जी हाँ! नेहरु विरासत धरासायी की जा रही है !
(अति लघु नाटक)
नाटक कृति : भीष्म कुकरेती ‘चबोड्याचार्य ‘
s =का , को , कु , क
युग – चौथी से आठवीं सदी मध्य समय
थान – माणा गाँव मत्थि उड़्यार
-माणाs व्यास – हैं हैं ! क्या भै कंदूर्या ! सुबेर सुबेर ! बरफ बण्यु पाळु बि नि गौळ अर तु इथैं ? क्या बौद्ध सेना पैथर तिब्बत से आणि च ?
कंदूर्या – ब्राह्मण श्रेष्ठ ! ये ना ना गुरु श्रेष्ठ ! तुम बामणु बि ना ! पुड़क्या बामण तै बामण बोलि भट्याओ त तिड़क जांदन बल ब्राह्मण श्रेष्ठ कौरिs भट्याओ। अर तुम सरीखों तै ब्राह्मण श्रेष्ठ बोलि भट्याओ तो तुमर चुप्पा क्या जंद्यो पर अग्यो लग जांद बल गुरु श्रेष्ठ ब्वालो।
माणा s व्यास – नारद को कलजुगी रूप कंदूर्या त्यार हास परिहास को अर्थ च तिब्बत से क्वी भय नी च आज। बोल क्या समाचार छन जु तू बामण गाँव से बौद्ध गाँव माणा अर फिर इथैं उड़्यार म ऐ ?
कंदूर्या – कत्यूर गढ़ पांडव स्थल से समाचार छन बल द्वी ब्राह्मण श्रेष्ठ या गुरु श्रेष्ठ बाट लग्यां छन। अपुस्ट समाचार छन। इन पता नी बल यी ब्राह्मण भेष म बौद्ध योद्धा त नीन जु बद्रिकाश्रम तै अशोक स्तम्भ म परिवर्तन हेतु अयाँ होला । बात त बल संस्कृत या खस भाषा म करणा छन , कोर कोशिस कार पर यूं दुयूंन पाली बोली म बात नि कार बल।
माणाs व्यास – ओहो ओहो क्षमा तात ! मि महाभारत की सम्पूर्णता अर गुप्त सम्राटों सहायता से बेहंत प्रचार पश्चात चार सदी उपरान्त श्रीमद भागवत पुराण की सम्पूर्ण हूणै पुळ्याटम त्वै तै बथांद बिसरि गे थौ बल म्यार द्वी प्रिय शिष्य बणेली व्यास याने नयार -गंगा संगम आश्रम का बणेली व्यास अर हिंवल -गंगा संगम फूल चट्टी से पल्ली पार गूलर गाड आश्रम का गूलरगाडी व्यास मी तै मिलणो आणा छन।
कंदूर्या – हाँ तबी बल ऊं म कुछ बोझ बि च बल।
माणाs व्यास – हाँ वत्स ! दुयुंम श्रीमद भागवत का भोज पत्रों म ऊंका रचित स्कन्द छन।
कंदूर्या – स्कन्द ?
माणाs व्यास – पुस्तक या भाग
कंदूर्या – पुस्तक या भाग ?
माणाs व्यास – हाँ श्रीमद भागवत म कुल 12 स्कन्द छन अर चार स्कन्द मीन रचिन , चार चार स्कन्द ऊं प्रत्येक व्यासन रचिन।
कंदूर्या – औ त या बात च। कथगा शोक होला भगवत पुराण मा ? !
