(वियतनामी लोक कथा )
270 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
वियतनाम क एक गांव म एक युवा कृषक रौंद छौ। एक दिन बौण म लखड़ कटद तैन द्याख एक काळो कवा एक गौरिया तै मारणु छौ । श्रमिक तै गौरया पर करुणा आयी अर वैन एक पत्थर क टुकड़ा कवा जीना चुलै। पत्थर से कवा घैल ह्वे गे , कवन उडद उडद ब्वाल कि वो कृषक से अवश्य प्रतिशोध ल्यालो। कृषक शीघ्रतया से मोरदि गौरया तै पकड़नो गे ार गौरया वैक हथ म ऐ गे। हथुं गर्मी से गौरया पर जान ऐ गे। उड़न से पैल गौरया न युवक तै धन्यवाद दे अर ब्वाल कि कुछ समय उपरान्त वा उपहार लाली ।
कुछ समय उपरान्त गौरया बौड़ी आयी अर छुटढकनदार हांडी लेक तैन हांडी युवा क निकट धार अर ब्वाल , “यीं छुट हांडी म जादुई जल च जो मरण वळो तै जीवट कर सकद अर युवा बणै सकद। ये से सब विकसित होला। यु जल कखि हौर उपलब्ध नी। ” अर गौरया उड़ गे।
कृषक न हांडी क ढक्क्न ख्वाल अर जल क सुगंध सूँघि स्वाच कि इन जल मे जन निर्धन ना धनी महिलाओं तै उपयोग करण चयेंद। घर ऐक वैन वा हांडी छत तौळ लुकै दे।
कृषक अपर कृषि कार्यों म इथगा व्यस्त ह्वे कि गौरया द्वारा दियुं उपहार विषय म विसर गे।
कुछ समय उपरान्त कृषक न ब्यौ कार। वेकी घरवळि बि कामगति व दयालु छे। दुयुं म एक हैंक से प्रीत भौत छौ।
एक दिन जब वींक पति हौळ लगाणो जयुं छौ वा घर म झाड़ पोछ करणी छे। वींक दृष्टि छत तौळ बौळी पुटुक हांडी पर पोड़ , स्टूल म चढ़ी अर वींन हांडी ले , ढक्क्न ख्वाल अर जादुई जल सूंघ। आकर्षक सुगंध सूंघी तैन समज कि यु जल साबुण च। वा वे जल से नये गे अर वे अति बिगरैली सुंदरी बण गे। जु पाणि नयाण से बौग तो भैर सग्वड़ म गे तो प्याज क जलड़ों म गे। प्याज हरा हरा ह्वे गेन , सि शीघ्रता से बढ़ण लगिन , तौंक दाण बड़ा बड़ा अर ड़ंकूळ लाठ जन विकसित ह्वेन।
कृषक घर ऐ तो वैन एक अपरिचित सुंदर बिगरैली महिला देखि। जब कृषक पत्नी न ध्वनि दे तब कृषक अपर घरवळि पछ्याण। तब वैन अपर घरवळि तैं कवा , गौरया की तै कथा सुणै।
अपर पत्नी रूप से वो इथगा मोहित ह्वे कि वो वीं तैं प्रत्येक समय दिखणु ही रौंद छे। सब कार्य चौपट ह्वे गे। तब कृषि करण आवश्यक च सोचिक कृषक न चित्रकार बलैक पत्नी क चित्र बण वै। जब बि कृषि या अन्य कार्य से भैर जाओ तो वो पत्नी क चित्र दगड़म रखद छौ।
एक दिन जब खेत क डाळम वैन पत्नी क चित्र टंगणो उपरान्त वो हौळ लगाणू छौ तो प्रतिशोध लीणो भावना से वो कवा चित्र लीगे। युवा कृषक न पीछा कार पर कवा अदृश्य ह्वे गे।
वो कवा उड़द उड़द राजमहल म गे अर कवा न वो चित्र महल म छोड़ दे। राजा न चित्र देख अर इथगा बिगरैली महिला क चित्र देखि मोहित ह्वे गे। राजा क इच्छा वीं महिला से ब्यौ करणो ह्वे गे। वैन अपर सैनिकों तै आदेश दे कि चित्र वळि महिला तै पकड़िक लाओ।
सैनिक भौत दिनों तक चित्र लेक इना उना डबकणा रैन किन्तु वा बिगरैली बांद नि मील।
जब सैनिक खुज्यांद -खुज्यांद कृषक क क्षेत्र म ऐना। सुचना मील कि वा बांद कृषक पत्नी च तो सैनिक कृषक पत्नी तैं पिंस म बिठैक महल म लै गेन।
राजा प्रसन्न छौ कि बांद मिल गे। किन्तु बांद न बाळ धूण , कंगल लगाण, नया झुल्ला पैरण बंद कर दे , बुलण , हंसण सब बंद कर दे।
राजा न आदेश दे कि जु बि वीं बांद तै हंसाल वै तै पद व भौत बड़ो परुष्कार दिए जाल।
भौत सा जोकर , हंसोड्या बादी बादण ऐन अपर करतब दिखैक गेन किन्तु बांद ा अबचळ , मौन ही राई।
कृषक तै पता चल कि राजा न पुरुष्कार धरयुं च तो वो राजधानी जाणो उद्यत ह्वे। घरवळि छुड़ाणो हेतु वो उद्यत ह्वे। वैन सग्वड़ बिटेन बड़ा बड़ा प्याज उखाड़ अर कारवां म कंधों म लेकि महल जिना चल पड़ , महल को अगनै वो चिल्लाण लग गे –
म्यार प्याजक डंकुळ बांस बरोबर म्वाट अर लम्बा छन
म्यार प्याजक घिन्डक बड़ा बड़ा गागर बरोबर छन
कु क्रय कारल म्यार प्याज ?
कु क्रय कारल म्यार प्याज ?
कृषक की ध्वनि पछ्याणिक बिगरैली बांद न सेविकाओं तै कृषक बुलाणो ब्वाल।
राजा न द्याख कि कृषक देखि बांद मुस्कराण मिसे। तो वैन कृषक तै आदेश दे कि तू म्यार राजशी झुल्ला पेअर अर मि त्यार झुल्ला पैरलु।
निर्धन कृषक को झुल्ला पैरिक प्याज लेक राजा बिगरैली बांद क निकट गे।
बिगरैली बांद राजा क कुत्सित विचार समज गे। वींन अपर सेविकाओं से राजा पर शिकारी कित्ता छुड़वै देन। भेड़िया जन कुत्तों न राजा तै निर्धन जाणी तै धधोड़ दे।
कृषक पत्नी न अपर पति से सुरक ब्वाल , ” शीघ्रता से राजगद्दी म बैठ “
कृषक राजगद्दी म बैठ। सभा म सब्युंन श्रद्धा से सिर झुकाई अर कृषक राजा बण गे। दुयुंन प्रसन्नता पूर्वक जीवन बितायी।