(सनातन धर्मम शिल्पियों क आदर कथा )
284 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
एलोरा म कैलाश मन्दिर सम्पूर्ण ह्वे गे छौ। सरा राष्ट्रकूट राष्ट्र म इ ना अपितु भारत म सनातनियों मध्य प्रसन्नता लहर मारणी छे कि एलोरा म भव्य कैलाश मंदिर निर्मित ह्वे गे अर प्रतापी राजा राष्ट्रकुल नरेश कृष्ण कुछ समय उपरान्त कैलाश मंदिर म प्रार्थना कर्मकांड संपन कारल अर तब समस्त भारतवासी बि कैलाश दर्शन करि साकल। बुद्ध व जैन जनता बि अति प्रसन्न छे कि निकट इ बौद्ध व जैन कंदरा गृह बि निर्मित छा हुयां जख बौद्ध अर जैन ऋषि आत्मचिंतन , ध्यान कौर सकदा छा अर जनता तैं उपदेश बि दे सकदा छा।
कैलाश मंदिर का शिल्पी बि अति प्रसन्न छा। पूरा महाराष्ट्र बिटेन लोगों की प्रार्थना छे कि हमर जिना बि इनि मंदिर बणै जा। कैलाश मंदिर का शिल्पी उत्सव मनाणा छा कि राष्ट्रकूट राजधानी मान्यखेत से राजा कृष्ण क भौत संख्या म दूत ऐन तो शिल्पी कुछ व्याकुल बि ह्वेन। शंका हूण ही छौ। राजा न सूचना दे कि कैलाश मंदिर को औपचारिक खुलण से पैल कान्हेश्वरा , शुभतुंगा , अकलवर्षा , पृथ्वी बल्लभ अर शिव बल्ल्भ महाराजा कृष्ण
इथगा महान कार्य हेतु सभी शिल्प परिवारों क स्वागत व जनता समिण अभिनंदन करण चाणा छन। महाराज क सलाह अनुसार एलोरा शिल्पीयोंन अपर अपर मुंडीत से इके प्रतिनिधि भ्याज तौं मध्य कुछ श्रेणी शिल्पी महिला बि छे।
सब्युं तैं अर्थात कोकसा शिल्पी क उत्तराधिकारी लघभग सौ शिल्पियों व तौंक नेता मानकेश्वर तैं एलोरा से डोली म बिठैक राष्ट्रकूट राजधानी मन्याखेत पंहुचाये गेन। तख तौंकुण नई वसाहत बसाये गे छे जख सब प्रकार की सुविधा शिल्पियों तैं दिए गे।
शिल्पियों को विशाल जनसमूह क समिण स्वागत समारोह म पैल एक विद्वान् मंत्री न कैलाश मंदिर को बारा म बताई , “हम सब तैं तैं विशेषकर हमर प्रभु कान्हेश्वरा , शुभतुंगा , अकलवर्षा , पृथ्वी बल्लभ अर शिव बल्ल्भ महाराजा कृष्ण श्री तैं गर्व च कि हमर शिल्पियों न पहाड़ कोरी द्रविड़ शैली म शिव मंदिर निर्मित ह्वे। केवल एक चट्टान म यु मंदिर निर्मित ह्वे। मंदिर की ऊंचाई 276 फीट अर 154 फ़ीट चौड़ की चट्टान काटी निर्मित ह्वे । यीं चट्टान सहस्त्रों किलो भार क पाठर काटी भैर करे गेन। उपरान्त पैल खंड तै हटाये गे। तब तै पर्वत खंड तैं भितर -भैर कटे गेन , पैल शिखर निर्मित ह्वेन। मंदिर म समिण म नंदी छन। अलग से विष्णु मंदिर बि च। चट्मटान कटान से हाभारत कथा , रामायण कथा , आदि कथा श्निरृंखला दिखाए गेन। रावण द्वारा शिव पूरी हिलाण आदि इन लगद जन हम अछेकि दिखणा होला। “
एक उपरान्त महाराज कृष्ण न सभी शिल्पियों क खुट ध्वेन अर एलोरा मंदिर निर्माण क बच्चा से लेक बूढ़ों क एक एकमुख्य शिल्पी क नाम ले कि यूं बिन कैलाश मंदिर निर्माण संभव नि छौ।
अंतम महाराज कृष्ण न अपर व्यक्त्व म ब्वाल , हम कथगा बि धन धान्य शिल्पियों तैं द्योला वो कम ही होलू , हमर शिल्पी जब जन्म लीन्दन तो शुरू म बचपन से ही पाषाण कटान शिल्प की प्रशिक्षण लीण शुरू कौर दींद अर युवा हूंद हूंद पारंगत ह्वे जांद । हमर शिल्पियों म कार्य आबंटन शुरू से ही बचपन से शुरू ह्वे जांद। प्रत्येक शिल्पी अलग अलग शिल्प म पारंगत हो हेतु बचपन से ही एक शिल्प पर प्रशिक्षण दिए जांद। हमर शिल्पियों क विश्वविद्यालय ऊखी हूंद जख वो कार्य करदन। अब तक तो राष्ट्रकूट राज यूं शिल्पियों तै आस पास का ग्राम भेंट म दियां छा कि गाँवों क कर से शस्त्रों शिल्पी जीवन यापन कार साकन। चूँकि कैलाश मंदिर अर अन्य कंदरा कक्षों क कार्य पुर ह्वे गे तो मि घोष्णा करदो कि जो भी गाँव यूं शिल्पियों तै जीवन यापन हेतु दियां छा वो तो यूं म डाला हि अब वेरुल , प्रतिष्ठान आदि क निकट दस गुणा भूमि यूं शिल्पकारों तै उपहार म दिये जाणी च कि यी कोकसे वंशज तैं जीवन यापन म क्वी असुविधा न हो। जय कैलाश जै शिल्प “
करतल ध्वनि से जनता न सभी शिल्पियों (महिला भी छे ) को स्वागत कार। महाराजा कृष्णन भरपूर स्वर्ण व रजत पिंड प्रत्येक शिल्पी तैं भेंट म दे अर गाजा बाजा क साथ सब तैं डोलाओं म बिठैक बड़ा आदर से सब शिल्पियों क विदाई करे गे।
या च सनातनियों क शिल्पियों की आदर कथा।
*घटना इतिहास सम्मत हूणै उत्तरदायित्व लिख्वार नि लींदो।