माणाs व्यास (रोष म ) – बत्स ! आज से कभी भी बगैर श्रीमद लगैक भागवत नि बोली हाँ। कारण हम सब व्यास श्री विष्णु वाद प्रचारित प्रसारित करण वाळ छां। तो जब तलक विष्णु विषय से पैल श्री या श्रीमद नि लगल आम मानव ये वाद तै पवित्र नि मानल। विष्णु वाद तब ही आम मानवों मध्य प्रसारित होलु जब यु पवित्र की गणत म आलू अर यांकुण श्री विष्णु या श्रीमद भागवत पुराण नाम से उच्चारित हूण आवश्य्क च।
कंदूर्या – औ औ ! बींगी ग्यों। तभी तुम गुरु श्रेष्ठोंन माणा ग्राम का आस पास पर्वतो नया नया नाम धार श्री नर पर्वत श्रृंखला व श्री नारायण पर्वत श्रृंखला।
माणाs व्यास – हाँ अर श्री विष्णु वाद तै संबल दीणो वास्ता कथा बणये गे बल यी नारद नर रूप म च व श्री कृष्ण श्री नारायण रूप म छन ।
कंदूर्या – तुम ब्राह्मणों बुद्धि से तो सच्ची भगवान श्री बि मात खै जाल माणा s व्यास श्री !
माणाs व्यास – बत्स ! यो इ त समस्या च। तुम कुछ समय बौद्ध भिक्षुऊं मध्य रै तो अभि बि चार्वक सिद्धांत याने नास्तिकता की गंध बचीं च। स्वयं कुछ समय उपरान्त श्री विष्णु को अस्तित्व तै मनण लग जैल।
कंदूर्या – गुरु श्रेष्ठ ! जब द्वी व्यास श्री अर ऊंक संग श्रमिक बि छन तो भोजन , सीणो व्यवस्था आदि ?
माणाs व्यास – हाँ नारद रूप कंदूर्या ! धन्यवाद। करतिरी गढ़ राजा म रैबार भिज्यूं बौद्ध आक्रांताओं से रक्षा वास्ता। द्वी व्यास कम से कम एक मास तक राल , तो वै अनुसार भोजन व्यवथा। भोजन बणानो सुमाड़ी का काळा ब्राह्मणो कुण रैबार भेजी दे। तदोपरांत एक मास उपरान्त म्यार पुत्र शुकदेव व दुयुं क शुकदेव शुकदेव पुत्र बि आला वो बि रात दिन ये उड़्यार म इ राला।
कंदूर्या – एक शंसय निदान गुरु श्रेष्ठ ?
माणाs व्यास – क्या बत्स ?
कंदूर्या – तुम सब अपर असली नाम समाप्त करीक व्यास धरी लींदा। इख तलक कि अपण नौनु नाम बि तुमन शुकदेव धरीं छन किलै ?
माणाs व्यास – बत्स ! जो भी पुराण कंठस्थ कारल व रचल वैक नाम व्यास ही होलु . ये ही समर्पण से श्री विष्णु वाद प्रसारित होलु। हम रचनाकारों पहचान जब नि राली तभी तो श्री विष्णु की पहचान बणली। इनि जो भी भारत भर म श्री विष्णु वाद कु प्रचार प्रसार कारल वै तै शुकदेव बोले जाल। रचयिता अर प्रचारक अनाम ही रालो तो ही श्री विष्णु वाद की पकड़ पक्की होली।
कंदूर्या – वाह वाह श्री। समर्पण की जय हो।
माणाs व्यास – श्री विष्णु की जय हो।
कंदूर्या – तो मि चलदो छौं। मध्य मध्य म अंतराल पश्चात आणु रौल।
माणाs व्यास – भलो भलो। हाँ कुछ भोज पत्रों को प्रबंध कर दे संभवतया श्री मद भागवत म कुछ सुधार की आवश्यकता पड़ जावो।
कंदूर्या – अवश्य मि नीति ओर जाणु छौं त भोज पत्र बि लै औलु।
प्रथम अंक समाप्त
द्वितीय अंक
थान – माणा ग्राम मथि उड़्यार
समय – कुछ अंतराल पश्चात
माणाs व्यास मध्य म व समिण द्वी व्यास बैठ्यां छन। तिन्युन समिण भोजपत्र ग्रंथ छन। तिन्युं हथ म गरुड़ पंख कलम। काठक दवात। आठ तरफ बड़ो माटो द्यू जळणा छन।
