
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
मुंबई म शांताक्रूज म ट्रांजिट कैम्प बिल्डिंग क एक फ़्लैट म फत्तु मृत्यु सय्या म च। डाक्टरों न फत्तु दाक परिवार वळों कुण सीधाो बोल दे छौ बल हॉस्पिटल क बिल बढ़ै क अब कुछ नि हूण रोगग्रस्त तैं घर ली जाओ जथगा दिन जीवित राल स्यू बोनस च। बीस दिन ह्वे गेन अर फत्तु दा बोनस को जीवन म च। शरीर तो जाण चाणो च किन्तु ज्यूआत्मा अबि बि आस म च कि वो ड्यार गाँव म अंतिम सांस ल्याल। फत्तु दान कत्ती दैं नौन -ब्वारी तै बताणो प्रयत्न बि कार कि मि तैं ड्यार -गाँव ली जावो किन्तु कैक बिंगण म बात नि आयी नाती कीर्ति क समज म थोड़ा थोड़ा समज आणु तो छौ पर पूरो ना।
जैदिन बिटेन फत्तु दान गाँव से भाग अर कोटद्वार रेलवे स्टेशन आयी तै दिन से इ फत्तु दा की इच्छा छे अपर गाँव बौड़न अर अंतिम दिन गांव म बिताणन। या इच्छा आज बि उन्नी जीवित च जन कोटद्वार म रेल क डब्बा म सीटों क बीच म रस्ता म बैठिक फत्तु दा न सोची छौ। जाणु तो लाहौर छौ किन्तु मेरी चिता पर आग तो हमर मड़घट म हि लगली।
मृत्युशय्या पर फत्तु तैं याद ऐ कि वेन कक्षा द्वी तक दूर क स्कूल म पौढ़ पर ब्वे न तो ना किंतु बूबा न सोचि कि जरा एन कक्षा चार कार ना एन ऑवर बच्चों तरां लाट साब बण जाण अर इथगा बड़ो जिमदारो भेळ जोग ह्वे जाण। तो जिमदारो संबाळणो हेतु फत्तु दा तैं कक्षा तीन म जाण बंद कराई गे। फत्तु क ददा की बि ये इ इच्छा छे कि फत्तु म्यार इ जन बड़ो किसाण होउ जैक भैंस होवन , गौड़ होवन , ढिबर -बखर होवन , द्वी जोड़ी बल्द होवन। तिबारी म पौणों को आदर सत्कार हो।
जब फत्तु दा बारा वर्ष क ह्वे ह्वाल कि गाँव म कराची -लाहौर से प्रत्येक मुंडीत म एक मन्योडर क संस्कृति शुरू ह्वे गे। मन्योडर संस्कृति उपजण से सामाजिक सम्मान द्वी जोड़ी बल्द , बीस तंदला बखरों , द्वी लैंद भैंसी से सरकिक मन्योडर खाण वळ मौ तक ऐ गे। किसान को सम्मान अब मन्योडर क समिण अपमान म परिवर्तित ह्वे गे। तो फत्तु दाक ददा अर बुबा न बारा वर्ष क आयु म न्याड़ क गांवक औतार ब्वाडा दगड़ लाहौर भिजे गे कि फत्तु दा मन्योडर पर मन्योडर भेज साको अर परिवार बि नव सामजिक सत्कार पै साको। समाज म सम्मान किसानी से छिटकी क मन्योडर पाण वळ म सरक गे। अब बड़ी जाति वळ से संबंध जुड़नो क स्थान पर मनीऑडर भिजण वळ तैं बिगरैली बेटि दियाणो प्रथा चल गे छे।
औतार बडा लाहौर रौंद छा। भगत सींग कोउनक ड्राइवर छा। तो फत्तु दा तैं लाहौर भिजे गे। कोटद्वार तक फत्तु दा तैं छुड़णो फत्तु दाक बुबाजी बि ऐन। सारा बाट बुबाजी एकि बात की शिक्षा दीणा रैन कि स्वास्थ्य की रक्षा प्रथम कर्तव्य अर प्रति मैना मन्योडर भिजण अति आवश्यक च। बूबा जीन भली भाँती समझायी कि स्वास्थ्य भल रालो तो ही मन्योडर भिजे सक्यांद।
