(वियतनामी लोक कथा )
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272 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
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भौत समय पैलाकि छ्वीं छन। एक किसान से सट्यड़ बाणों छौ। तब भैंस क हौर जंगली पशुओं जन तेज दांत छा। तबि सुरक सुरक एक बाग़ आयी अर भैंस से बुलण मिसे गे,” मि शत्रु जन नि आयुं छौं। मि लुकिक प्रतिदिन त्वे दिखणु रौंद। तू इथगा परिश्रम कनै करदि ? मनिख त्यार गोशी शक्ति म ते से हीन , छुट , गंध बि नि पछ्याण वळ ते से इथगा कार्य कन ले सकुद ? तू जबकि वे से दस गुण शक्तशाली छे “
बागक प्रश्न क उत्तर म भैंसन ब्वाल , ” मि नि जणदु किलै पर एक बात सत्य च अर वा च मनिखाक ‘तेज बुद्धि’। “
तब बाग़ किसान म गे अर ब्वाल , ये किसान दादा ! मि तैं थोड़ा सि अपर बुद्धि दे दे। “
किसान न उत्तर दे , ” इ राम दा ! मि तो बुद्धि घर म रखद। क्वी बि किसानी या कार्य करदो बुद्धि लेक नि आंद। अर मीम इथगा बि बिंडी बुद्धि नी कि मि त्वे दे सकूं। “
बाग़ न अति विनती कार। तो किसान बाग़ क बात मानी गे , ” ठीक च मि बुद्धि लेक घर जांदू। किन्तु मि तै त्वे तैं एक पेड़ से बंधण पोड़ल कि तू म्यार भैंस तै नि खै सौक।” बाग़ मान गे , किसान न बाग़ पेड़ से बाँध अर घर चल गे।
कुछ समय उपरान्त किसान घी बिटेन बॉड़ी बौड़ी ऐ तो वैकम सुख्यूं घास क बिठकी छौ। किसान न घास क डोर से बाग़ बाँध दे घास पर आग लगै दे। बाग़ आग म भरचेण मिसे गे अर डा से किराण लग गे। बाग़ किराणु छौ तो किसान न ब्वाल , ” या च मेरी बुद्धि। “
इन सूणी भैंस जोर से हौंस अर वैन अपर मुंड पत्थर पर जोर से लगै दे। वैक मथि पाळी दांत टुट गेन। तब बिटेन भैंस क मथि पाळी दांत आण बंद ह्वे गेन।
इन म बाग़ क चरों और जो घासक डोर से व जळ गे अर बाग़ स्वतंत्र ह्वेक चिल्लाँद चिल्लाँद जंगळ ओर भाजी गे। जखम जखम घास क डोर न बाग़ जळायी वो काळ पड़ गेन। यी कारण च बाग़ पर काळी धारी हूंदन।