
(सच्ची जीवनी पर आधारित )
282 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
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इंदरू मामा जी। हमर गाँव म सब ऊंकुण इंदरू मां जी बुल्दा छा। रिस्ता माँ धूमा फूफू लगभग सरा गांव वळूं फूफू लगदी छे। तो इंदरु मां सब्युं को इ मामा। जब तक घूमा फूफू क ब्यौ नि ह्वे छौ। बस्ती ददा की क्वी पुन्यात नि मने जांद छे। धूमा फूफू ब्यौ इंदरू ममा से क्य ह्वे कि बस्ती ददा क ड्यार बि बानी आण शुरू ह्वे। अब बस्ती ददा म घर ही ना इना उना जाणो कुण किनम जा अलग अलग झुल्ला छन , खुटों कुण चरमर्र करदा जुत छन , साफा छन। लालटेन च , टॉर्च च अर नई फर्सी च।
यि सब इंदरु मामा मामा क अनुकम्पा से हि संभव ह्वे। इंदरु मां जीक कारण हमर गां क बच्चों न चॉकलेट क स्वाद चाख निथर हम तो चणा -लैची म म ही संतुष्ट ह्वे जांद छा।
उना इंदरु म्मा होरुं गां म बि अब इंदरु मामा जीक बुबा जीक सम्मान म अत्ययधिक वृद्धि ह्वे गे। पैल दौलू नना जी तैं फौड़ या पिठै लगद दैं क्वी पूछ नि हूंदी छे अब जब तलक दौलु नना जी नि होवन तो फौड़ क भोजन या पिठै शुरू ही नि हूंद। पैल गांवक संजैत कार्यों हेतु दौलू नना जी की पूर्ण रूपेण अवहेलना हूंदी छे अब बिन दौल नाना जी की हां बुलण से पैल संजैत कार्य की चर्चा बि शुरुवात नि हूंद।
क्वी दिन इन छा जब इंदरु ममा जी न आठ पास कार तो दौलु नना जी न इंदरु ममा तैं पढ़ानो बान हथ खुट छोड़ दे छौ। तो इंदरु ममा क दगड़्या नौ कक्षा क पुस्तक -कॉपी खरीदणा छा तो इंदरु मामा मुंबई जाणो दुगड्ड म बस मिलणो उंधार म रड़ना छा। मुम्बई पौंछण म जु मुंबई ल्है छौ ऊंन इंदरु मामा तैं एक पारसी सेठ क घौर म कार्य करण पर लगै दे। पारसी सेठ क क्वी बच्चा नि छा . हृदय से बि धनी धनी पारसी सेठ न ओपेरा हॉउस म रौणो अपर गैरेज इंदरु ममा तैं दे द्याई। खाणा अर कपड़ा तो सेठ जीन हि दीण छौ।
दिन म इंदरु ममा खाली रौंद छा अर बगल म ही ग्रांट रोड म पहाड़ियों क मोटर गैरेज छा। तो इंदरु ममा जी गाडी इंजिन रिपेयरिंग सिखण लग गेन। रौणो गैरेज छे इ। एक वर्ष म इंदरु ममा गाडी रिपेयरिंग अर गाडी चलाण सीख गेन।
पारसी सेठ इंदरु ममा क कार्य व सेवाभक्ति से प्रसन्न छा। तीन वर्ष म पारसी सेठ सोरग चल गेन। घर अर कारोबार क उत्तराधिकारी बारा म तो ऊंक बैण -भणज म चिंतित छा। कैन बि ओपेरा हॉउस म गैरेज की क्वी चिंता नि कार। कुछ दिनों म इंदरु ममा न गैरेज म रिपेयरिंग सेंटर खोल दे। इथगा वर्षों से तख इंदरु ममा रौंदा छा तो कै तैं कुछ शंका नि ह्वे। ओपेरा हॉउस म कार रिपेयरिंग सेंटर हूण अर्थात करोड़पति बणनो पूरा अवसर छा। गैरेज क व्यापार बढ़न शुरू ह्वे गे। गढ़वाली गांवुं म बुले जांद कि मुंबई वळ तो रुपया हगद्न तो तनि ह्वे। इंदरु ममा क आय वृद्धि हूंद गे। गैरेज म एक बालकोनी निर्मित करे गे जख इंदरु ममा रौंद छा। पारसी सेठ न गैरेज म तब का समय अनुसार टॉयलेट अर बाथ रुम निर्मित करायुं छौ। द्वी वर्ष उपरान्त दौल नना जीन एक दूकान बांघाट अर एक दूकान सतपुली म निर्मित कर ले. तिसर वर्ष इंदरु ममा क ब्यौ धूमधाम से ह्वे।
