
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
ज्ञान नी कि जब बि ब्योली नै नै घर अर्थात ससुराल आंदि तो तैं ब्योली तैं नयो घर म अनुकूलन हेतु पुळेणो स्थान पर हीन भावना भरणो कार्य किलै करे जांद होलु धौं। जन कॉलेजों म रैगिंग हूंद तनि नौली ब्योली दगड़ व्यवहार हूंद। सरासर उत्पीड़न ! .
कथा प्रथम विश्व युद्ध उपरान्त समौ को च। राधु फ्रांस से युद्ध म सुखी शांति घर बौड़ी ऐ। अंग्रेज शासन न हवलदार की पदवी देक राधू तैं सेवा निवृत कर दे कारण राधु क खुट पर गोली क इन चोट लग गे छे कि राधु सेना लैक नि छौ किन्तु शरीर से ठीक छौ। केवल सेना क मापदंड म घायल छौ। राधु अबि तलक अणब्यवा छौ। जनि युद्ध से घर आई वैक ब्यौ क बात शुरू ह्वे अर भुभना दगड़ मंगणी ह्वे गे। मंगसिर म ब्यौ ह्वे। अब जब हवलदार जीक ब्यौ हो तो ब्यौ म बड़ो टॉम झाम हूणो छौ। चार पांच गांवक नामी लोक ब्यौ म गेन। ब्योली लाणो दिन उपरान्त द्वार बाट ह्वे। साधारण बरात की संख्या म ही लोक द्वारबाट म गे छा। ब्याळि सब पौण वापस ऐ छा। आज पौणुं म मुख्य छा राधु क ममा थोकदार गजै अर एक द्वी हौर।
ब्योली न बरात आणो दुसर दिन परसाद पकैक शगुन को कार्य हुए गे छौ।
पर द्वारबाट आणो उपरान्त आज सुबेर सुबेर थोकदार गजै न भुभना ही ना राधु क ब्वे कुण बि बिकट समस्या खड़ कर दे। गजै न ब्योली एक शर्त रख दे कि सच्ची अपर बुबा क बेटी छै तो हम तैं नक्वळ , कल्यो इन खला जो हमन कबि नि सूण हो अर दगड़ म स्वादिस्ट बि अर भोजन पकाण म कैकि बि सहायता नि लीण । राधु क ब्वे , चाचि , बडा लोक कुछ नि बोल सकिन। थोकदार जी की बात छे तो कटण वळ कु ह्वे सकद। भुभना न शर्त बिन विवाद चर्चा, को स्वीकार कर दे।
उन भुभना क आंसु आणा छा कि शर्त तो मीन स्वीकार कोर याल। किन्तु कन क्या च। सुचद सुचद ददि क सीख याद आयी कि जब बि भवंर या समस्या म फंस जाओ तो मन अर बुद्धि तैं हलचल से दूर राखो। दादि से भुभना तैं याद आयी कि ददि न एक इन भोजन क बारा म बताई छौ जो भुभना क बूडददि न कबि पकाई छौ तब गढ़वाल म सूखा छौ पड्यूं । सूखा समय बि भौत बार स्वाद खुजे जांद छौ। अब ये भोजन क बारा म क्वी नि जणदो छौ।
भुभना तै ये भोजन क कथा ददि न सुणै छौ कि कन बूडददि न यु भोजन पकाई छौ। ददि न बताई कि भोजन पकाण भौत सि किच किच च तो लोग ये भोजन तै पकाण बिसर गेन।
भुभना तैं पूरो विश्वास छौ कि वा ममाससुर की परीक्षा म सफल ह्वेलि। अपर सासु से कुछ सूचना मांगिक भुभना गांव से कुछ दूर गे अर एक तिमल क डाळ बिटेन काचा से काचा तिमलों हरा हरा दाण लेकि आयी। हरा दाणो तैं काटिक भुभना न तिमला दाण छांछ म उबाळ। फिर तौं उबळ्यां दाणों म मर्च , हल्दी , ल्ह्यासण , आदो , धणिया डाळि भैर उरख्यळ म कूटी ल्है गे। अब दाण दाळ क मस्यट जन छौ। ये मस्यट म भुभना न कुछ देर रण दे। फिर भट्ट भूजिन अर जंदर म पीस दिनी। फिर ये भट्टों क आटो म लिम्बु रस , लूण , मर्च मिलैक चटनी बणायी। ग्युं क आटो ओल। अपर सासु तैं बोलिक चार पौण बुलाये गेन। पौण रुस्वड़ म बैठिन .
अब भुभना न तिमल क मस्यट म लूण मिलै अर तवा चुल म धौर अर मोटा पिंडी (आटा क ढिंढी ) हथ म चौड़ गोल कार अर तिमल क मस्यट भौर अर मोटी भरीं रोटी पकाई।
एक रोटिक चार भाग कौरी थोकदार सहित अन्य तीनो तै थाळी म एक भाग धरे गे। दगड़ म घी अर चटनी बि दिए गे।
पौणुंन चौथाई रोटी घी मा अर चटनी संग खायी तो सब आश्चर्यचकित ह्वे गेन कि इथगा स्वादिस्ट रोटी ! चौथाई रोटी चट समाप्त ह्वे गे। कुछ देर म पुनः प्रत्येक पौण क थाळी म चौथाई भरीं रोटी धरे गे। अलग किन्तु स्वादिस्ट हूणो कारण सबुंन रोटी चट कर दे। इनि करदा करदा सब चार चार रोटी खै गेन। फिर भि कैकि धीत नि भोरे।
पंचौ रोटी खैक थोकदार जी न ब्वाल , ” बेटी तू ब्वारी नि हूंदी तो मि त्यार खुट म मुंड धरदो। केक भरीं रोटी च ? इतना स्वादिस्ट मीन कबि नि खै। मीन हार मान याल। जरा इन तो बताओ कि केक रोटी च ?”
भुभना न बताई कि काचो तिमलाक दाणो।
अब भुभना क नणद न शेष रोटी पकैन।
भौत सा वर्षों उपरान्त लुप्त भोजन तैं पुनर्जीवित ह्वे।