माणाs व्यास – तो बंधु ! हम हरेक कन चार चार स्कंध रचिक कुल 12 स्कंध रची आलीन। मीन यूँ चार दिवसों म सब श्लोक बाँची ऐन।
गूलर गाडी व्यास -हाँ अर 18000 श्लोक भी सम्पूर्ण ह्वे गेन।
बणेली व्यास – तो उत्स्व मनाये जाय आज। अर शुकदेवों तैं भट्येक श्रीमद भागवत कु प्रचार कार्य सौंपे जाय। प्रत्येक शुकदेव स्थान स्थान म जैक श्रीमद भागवत कथाओं प्रवचन कारल।
माणाs व्यास – बंधु 18000 श्लोक से उत्स्व नि मनाये जै सक्यांद।
द्वी व्यास एक संग – क्या अर्थ अब जब श्री मद भागवत कथा पुराण सम्पूर्ण ह्वे गे तो उत्स्व किलै ना
माणा व्यास – बंधुओ ! सर्व तो कुशल च श्री मद भागवत पुराण मा किन्तु कुछ बात अपूर्ण रै गेन।
द्वी व्यास – अपूर्ण ? हमन तो एक सम्पूर्ण वर्ष विचार कार कि कै विषय अनुसार कु संकंध रचे जाल , कै सन्कध म क्वा क्वा कथा होली अर कैक कथा होली।
गूलरगाडs व्यास – हाँ हमन क्या तुमन बि प्रभु विष्णु तै देव नाम व पहचान म अग्रिम पंक्ति म बिठाणो बान वेद व वेद प्रतीकों तैं नेपथ्य म धकेल। वेद देव व दिवतौं तैं द्वितीय क्या चतुर्थ श्रेणी म धौर फिर किलै श्रीमद भागवत अपूर्ण च ?
बणेली घाटs व्यास – बंधु गूलरगड्या व्यास सही बुलणा छन , हमन नाम पहचान मनोविज्ञान का सभी नियम पालन करीन अर भूतकाल का देव जन वायु , अग्नि , अश्वनी कुमार देव देवियों ही ना खस , किरात वीरों तैं बि खल पुरुष या खल महिला सिद्ध करी। इखम वेदुं क्रमशः यता तै बि संयचित राख। अर वेद भावना , वेद सद्भावना तै या वर्तमान प्रसिद्ध देव देवियों तैं नेपथ्य म रखणो ध्येय से ब्रह्मा व सरस्वती सरीखों तै श्री विष्णु का समिण निम्न कोटि का देव देवी सिद्ध कर दे।
माणाs व्यास – हाँ नाम व नाम पहचान का मनोवैज्ञानिक नियमों पूरो पालन हम सब व्यासों न कार अर श्रीमद भागवत रचणो म कणाद कृत वैशषिकी को पूरो ख़याल राख व गौतम रचित न्याय दर्शन को भी पूरो ध्यान कार। इखम तक तो ठीक च किन्तु एक बात फिर बि ध्यान म आण से रै इ गे।
द्वी – तो कमी पर प्रकाश डाळो
माणाs व्यास – लक्षणसंनिवेश , छवि , छविकरण , अथवा लक्षणसंनिपात नियमों से वेद देवाधिदेव तैं श्री विष्णु का समिण अति निम्न कोटि कु देव सिद्ध करण आवश्यक छौ। मि वेद प्रमुख देव इंद्र की छ्वीं करणु छौं।
गूलरगाडी व्यास – हाँ सत्य कि लक्षणसंनिवेश , लक्षणसंनिपात अथवा छवि -छविकरण नियमों से तो वेद प्रमुख देव इंद्र तैं निम्न से निम् कोटि देव सिद्ध करण आवश्यक च। हाँ पर भौत सा स्थानों म इंद्र तैं पद अभिलाषी , देव राज का अभिलाषी , स्वार्थी , इंद्र पद लालची व पद का खातिर निम्न से निम्न स्तर तक जाण वल दिबता सिद्ध हुयुं च श्री मद भागवत म
बणेली घाटs व्यास – श्रीमद भागवत की भौत सी कथाओं म इंद्र खस , किरातों याने राक्षसों से बि निम्न स्तर को कुकर्म करदो तो स्वयं ही इंद्र श्री विष्णु समिण गौण देव सिद्ध ह्वे जांद।