दौल नना न बोल याल छौ कि अगल वर्ष ब्वारी तैं मुंबई ल्ही जै।
इंदरु ममा क सम्मान मुंबई म बढ़द गे तो गांव म दौल नना क बि। एक नई तिबारी बि निर्मित ह्वे गे।
मुंबई म शिवड़ी म बैठी चाल म द्वी कक्षों लेक इंदरु ममा घर गे अर झंपली मामी तै मुंबई ल्है ऐ गे। द्वी तीन वर्ष म द्वी बच्चा बि ह्वे गेन। भल यो छौ कि इंदरु ममा दारु अर पत्तों पर हाथ नि लगांद छौ। बस पनामा सिगरेट का चाव छौ।
झंपली मामी तै लयां क्वी छै मैना ह्वे होल कि इंदरु ममा क पेट म शूल पीड़ा जन पीड़ा हूण शुरू ह्वे। पैल पैल तो हींग , पोदीना हरा से काम चलाई बाद म डाक्टर म गेन। दवाई खैन पर दवा नि लगिन। पीड़ा इन हूंद छे जन बुल्यां आंत भितर कबासलो सुलगणु हो धीरे धीरे ।
तब एक ड्रावर दगड़्या न सलाह दे कि दारु पीण शुरू कर दे तो पेट पीड़ा सदा कुण नष्ट ह्वे जाली. ड्राइवर दगड़्या न अपर अर कुछ हौर दगड्यों को दृष्टांत बि दे।
एक बात इ ह्वे कि इंदरु ममा न देसी आंटी क गटर की दारु शुरू नि कार अपितु राज्य सरकार क कॉफी ब्रैंड से शुरू कार। शुरू म तो पीड़ा तैं शान्ति मिलण लग गे। इंदरु ममा क आत्म शक्ति बड़ी छे तो दारु रात म हि पींद छा। दिन म दारु पर हाथ बि नि लगांद छा। कुछ समय उपरान्त दारु क प्रभाव कम हूंद गे अर दिन म बि पीड़ा सुलगण मिसे गे। अर इंदरु ममा न दिन म बि दारु पीण शुरू कर दे। अब गैरेज को सब कार्य श्रमिकों पर छोड़ दिए गे। ममा गैरेज क बालकोनी म दारू पैक सियां रौंद छा , अब जब बि सुबेर ह्वेन या स्याम या अदा रात जब बि पीड़ा हुण लग कि ममा दारु पे ल्यावो। पीड़ा तो बंद नि ह्वे किंतु ममा पूर्ण रूप से दरोड्या (अल्कोहोलिक ) ह्वे गे। अब गैरेज म आण बि कम ह्वे गे। धीरे धीरे आय कम हूंद गे किन्तु व्यय अर पीण कम नि ह्वे। कुछ क्या ह्वे कि कर्ज ह्वे गे। कर्ज मुक्ति म निशुल्क म मिलीं गैरेज तै इना उना कोरी बेच दिए गे। शिवड़ी क निकट एक छुट गैरेज किराया पर लेक काम चलाण शुरू कार पर बिन किसान की कृषि अर बिन स्वामी क गैरेज नि चल्दन।
उना आय निरंतर कम हूंदी गे अर पुनः अलग से कर्ज बढ़ गे। अर निरंतर दारु पेक इंदरु ममा क लीवर डैमेज ह्वे गेन। अत्यधिक दारु पीण से बुद्धि बि कमजोर पड़द गे तो साहस अर विचार करणै शक्ति बि दूर चल गेन। सम्मान असम्मान म परिवर्तित हूण लग गे। लोगों क निरंतर अवहेलना से निरसा अर क्रोध बि शुरू ह्वे गे।
अब जब कुछ नि कौर सकद छा तो शिवड़ी क घर बेची बच्चों सहित गाँव चल गेन। गाँव म द्वी वर्ष यकृत की पीड़ा म बि दारु नि छूट. यकृत को बुरा हाल ह्वे गे छा।
अर मुंबई से गांव आणों ढाई वर्षों म इंदरु ममा इहलोक छोड़ी परलोक चल गेन अर बच्चों तै पढ़ानो उत्तरदायित्व पुनः दौल नना पर ऐ गे। अब पुनः दौल नना कांतिहीन , श्रीहीन ह्वे गे छा।
दारु न सरा मवासी ही समाप्त कौर दे।