
(नर नारायण कथाएं – 2 )
उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
जब नर अर नारायण तप म संलग्न छा तबि राजा दक्ष न कनखळ म यज्ञ शुरू कौर छौ। दक्ष न भवन शिव को अपमान हेतु तौं तैं भाग नि दे। भगवान रूद्र रुष्ट ह्वे गे छा अर तौंन यज्ञ विध्वंस कौर दे। भगवान रूद्र न प्रज्वलित त्रिशूलौ बारबार प्रयोग कार। स्यु त्रिशूल दक्ष क यज्ञ तैं ध्वंस कौरी सहसा बद्रिकाश्रम जिना चल अर नारायण क छाती म लग गे।
तब महर्षि नारायण न ध्वनि की हुंकार से त्रिशूल तैं पैथर धकेल दे। यां से त्रिशूल प्रतिहत ह्वेक शिव जी म ऐ गे। शंकर तो दक्ष अपमान से क्रोधित छा ही , त्रिशूल पर धक्का से हौर क्रोधित ह्वे गेन। भगवान रुद्रदेव क्रोध म तौं ऋषियों पर टूट गेन। शिव आक्रमण को उत्तर म देवात्मा नारायण न शिवजी क गौळ पकड़ अर अटेरण शुरू कर दे। रक्त रुकण से शिवजी क गौळ नीलो पड़ गे अर तबि से शिवजी कुण नीलकंठ बुल्दन।
इना नारायण न शिवजी गौळ पकड्यूं छौ तो नर न मंत्र से आमंत्रित एक सींक छवाड़ जो परशा म परिवर्तित ह्वेक नीलांबर क जिना वेग से चलणु चाउ कि भगवन शिव न तै परशु तैं खंडित कार दे तबि शिवजी कुण ”खंडपरशु ‘ बुल्दन।
नारायण अर खंड परशु’ मध्य भयंकर युद्ध शुरू ह्वे गे। दिव्याश्त्रो व दुयुंक हुंकार से ब्रह्माण्ड विचलित ह्वे गे।
तब ब्रह्मा जी बद्रिकाश्रम म अवतरित ह्वेन अर दुयुं तेन परिचित हि नि कार अपितु यो बि बिँगाई (समझायी ) कि कें परिस्थिति म द्वी एक दूसर तैं नि पछ्याणना छन।
दुयुं न एक हैंक से क्षमा मांग। तब शिव अर विष्णु रूपी नारायण शांत ह्वेन अर एक दुसर से भिंटेन। तब नारायण न रुद्रदेव से ब्वाल , ” तुमर त्रिशूल को चिन्ह सदा म्यार हृदय स्थल पर अंकित रालो अर श्रीवत्स से प्रसिद्द होलु । तुमर गौळ पर म्यार हथ का चिन्ह से तुमर नाम ‘श्रीकंठ ; बि होलु “
ब्रह्मदेव व शिवजी क बड़रकाश्रम से बौड़नो उपरान्त नर नारायण पुनः ध्यान म संलग्न ह्वे गेन।