नहीं करना चाहिए अपितु अन्य ब्रैंडिंग हथियारों से सकारात्मक छवि हेतु आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
मीडिया को कंट्रोल नहीं किया जा सकता है किन्तु मीडिया प्रतिनिधित्व विधि द्वारा टूरिज्म विभाग वांछित सूचना मीडिया में दिलवाते ही हैं।