माणाs व्यास – संभवतया हम चार्वक गुरु वृहस्पति कु प्रतियोगिता व लक्षणसंनिवेश , लक्षणसंनिपात सिद्धांत अर्थात छवि व छविकरण नियमुं तैं हम बिसर गेवां।
द्वी व्यास – कु सिद्धांत
माणाs व्यास – चार्वक गुरु वृहस्पति कु सिद्धांत च कि यदि कै नयो नाम तै अति प्रसिद्ध करण तो पुराणों नाम तैं नया नाम से हरवाओ। हमन श्रीमद भागवत म कखिम बि श्री विष्णु द्वारा इंद्र तै पराजित नि करवाई। अर पराजित बि जन सेवार्थ ही हूण चयेंद , अहम , स्वार्थ या पद हेतु पराजित कराण से इंद्र कु महत्व श्री विष्णु समिण निम्न नि होलु। जब श्री विष्णु जन सेवार्थ इंद्र तै पराजित कारल तो ही इंद्र निम्न स्तर कु देव माने जाल। जन मानस म इंद्र की छवि कम करवाण आवश्यक च। लक्षणसंनिवेश सब छवि को ही त खेल च।
बणेली घाट कु व्यास – हूँ ! हूँ ! तथ्यात्क सिद्धांत , सर्व सिद्ध सिद्धांत
गूलर गाडs व्यास – हूँ ! हूँ ! विचारणीय कथ्य ! पुनः विचार आवश्यक च
बणेली घाट कु व्यास – कुछ योग याने जुड़न अति आवश्यक च। श्री विष्णु द्वारा इंद्र तै जन सेवार्थ पराजित करण आवश्यक च।
माणाs व्यास – हाँ तो क्या करे जावो ?
बणेली घाट कु व्यास – इंद्र तै जन विरोधी व विलंच , कामुक संबंधी द्वी लोक कथा प्रचलित तो छैं इ छन।
माणाs व्यास – कु कु ?
बणेली व्यास – मध्य देश की लोक कथा कि इंद्र न गौतम मुनि की पत्नी से व्यभिचार हेतु खटकर्म करि छौ।
गूलर गाडs व्यास – अति सुंदर , अति सुंदर ! प्रसंसनीय विचार ! व्यभिचार से इंद्र की छवि बहुत ही निम्न स्तर की छवि बण जाली।
माणा – अर दूसरी लोक कथा ?
बणेली व्यास – मथुरा म प्रसिद्ध लोक कथा जब इंद्र न बृन्दावन वासियों तै तंग करणो बान अति वर्षा करवाई अर श्री विष्णु अवतार श्री कृष्ण न वृन्दावन पर्वत से वृंदावन वासियों रक्षा कार व वृन्दावन वासियों तै सुख दे।
गूलर गाडs व्यास – हर्ष ! हर्ष ! अति हर्ष श्री विष्णु द्वारा इंद्र की जनहित हेतु पराजित करण यानी छवि सिद्धांत को पूरो अनुसरण।
माणा s व्यास – हाँ हाँ ! वैशषिकी व गुरु वृहस्पति का छवि सिद्धांत अनुसार द्वी कथा श्री विष्णु समिण इंद्र तैं म्लेच्छ जन देव सिद्ध करदन। यूं द्वी कथाओं तै श्रीमद भागवत म योग करण आवश्यक च। द्वी कथा इथगा नाटकीय हूण चएंदन कि जन मांस म इंद्र की छवि म्लेछों से बि निम्न स्तर कि बण जाय ।
द्वी व्यास – हाँ हाँ नाटकीयता लाण आवश्यक च।
गूलर गाड कु व्यास – किन्तु हमन त 18000 श्लोक रची ऐन।
माणाs व्यास – चिंता नि कारो द्वी कथा कम कारो अर श्रीमद भागवत म वृन्दावन प्रकरण व गौतम -अहिल्या प्रकरण जोड़ द्यावो। हाँ अंत म 18000 श्लोक ही रौण चएंदन। द्वी प्रकरण म इंद्र निम्न स्तर कु सिद्ध हूण चयेंद अर ह्री विष्णु अति उदार , जन हित कारी व स्त्री कल्याणकारी सिद्ध हूण चएंदन। श्री राम द्वारा अहिल्या उद्धार व श्री कृष्ण द्वारा वृन्दावन म इंद्र गर्व मर्दन यथेष्ट पर्याप्त ह्वे जाल।
द्वी व्यास – साधु ! साधु ! सर्वोचित ।
माणाs व्यास – तो अब इन कारो बल
द्वी -क्या ?