फत्तु दा तैं बि देस (भैर मैदान ) जैक मन्योडर भिजणो उत्साह छौ तो खुद , दुःख को क्वी भाव नि आयी। फत्तु दान यी समज कि लाहौर जैक प्रति मैना मन्योडर भिजण जन बुल्यां कैं मठखंडि म जैक माट खणन। बस कोटद्वार रेल क डब्बा म या इच्छा जागृत ह्वे कि अंतिम दिनों म गांव ऐक विश्राम से रौण।
लाहौर ऐक एक सप्ताह क भितर एक धनी सरदार परिवार क इख घरेलू कार्य करणो नौकरी पर लग गे फत्तु दा। सैत च तीन रुप्या मैना छौ वेतन। रौण -खाण -लत्ता कपड़ा तो स्वामी परिवार को उत्तरदायित्व छौ। तो तीन रुप्या प्रति मैना की बचत छे। तब भारत म उत्पादन बि हीन हि छौ तो अनावश्यक वयवय को अवसर बि नि छा। गांव म तमाखू को ढब छौ किँतु सिख परिवार हूणो कारण बीड़ी पीणो लक्जरी बि नि छे। दिन म एकाद बीड़ी पीणो या हुक्का पर सोड़ मारणों निकट एक गढ़वाली घर म ऐ जांदू छौ फत्तू दा , स्यु गढ़वाली गांव से हुक्का लै गे छौ तो लाहौर म बि हुक्का क सोड़ लगाणों अवसर मिल जांद छौ। तो फत्तु दा प्रति मैना तीन रुप्या मन्योडर भिजण लग गे। औतार बाडा क कारण धीरे धीरे गाड़ी चलाण बि सिखण लग गे। फत्तु दाकुण द्वी लक्ष्य छा अब अधिक से अधिक मन्योडर घर भिजण अर रिटायरमेंट गांवम। घर बिटेन बुबाजीक मन्योडर राशि बढाणो मांग प्रत्येक पत्र म हूंदी छे जो फत्तु दा तैं विवश करदो छौ कि आय वृद्धि करे जाय। यीं अवधि मध्य फत्तु दान ड्राइवरी सीख ले छे अर सिख परिवार को प्रभाव से ड्राइवरी क लाइसेंस बि मिल गे छौ अर ऊंको ही ड्राइवर बण गेन। घर क प्रबलता (दबाब ) से फत्तु दा आय वृद्धि को सुचद छौ अर रिटायरमेंट गांव म बसणो लक्ष्य न फत्तु दा तै कबि बि विचार करणों अवसर नि दे कि लाहौर म एक कक्ष किराया पर बि ले ल्यावो। सिख स्वामी न रौणौ अर भोजन क उत्तरदायित्व लियुं छौ तो आवश्यकता नि पोड़।
गांव म सेवानिवृत होलु कु सुपनेर फत्तु दा पांच वर्ष तक गांव नि जै साक। यीं अवधि म औतार बाडा क व्यक्तिगत प्रभाव को कारण फत्तु दा गढ़वाल सभा क सम्पर्क म आयी। तख गढ़वाल सभा म बलदेव प्रसाद नौटियाल , ईश्वरी प्रसाद जुयाल जन विद्वानों क सम्पर्क म बि आयी। तौन तख रात्रि कालीन स्कुल बि खुलीं छे तो फत्तु दान कक्षा चार (आजक पांच ) परीक्षा बि पास कर दे।
सत्तर वर्ष म फत्तु दा घर वापस गे तो तुरंत फत्तु दाक गौळुंद ज्यू डळे गे अर्थात पंद्रह वर्ष की नौनी से ब्यौ ह्वे गे। तब तक पत्नी तै दगड़म रखणो क्वी संस्कृति विकसित नि ह्वे छे तो ब्यौ उपरान्त फत्तु दा वापस लाहौर ऐ गे।
हिन्दुस्तान -पाकिस्तान की बड़ी बड़ी छ्वीं लगण बिसे गे छे। शासकीय नौकरी वळ तो कुछ नि कौर सकद छा किंतु प्राइवेट नौकरी वळ धीरे धीरे लॉयर छुड़ना छा। मुस्लिम लोगों क दबाब बढ़न लग गे छे।
