270 से बिंडी गढ़वळि कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
मेरो ज्यु बुल्याणु छौ अफु तैं थीँच द्यूं, पीट द्यूं पता नी क्या से क्या कर द्यूं। हस्मिता दगड़ जु व्यवहार कार वो मानवीय अर व्यवहारिक दृष्टि से भल नि छे। बिचारी ! .
आज अपर व्यवहार पर लजा बि आणि छे अर रोष बि। लज्जा से आंसु आण वळ छा पर मीन रोक देन। भूक तो लगीं छे किंतु भूक सर्वथा समाप्त ह्वे गे। जै भोजन क हेतु मीन विचारि हस्मिता दगड़ दुर्व्यवहार कार वो करण कठण ह्वे गे। एक गफा भात जिव तक ली ग्यों कि उलटी हूणो ऐ गे। मीन मेरी प्रिय उड़द की दाळ ,गरम गरम भात , कटहल को अचार की भरीं थाळी छोड़ दे। मि मेज म खाणो छोड़ दे अर हथ धूणो चल ग्यों।
घरवळि न ताना दींद ब्वाल , ” क्रोध तो तुम यीं आयु म बि नि छोड़ सकणा छा अर नातियों तै अड़ाणा रौंदा कि क्रोध निर्धनता की जननी च। कथा तो तुम सुणांदा कि दुर्बासा ऋषि ब्रह्मा बरोबर छा किन्तु क्रोध न एक सामान्य ऋषि तक सीमित कर दे। पर क्रोध पर तुमर ही क्वी रोक नी। “
उन सि बात हूंदी तो मि कुछ बुल्दो किंतु आज मीन सीमा पार जि कर दे छे।
हस्मिता दगड़ मेरो अर पत्नी क मोह सि छौ। भौत सि हीन लक्षणों उपरान्त बि हम वीं तै भल मनद छा। समय कुसमय पर सौ सहायता करणा रौंदा। मैना क पुरण समाचार पत्र हम नि बिचदा वीं तैं इ दे दींदा कि बच्चों कुण टॉफी टॉफी ली जा। कांच या प्लास्टिक क भारी बोतल बि वीं तै दे दींदा कि व यूं तै बेचिक बच्चों कुण नमकीन ली जा।
भौत बार वा मेकुण बुल्दी ” दादा जी भूक लगीं च ” तो मि फ्रिज से ककड़ी या मूळी दे द्यूंद कि चलो कुछ देर यींक भूक तो मर जा.
हस्मिता कुण कति दैं ब्वाल बि च कि जब मि खाणा बैठ्युं हूं या खाणा खाण वळ हूं त नि आण। वींक बान हि अब मि सवा बजि दिनम छोड़ि साढ़े बारा बजि या पौणे एक बजि भोजन शुरू करदो कि एक बजि तक मि खाणा खै ल्यूं। मि खाणो हेतु उद्यत हूणू छौ अर अफकुण प्याज -ककड़ी कटणो उपरान्त ब्याळ्यो बच्यूं भात तै तवा म कड़कड़ो भूरा करणु छौ। पत्नी डेढ़ वर्षकुल नाती तै खलाणो कार्य म संलग्न छे अर्थात ाजक भात अर दाळ मिक्सी म पीसणि छे कि हस्मिता ऐ गे।
हस्मिता हमर घर क झाड़ू पोछा लगान्दि अर भांड धूंद। मुंबई म तौंकुण ‘ बाई’ बुल्दन। व दिन म भोजन उपरान्त आंदि कि हमर चर्री समय क भांड बि धुये जावन अर झाड़ू पोछा बि।
भौत बार वींकुण मना कार कि म्यार खाणो समय कत्ते नि आण। मि तै यदि क्वी खाणा खांद दैं क्वी झाड़ू लगाओ तो इतना क्रोध आंद कि क्या बोल। भौत दैं सौत इंडियन होटलों म खांद दै झाड़ू लगद तो मि खाणा छोड़ दींदु अर होटल वळ से झगड़ा शुरू कर दींदो।
मि तै सामान्य भूक लगीं छे , भात कडकड़ो करणु छौं कि हस्मिता ऐ गे अर मि तै क्रोध ऐ गे कि इथगा बोलणो उपरान्त बि हस्मिता नी मनणी। मीन क्रोध म तवा क भात जोर से किचन प्लेटफार्म म छोड़ दे। भात सरा प्लेटफार्म पर पशर गे। कुछ कडकड़ो भात तवा म बच्युं रै गे
हस्मिता समज गे कि मि वीं पर क्रोधित होउ। वा भाग सि गे।
पत्नी न ब्वाल , ” इन बि क्या क्रोध अरे आज वीं तैं कुछ कार्य रै हॉल जन बच्चा तै स्कुल लाण या कुछ हौर। “
मीन कुछ नि ब्वाल।
हस्मिता लगभग चार बजि आयी अर पत्नी से हिसाब किताब करणो बुलण लग गे। पत्नी न ब्वाल , ” हिसाब किताब तो ब्वारी ही कारली। पर इन बता तू कार्य किलै छुड़नी छे ?”
” दादा जी तो म्यार दगड़ भल व्यवहार करदा छा। आज तो भौत बुर व्यवहार कार। “
पत्नी न मै भट्याइ अर ब्वाल , ” हस्मिता तैं समझाओ कि तुम तैं खांद दै भौत क्रोध किलै आंद ? किलै तुम आगक ग्वाळा ह्वे जांदा खांद दे झाड़ू क आशंका से ही ?”
तब मीन भेद ख्वाल –
निर्धनता का दिन छा। आलु पालु खैक परिवारक जीवन यापन हूणु छौ। एक दिन स्कुल बिटेन घर औं सब्युंन भोजन कर याल छौ। भूक भौत लगीं छे। आज घर म फाणु अर झंग्वर बण्यू छौ। ब्वेन थाळी म भोजन धार मि खाणा खाणु छौ कि ब्वेन झाड़ू लगाण शुरू कर दे अर भोजन म खौड़ कत्यार हूंद तो क्वी बात नी मर्यूं झौड़ा संगुळ बि पड़ गे। खाणा छुड़न पोड़। घर म हौर कुछ नि छौ अर स्याम तक मि तैं भुकि रौण पोड़। बस तब बिटेन इ भोजन समय झाडू लगद में क्रोध ऐ जांद। मीन फौड़ म बि खाण बंद कर दे तखम बि भौत दैं बीच झाड़ू लगाई दींदन।