माणाs व्यास – गूलरगड्या व्यास तुम मध्य देश की लोक कथाओं विशेषज्ञ छंवां त तुम गौतम -अहिल्या -इंद्र प्रकरण रचो। अर बणेल घाट का व्यास श्री तुम मथुरा विशेषज्ञ छंवां त तुम वृन्दावन प्रकरण रचो अर ध्यान रहे बल कुल श्लोक 18000 ही रावन अर संग संग इंद्र की छवि म्लेच्छों से बि निम्न बणन चयेंद अर श्रोता क मन म श्री विष्णु की निर्विकार ईश्वर की छवि उतपन्न ही नी हो अपितु सदियों तक सर्वेश्वर छवि ही रावो। कथाओं म नाटकीयता को सम्पूर्ण ध्यान रखण आवश्यक च।
द्वी – भलो भलो
माणाs व्यास – लगभग कति दिवसम यी द्वी अध्याय पूर ह्वे जाल ?
गूलरगाडs व्यास – लगभग एक सप्ताह
बणेली व्यास – म्यार अध्याय बि एक सप्ताह।
माणा व्यास – लिपिक गणेश की क्वी आवश्यकता ?
द्वी – न न बिलकुल ना
माणाs व्यास – साधू साधू ! भोजपत्र , मसि : , मसिकूपी , रिंगाळ लेखनी , लेख मार्जक , कु पूरो प्रबंध च। मि एक सप्ताह कुण तौळ जोशी आश्रम तक जाणु छौं। वैष्णवी आचार्य से कुछ कार्य च। भोजन आदि सब प्रबंध काळा ब्राह्मणों म सौंप्युं च तो क्वी समस्या नि होली। करतीपुर का सैनिक तिब्बती बौद्ध आक्रांताओं का ध्यान राखल। शुभ हो शुभ हो।
द्वी व्यास – तुम्हारी यात्रा शुभ हो
तृतीय अंक
माणा व्यास उड़्यार
तीन व्यास व तीन शुकदेव
कंदूर्या बि उपस्थित
माणाs व्यास – तो तिनि शुकदेवो ! समय पर पौंची गेंवा हैं ? पथ म क्वी समस्या त नि छे जांक निदान आवश्यक हो
सब शुकदेव – ना ना
माणाs व्यास – तो तिनि शुकदेवो ! टक्क लगैक सुणो। प्रभु श्री विष्णु का आशीर्वाद से श्रीमद भागवत तैयार च। तुम तै ध्यान से 18000 श्लोकुं तै स्मरण करण अर सम्पूर्ण भारत भ्रमण पर जाण। प्रत्येक शुकदेव तै श्रुति शैली म अन्य शुकदेव तैयार करणन। प्रत्येक शुकदेव तै ग्राम ग्राम जैक प्रवचन सुणान। अर प्रवचन से ध्यान दीण कि इंद्र की छवि भूमिगत हो जाय। विष्णु जी की छवि तब ही स्थापित ह्वेलि जब इंद्र की छवि समाप्त ह्वेलि। अर्थात इंद्र तैं खलनायक सिद्ध करे जाय।
सब शुकदेव – तुमारी आज्ञा सविनय पालन होलु।
माणा व्यास – शुभ यात्रा श्री विष्णु की जय हो
सब – जय हो जय हो विजय हो।
माणा व्यास – नारद रूप कंदूर्या ! यूं सब्युं रक्षा प्रबंध , अर दूरगामी सूचना पौंछाणो प्रबंध कारो। अब यी सब सम्पूर्ण भारत म श्री मद भागवत की सहायता से श्री विष्णु पंथ का प्रचार कारल। अपण संसाधनुं पूरो सहायता द्यावो।