फत्तु दा अर औतार बाडा सन पैंतालीस म मुंबई ऐ गेन। गढ़वाली आश्रयदाता राजाराम मोलासी क गैरेज म आश्रय मिल गे। गाड़ी ध्वेक पैल पैल दैनिक व्यय क भरपाई कार।
मुंबई म ड्राइवरी काम आयी। फत्तू दा तैं पता चौल कि एक पारसी सेठ तैं ड्राइवर की आवश्यकता च। फत्तु दा लाइसेंस लेक सेठ म गे। सेठ न ट्रायल ले अर दुसर दिन काम पर आणो ब्वाल। सेठ ड्रीमलैंड सिनेमा हाल अर कई बिजिनेस को स्वामी छौ। दुसर दिन बिटेन फत्तु डा काम पर लग गे। अर भगवान की इन माया ह्वे कि तै दिन पारसी सेठ एक हैक सिनेमा हल को मुकदमा जीत गे। यद्यपि इखम फत्तु दाक क्वी योगदान नि छौ किन्तु सेठ तैं फत्तु दा पारसी सेठ कुण भाग्यशाली लग।
दुसर मैना फत्तु दा तैं रौणो एक बंगला दीण लग गे सेठ कि मैकुण ‘लकी ‘ च। किंतु फत्तू दान ना बोल दे कि इथगा बड़ बंगला को क्या करण जब मीन वापस अपर गाँव हि जाण। सेठ न तब फत्तु दा तैं एक गैरेज दे दे जख पर हाल जन एक लम्बो कक्ष अर द्वी तीन कक्ष छया। सेठ क दबाब को कारण फत्तु दा तैं अपर पत्नी मुंबई लाण पोड़। फत्तु दा क बुलण छौ कि जब वापस घर ही जाण तो पत्नी किलै लाण। पारसी सेठ को तर्क छौ कि ड्राइविंग जटिल कार्य च तो घर म सब सुविधा हूण आवश्यक च। ड्राइवरी म देर सबेर हूंद तो पत्नी क साथ सही हूंद।
फत्तु डा पत्नी बि लै गे। चार वर्षों म द्वी नौन बि ह्वे गेन फिर बि फत्तु दाकि इच्छा ‘घर गांव वापसी ‘ नि मोरी। कक्ष बिंडी छा तो अपर पट्टी अर आस पास की पट्टी वळ आश्रय म हाल म रौण लग गेन।
एक दिन छुटि क दिन रविवार क दिन एक आश्रय म रौण वळ बालम सिंग न ब्वाल , फत्तु दा ! बौ बुन्नी छे बल झुल्ला आदि सँबाळणो कुण कपबोर्ड की आवश्यकता च ” तो फत्तु दा भड़क गे कि जब हमन वापस घर -गां इ जाण तो इथगा बड़ सामान किलै खरीदे जाय। घर वापस जौला तो कोटद्वार तक यु सामन चल जाल दुगड्ड तक बि चल जालो। दुगड्ड से अगनै गांव तक कनकैक पंहुचाण।
कपबोर्ड क स्थान पर मेटल संदूक खरीदे गेन।
बच्चा बड़ ह्वेन तो द्विउं तै मारवाड़ी विद्यालय भिजे गे।
ये अंतराल म फत्तु दा गढ़वाल भ्रातृ मंडल सामजिक सभा क सदस्य बि बौण अर गिरधारी लाल आर्य , सरजू रौत , रामकुमार भट्ट जी , शशि शेखर नैथानी , नौटियाल जी आदि क सम्पर्क म ऐन व यांसे मुकंदी लाल बैरिस्टर , जार्ज भारत मुकंदीलाल , भक्त दर्शन , शिवा नंद नौटियाल , अदि से बि सम्पर्क बढ़। यूं लोगों तै कार से इना उना लिजाणो उत्तरदायित्व बि फत्तु दा क ही हूंद छौ। सेठ कुण फत्तु दा भाग्य की पुड़िया छे तो भौत कम काम फत्तु दा तैं दिए जांद छौ तो कार सामजिक कार्यों म लग जांद छे। भौत बार यूं नेताओं , अर असवाल जी आदि पुछदा बि छा कि भविष्य हेतु मुंबई म क्वी फ़्लैट बि ले ? तो फत्तु दा अपर इच्छा बतांदो छौ कि “जब घर -गांव वापस इ जाण , अपर मड़घट म ही फुकेण तो मुंबई म फ़्लैट या खोली लेक क्या करण ?’
