285 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
ताजमहल बण हि गे छौ। बस कुछ कार्य शेष छौ। पूनम की एक रात ताजमहल क निरीक्षणौ कुण बादशाह शाहजहां आयी अर स्वयं ही मोहित ह्वे गे कि इथगा सुंदर , आकरसगक मकबरा बण गे।
शाहजहां चकित छौ तो भारत ही ना पश्चिम म अरब देशों , उज्बेकिस्तान कजिकस्तान आदि म बि निर्माण से पैलि ताजमहल की प्रसिद्धि फ़ैल गे छे। दुसर दिन दिन म शाहजहां अपर विशेष मंत्री अर सलाहकारों मध्य चर्चा म संलग्न छौ।
” बादशाह सलामत ! न पैल ना वर्तमान अर ना ही भविष्य म इन मकबरा या भवन निर्माण ह्वे सकद। ” एक मंत्री न ब्वाल।
दूसरण हां हाँ भौत, ” हाँ मालिक। वास्तुकला म ताजमहल की बराबरी ह्वे इ नि सकद। संगमरमर को इन कार्य अबि रक कभी नि ह्वे। “
” बडशाह सलामत तो अमर ह्वे गेन। ” हैंकान ब्वाल।
हैंक न ब्वाल , “हजारों सदियों तक लोक बादशाह शाहजहां जी तै याद कारल “
शाहजहां तैं बि लग गे छौ कि या इमारत न भूतो न भविष्य की च। गर्व से वैक मन व बुद्धि भर गे छे। मुस्लिम ह्वेक बि वेक मन म विचार आयी कि वो स्वयम दुसर खुदा ह्वे गे जैन इन नायब इमारत बणवाई।
जनि शाहजहां क मन म घमंड आयी कि वो दुसर खुदा च तो वैक मन म भय बि ऐ गे अर वै पर झुरझुरी शुरू ह्वे गे। या झुरझुर्री अलग प्रकारै छे। श्याम दैं शाहजहां न अपर भय अपर एक विश्वासपात्र तैं बताई , ” यदि हमर यी कै हैंक बादशाह क इख कार्य कारल तो इनि ताजमहल कथगा वर्षों म निर्मित ह्वे जाल ?”
” मेरी समझ से दस वर्षों म किलैकि ताजमहल निर्माण म सबसे बिंडी समय वास्तु चित्र , निर्माण करणों शैली क विचार पर लग व खनिजों से संगमरमर कटान पर लग। यदि यी सब ज्ञान पैलि मिल जालो तो दुसर ताजमहल इमारत केवल दस वर्षों म निर्मित ह्वे जाली। ” विश्वासपात्र सलाहकार न उत्तर दे।
हहजहं न अपर भय स्रोत्र बताई , ” मि तैं अति भय लगणु च यदि व्यू ज्ञान (Know -how ) आर वास्तु (materials ) कै हैंक तैं मिल जाल तो दुसर ताजमहल बि निर्मित ह्वे जाल। अर मि चांदो कि कभी भी दुसर ताजमहल नि निर्मित ह्वे साको। ”
भौत समय तक दुयुं म गुप्त छ्वीं लगणा रैन। अंत म शाहजहां न निर्णय सुणायी , अर्थात मुख्य वास्तुकार , रिखडाकार , शिल्पियों क हाथ कटण आवश्यक च ?”
विश्वसनीय सलाहकार न शाहजहां की बात तै अगनै बढ़ाई , ” यी ना अपितु कुछ ग्यानी वास्तु शिल्पियों क हथ हि ना अपितु जीव बि कटण आवश्यक च कि वो ताजमहल निर्माण की कला कै तैं नि समझायी साकन। “
शाहजहां निर्णय दे , ” ठीक च ताजमहल निर्माण पूरो हूणो उपरांत मि जश्न म यूं तै इनाम देलु। अर आठ दस दिन म चिन्हित शिल्पियों क हाथ कटणो गुप्त इंतजाम कारो व कुछ शिल्पियों क हथ ही ना जीव बि कटणो इंतजाम कारो। पर ख्याल राखो कि यी सब इन ढंग से ही कि बादशाह क आदेश नि दिखयावो। “
विश्वास पात्र इन ख़ुफ़िया जासूसों व हत्त्यारों खोज म चल गे जो विशेष शिल्पियों व वास्तुकारों हाथ काट द्यावन अर विशेष ज्ञानियों क जीव बि। अर यु सब इन दिखे जाव कि जाति बैमनश्य लगे।
ताजमहल निर्माण क ख़ुशी म जश्न मनाणो कुछ महीनों उपरान्त भौत सा शिल्पियों क हाथ कटणो अर कुछ क जीव कटणो घटना ह्वेन। कैन नि चितायी कि वास्तविक कार्य यो बादशाह शाहजहां को निर्देश से ह्वे।
पर बुल्दन ना कि इश्क , मुश्क अर दुर्दांत अमानुषिक हिंसा की बात छुपाण से नि छुपदी। धीरे धीरे जग जाहिर ह्वे कि शाहजहां न अमानुषिक कार्य कराई।
घमंड न निर्मम अर दुर्दांत , रागसी , अमानुषिक हत्त्या करैन। तब से भारत म मकान निर्माण उपरांत शिल्पियों क शरीर पर घाव करणों रिवाज ही चल गे।
(कथा इतिहास सम्मत नी च। घमंड दर्शाणो हेतु कल्पित कथा )