कंदूर्या – चिंता नि कारो सम्पूर्ण जम्बूद्वीप म म्यार धर्म सूचना जाळ च तो जालचक्र का प्रयोग से सब शुकदेवों की सहायता करुल।
सब – शुभ हो शुभ हो। श्री विष्णु की कीर्ति उज्वल हो , उज्जवल हो , उज्ज्वल हो।
चतुर्थ अंक
समय 2014 , जुलाई महीना
स्थान – एक एयर कंडीशंड कॉनफेरेन्स हाल
कम्प्युटरीय बोर्ड पर बैनर पट्टिका च – मीटिंग ऑफ थिंक टैंक ऑफ इंडियन पीपल्स पार्टी
मुख्य सलाहकार वक्ता – तो इंडियन पीपल्स पार्टी का मुख्य थिंकर्स या प्रचारक इन ओल्ड लैंग्वेज , मॉडर्न शुकदेव ! तुमन आबि विष्णु धर्म छवि करण की फिल्म द्याख। तो बताओ ब्रैंडिंग का हिसाब से कन लग
सब – एक्सेलेंट एक्सेलेंट ओनली एक्सेलेंट !
सलाहकार – तो अब तुमम क्या काम च ?
एक प्रचारक – सर कै बि नया राजनैतिक दल को प्रथम कार्य च अपण प्रतीकों छवि बणान अर दगड़म प्रतियोगी दल का सबसे बड़ो प्रतीक की रिपोजीसनिंग सिद्धांत अनुसार छवि छुट करण याने अनुपातिक सिद्धांत। सबसे प्रथम जवाहर लाल नेहरू की छवि मर्दन आवश्यक च। नेहरू इज्म शुड बि वाईप्ड आउट फॉर अवर ग्रोथ।
सलाहकार – वेरी गुड। इट इज अटमोस्ट इम्पोर्टेंट फॉर डिग्रेडिंग नेहरूइज्म। नेहरूवाद की समाप्ति ही इंडियन पीपल्स पार्टी की जीत च । टोटल वाइपिंग ऑफ़ नेहरू इमेज इज अ मस्ट। साथ साथ एक कार्य हैंक बि अनिवार्य च।
दुसर प्रचारक – यस सर ! मनमोहन इज्म तैं नेपथ्य म रखण आवश्यक च
सलाहकार – एक्ससीलेंट एक्ससीलेंट ! मनमोहन इज्म पर आधार रखिक अळग चढ़न आवश्यक च किन्तु दगड़ म मनमोहन इज्म तै नेपथ्य म पौंचाण बि आवश्यक च। मनमोहन इज्म की नींव म खड़ ह्वेका नेहरू इज्म का छत्या नास आवश्यक च। जन वेद आधारित श्रीमद भागवत म वेदो मुख्य देव इंद्र की तौहीन करे गे उनी मनमोहन इज्म का उदाहरणों से ही नेहरू की छवि समाप्ति आवश्यक च। समझ म आयी कि ना ?
सब – जी जी नेहरू इज्म की मट्टी पलीत इनि हूण चयेंद जन श्रीमद भागवत मा विष्णु क समिण इंद्र की मिटटी पलीत करे गे.अर मनमोहन या नरसिम्हा राव तै नेपथ्य म डाळन बी अत्त्यावष्यक च।
सलाहकार – वेरी गुड। अब तुम सब प्रचारक अपण अपण उप प्रचारक तैयार कारो अर मनमोहन इज्म या नरसिम्हा राव इज्म तै नेपथ्य म डाळो अर महत्वपूर्ण च नेहरू छवि समाप्त करण या निम्न स्तर की छवि क्रिएट करण। प्रत्येक माध्यमों से नेहरू छवि खराब कारो। ऑल द बेस्ट फॉर डिमिनिशिंग एंड एडल्ट्रिंग नेहरू ऐंड हिज फेमिली इमेज !
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती , 2018