उत्तराखंड संबंधित ऐतिहासिक पुरुष पात्रों की कहानियां श्रृंखला
265 से बिंडी गढ़वळि कथा रचंदेर : भीष्म कुकरेती
गढवाळै भूगोल इन च कि इख कर्मठ , ईमानदार, स्वामिभक्त , विश्वसनीय लोक जन्मदन। अकर्मठ गढ़वाळ म जीवित नि रै सकदन। सहकारिता बि आवश्यक च तो विश्वसनीय पुरुष इख मिल्दन। गढ़वाळ भड़ों क देस च। इनि महान भड़ों म छा वीर सेनापति लोदी रिखोला।
छ्वीं छन सोळवीं सदी क जब मल्ला बदलपुर (पौड़ी गढ़वाल ) को बयेळी गांव म एक बरात आण वळ छे। गांवम बरात स्वागतार्थ भों पकण छौ। पाणि स्रोत्र गां से तौळ छौ / लोगुंन फौड़ हेतु बड़ो डिबुल से पाणी लाणो विचार कार। जल स्रोत्र म डिबल तो भौर दे किन्तु जब दस पंदरा लोगुंन पाणि भर्युं डिबल उठाणो प्रयत्न कार किंतु उठै नि सकिन। तबि रिखोला थोकदारों चौदा वर्षो नौनु लोदी आयी अर वैन डिबल इखुली उठाई अर मुंड म धार अर सीधा फौड़ म जैक भ्यूं धार। सब आश्चर्य म छा कि यु भड़ कखन आयी। सब्युंन बच्चा तै कंधा म उठायी अर नचण लग गेन। सब समज गे छा कि एक भड़ न जन्म ले आल।
कुछ समय उपरान्त लोदी क ब्यौ एक थोकदार की बेटी से ह्वे अर लोदी रिखोला अपर समय बागवानी व उठक बैठक व एकल मल्ल युद्ध म बिताण लग गे।
तब तिब्बत क छापा गढ़देस पर प्रतिदिन बढ़ना छा। तिब्बती सरदार गढ़ देस पर आक्रमण कौरि लूट खसोट करदा छा। तब गढ़वाल राजा महीपत शाह न तिब्बत समस्या तै रुकणो हेतु कुछ उपाय विचार कार।
तब राजा महीपत शाह न गढ़वाल का सब भदों तै श्रीनगर म न्यूत। लोदी रिखोला बि राजा क न्योता पर सिरिनगर आई। राजा न लोदी रिखोला तै तिब्बत सीमा क रक्षा हेतु एक सेना क संचालक नियुक्त कोरी सीमा पर भ्याज। लोदी रिखोला न तख अपर वीरता ही ना युद्ध नेतृत्व बुद्धिमता क बि परिचय दे व सीमा की सुरक्षा को पूरो समुचित प्रबंध कार। राजा महिपत शाह लोदी रिखोला की वीरता व नेतृत्व गुण से प्रभावित ह्वेन अर युद्ध समाप्ति उपरान्त लोदी रिखोला तैं सलाण (दक्षिण गढ़वाल की तीन परगना – गंगा सलाण , मल्ला सलाण , तल्ला सलाण ) का थोकदार (जमींदार ) नियुक्त कार व दक्षिण सीमा सुरक्षा क उत्तरदायित्व बि लोदी रिखोला तै दे द्याई।
बिजनौर /नजीबाबाद सीमा से आतंकवादी मुस्लिम लुटेरा सलाण क्षेत्र क गांवों म ऐक मंदिरों म मूर्ति तोड़ि अर गांवों से सम्पति लूट लाटी चल जांद छा। पाठकों तै पता होलु कि प्रत्येक सलाणी गांव म एक लक कथा प्रचलित हूंदी कि आतंकवादी मुस्लिम ऐक मूर्ति तोड़ि गेन अर मंदिर बिटेन घांडी , धातु लूटी ल्ही गेन। योई कारण च कि सलाण म हरिद्वार से लेकि रामनगर कोलागढ़ तक कै बि पुरण मंदिर जन नीलकंठ , गोदेश्वर , यमकेश्वर , लँगूरगढ़ , आदि म मंदिर का पुरण भवन कखि नि मिल्दन।
लोदी रिखोला न दक्षिण सीमा रक्षा हेतु रक्षणी सेना स्थापित कार अर वो स्थान को नाम च रिखणी खाल. एक सेना इखम रखे गे। आतंकी मुस्लिम आक्रांताओं तै अपर वीरता दिखाणो कूटनीति बस रिखोला न नजीबाबाद को किला क फाटक इखुलि उखाड़ अर आतंकी , क्रूर लुटेरा मुस्लिम डर गेन। दक्षिण म शांति आयी।
तबि पश्चिम गढ़वाल व सिरमौर युद्ध म महान सेनापति माधो सिंह भंडारी बीरगति कुण प्राप्त ह्वेन तो राजा महिपत शाह न लोदी रिखोला तै श्रीनगर बुलैक पश्चिम क्षेत्र क सेना संचालन को उत्तरदायित्व दे।
लोदी रिखोला की सेना व स्वयं रिखोला न सिरमौर युद्ध म शत्रु क दांत खट्टा कर दिनी अर सिरमौर को राजा तै क्षमा मंगणो वाद्य कार। लोदी रिखोला की रणनीति व वीरता से पश्चिमी क्षेत्र म शान्ति आयी।
युद्ध जितणो उपरान्त जब लोदी रिखोला सिरिनगर पौंछिन तो तौंक भव्य स्वागत ह्वे। राजा न भव्य स्वागत कार व लोदी रिखोला की थोकदारी हौर बिंदी बढ़ै दे। यांसे जळथमारों न राजा क कंदुड़ भरिन कि लोदी स्वयं राजा बणन चाणु च। राजा न खड्यंत्र कार अर एक बड़ो दरवाजा निर्माण कार जैक पैथर थुलथुली मिट्टी तौळ गड्ढा म बरछा घटे गे छा। तब राजा न लोदी तै दरवाजा उखाड़नो आज्ञा दे तो दरवाजा उखाड़द दैं गड्ढा म गिरेन व बरछा क घावों से स्वर्ग सिधार गेन।
इनम यांक बाद कति लोक गाथा प्रचलित छन। एक गाथा अनुसार लोदी रिखोला घैल अवस्था म गाँव सीमा म पौन्छिन अर वूँकि पत्नी दगड़म सती ह्वे।
एक लोक गाथा अनुसार लोदी रिखोला की पगड़ी गां पौंछ अर पगड़ी दगड़ वूंकी पत्नी सती ह्वे।
लोदी की मांन श्राप दे कि तब से ये कुल म भड़ पैदा नि ह्वेन।
इन बुल्दन कि राजा तै जब वास्तविकता पता चौल तो वो मतिभृष्ट ह्वे गेन अर तौन कई बुर कार्य करिन।
सरा उत्तराखंड तै लोदी रिखोला जन भदों पर गर्व च। लोदी रिखोला सदैव स्मरणीय ऐतिहासिक पुरुष छन।