मुंबई म बि गिरधारी लाल आर्य फत्तु दा तैं गोरेगांव लीग जख भूमि आने पौने मूल्य म उपलब्ध छे किंतु फत्तु दा क डायलॉग , “जब घर -गांव वापस इ जाण , अपर मड़घट म ही फुकेण तो मुंबई म फ़्लैट या खोली लेक क्या करण ?” ही आर्य जी कुण उत्तर छौ।
बच्चा बड़ हूणा छा किन्तु धन की समस्या नि ऐ कारण सेठ वेतन वृद्धि करदो हि रौंद छौ।
एक पट्टी वळ क अति दबाब म ऐक शांताक्रूज म द्वी खोली खरीद लेन फत्तु दान। रौण या भविष्य हेतु ना अपितु किराया से लाभ हेतु।
टैक्सी मालक आनंद सिंह नेगी अर उमराव सिंह नेगी फत्तु दा तैं देहरादून अर ऋषिकेश बि ..ल्ही गेन कि कुछ भूमि ,मुल्ये ले। किन्तु फत्तु दा की “जब घर -गांव वापस इ जाण , अपर मड़घट म ही फुकेण तो मुंबई म फ़्लैट या खोली लेक क्या करण ?” मानसिकता न फत्तु दान तीन सौ रुपया बीघा भूमि नेहरूग्राम अर द्वी सौ रुपया बीघा ऋषिकेश म भूमि नि मुल्ये। रब आठ दस बीघा भूमि खरीद ही सकदा छा फत्तु दा।
ये अंतराल म फत्तु दाकि घरवळि बिचारि स्वर्ग चल गे। तो फत्तु दान बड़ नोनाक ब्यौ कर दे। रौणो क क्वी समस्या नि छे।
द्वी नौनु नौकरी मुंबई म लग गे जबकि फत्तु दान पर्यटन कार कि नौनों नौकरी गढ़वाळ म लग जाओ। दुयुं तै रिश्तेदारों क इख कोटद्वार , देहरादून बि भीजे गे। किन्तु नौकरी तख नि लग। तो झख मारि मुंबई म ही नौकरी लग। दुयुं क ब्यौ मुंबई म ह्वे। अब तो फत्तु दा नाती नतण वळ बि छौ।
धीरे धीरे फत्तु दा अर पारसी सेठ बुड्या हूंद गेन। पारसी सेठ तो स्वर्ग चल गेन। पारसी सेठ क नौन फत्तु दा तै वी सम्मान दींदो छौ जो बूबा दींदो छौ किंतु पारसी सेठ क नाती वा बात कन समज सकद छौ। पारसी सेठ क नाती न फत्तु दा तै ड्रीमलैंड सिनेमा हाल म रात क ड्यूटी दे दे। अर जखम फत्तु दा रौंद छौ तैं भूमि विक्रय क निर्णय सेठ क नाती न ले ले। ऐवज म कुछ धन फत्तु दा तैं बि दिए गेन। फत्तु दा तै परिवार सहित शांताक्रूज क खोळी म आण पोड़। भल छौ जो तै समय खोळी ,मुल्ये याल छे तो अब काम ऐ।
फत्तु दा धीरे धीरे अशक्य हूण लग गे। ड्रीमलैंड जाण बि बंद ह्वे। नाती नतण बि नौकरी पर लग गे छा किन्तु “जब घर -गांव वापस इ जाण , अपर मड़घट म ही फुकेण तो मुंबई म फ़्लैट या खोली लेक क्या करण ?'” इच्छा नि मोरी।
खोळी रिडेवलपमेंट प्लान म गे तो खोळी स्थान पर अबि अस्थायी तौर पर ट्रांजिट कैम्प म छा। फत्तु दा क बाच बिलकुल बंद हुईं छे। फत्तु दा सैन करदो छौ कि मि तैं मरणो गां लीजा कि मि तैं म्यार मड़घट म जळाये जाय। किंतु कैक समज म बात नि ऐ।
अर फत्तु दा घर क स्थान पर मुंबई म ही मोर अर अंत्येष्टि बि जुहू -शांताक्रूज श्मशान म ही ह्वे। बिचारो फत्तु दा।