(वियतनामी प्रेम लोक कथा )
270 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
भौत पुरण छ्वीं छन। वियतनामम म एक चीनी मूल को बड़ धनी रौंद छौ। तैकि एकि नौनी छे। स्यु अपर इकलौती नौनी से इथगा प्यार करदो छौ कि बेटी तैं क्वी हानि नि हो हेतु तैन बेटी एक पहाड़ क चुप्पा म एक भव्य महल म रख दे। वींकुण सब सुविधा छे किंतु वा महल से भैर नि जै सकदी छे।
भौत मूल्यवान रेशमा क गद्दों म स्या रौंदि छे ; भौत सा रुस्वळ तैंकी सेवा म बनि बनि व्यंजन पकाणो छ। महान संगीतकार तैं संगीत सुणानो महल म छा। वींन भैराक जग कबि नि देख छौ। तैं ज्ञान नि छौ ठोकर का पत्थर क्या हूंदन , शीत ऋतू म पाळो शीत क्या हूंद। रुड़ियोन म तीस क्या हूंद , उमस क्या हूंद., बरखा म कीच क्या हूंद। तैंको जग एक महल को एक भव्य कक्ष तक सीमित छौ। न हि तैंन कबि दगुड़ कार या दगड्या क अनुभव पायी। कक्ष म पीली धूप किरण छोड़ि घाम को क्वी अनुभव तैंन नि पायी।
एक दिन की छ्वीं छन , स्या छोरी अपर कक्ष म मोरी म बैठि तौळ नदियों छाल मध्य म दिखणि छे कि तैंन दूर एक नाविक द्याख जो हलकद नाव तैं शांत स्थल म लीग अर बंसुळी बजाण मिसे गे। बंसुळी धुन तैंक कंदूड़ म पोड़ जन बुलया स्वर्गलोक को संगीत हो। बंसुळी ध्वनि से वा मदहोश ह्वे गे। कुछ समय उपरान्त नाव व नाविक दूर हूंद गेन। चीनी क बेटी न अनुमान लगाई कि इथगा मधुर बंसुळी बजाण वळ अवश्य हि आकर्षक , युवा व शक्तिशाली नाविक होलु।
सुपिन म बि तैंन नाविक क दगड़ नाव म ात्घ्कूलियन खिलदा द्याख। किलोल करदो द्याख। आनंद लींद द्याख।
सुपिन से उठि वा मोरिम गे। वीं तैं बंसुळी मधुर संगीत सुणाई दे। वा मदहोश हूंद गे। नाविक तक संदेश भिजणो हेतु वींन फूलों क पंखुड़ी तोड़ि नाविक जिना चुलाई। पंखुड़ी नाविक तक पौंछिन। नाविक न देख कि क्वी आकृति खिड़की म बैठीं च।
एक दिन एक भल मनिखन तै नाविक तै पूछ कि इथगा सुरेला बंसुळी कैकुण बजांदी। नाविक न पहड़ि पर छुटी सि मोरी जिना अंगुळी कार, ” मि नि जणदु वा को च। बस व पंखुड़ी चुलांद अर मि बंसुळी बजांदु। “
” तू बड़ो मूर्ख छे व धनी चीनी क सुंदर बेटी च जैंक दगड़ ब्यौ करणो उद्यत छन। तु कन जणली कि वा तैसे प्रेम कारली ?” बट्योइ (पथिक) को उत्तर छौ।
नाविक यूं बथों से आशाहीन ह्वे गे , अर वो नदी छोड़ि कखि चल गे। नौनी मोरी म आयी अर नाविक क आणो प्रतीक्षा करण लग गे। किन्तु नाविक नि आयी। कत्ति दिन तक वींन प्रतीक्षा कार किन्तु नाविक को दर्शन नि ह्वेन ना ही बंसुळी स्वर सुणाइन। वा धीरे धीरे रोगी हूंद गे अर अति रोगी ह्वे गे।
चीनी धनी तै नाविक की बातो ज्ञान ह्वे तो वो क्रोधित ह्वे गे। किन्तु वैन चिकत्स्क बुलैन। चिकत्स्क असफल ह्वे गेन। व निश्छल ह्वे गे रै।
अंतत: चीनी न सेवकों तै वै नाविक लाणो आदेश दे। सेवक नाविक तै बाँधी महल म लै गेन। युवा नाविक समस्याग्रस्त छौ कि के अपराध म वै तै राजा क इख लये गे।
चीन जमींदार न ब्वाल , ” तू बंसुळी बजा। यदि तेरी धुन से मेरी बेटी निरोगी ह्वे जाली तो मि त्यार ब्यौ बेटी दगड़ कर द्योलु। “
उत्साह म नाविक न बंसुळी बजायी अर बंसुळी ध्वनि सूणी धनी क बेटी हरकण -फरकण मिसे गे। युवती न सेविकाओं तैं सहायता करणों संकेत देन अर उखम तक गे जखम नाविक बंसुळी बजाणु छौ। नाविक देखि नौनी मूर्छित हूण वळ छे। नाविक एक भद्दो मनिख छौ। वीं तै अपर मूर्खता पर लज्जा आयी कि भद्दो मनिख से प्रेम ह्वे।
पिता म बोली नाविक तै वापस भेज। वींन सौगंध खायी कि वा मोरी म नि बैठली। नाविक को हृदय टूट गे व कुछ दिन म लोक वैको संगीत बि बिसर गेन। जु वै तै छुड़नो ऐ छा ना ही ऊंन वेक शरीर द्याख ना ही बंसुळी।
तौंन वेक बिछौना म एक हरिताश्म पत्थर पड्युं छौ। वो वे पत्थर तैं सुनार म ली गेन। वैन तै पत्थर तै प्याला म परिवर्तित कर दे।
हरिताश्म पत्थर को प्याला बिकदो बिकदो चीनी जमींदार म पौंछ। जमींदार न आज्ञा दे कि मेरी बेटी तैं ये ही प्याला म पाणी पिलाये जाय। जब वा प्याला से पाणी पीणो उद्यत ह्वे अर वींन प्याला ओंठ पर लगाई कि मधुर मधुर बंसुळी ध्वनि बजण मिसे गे। अब नौनी न ब्वाल , ” तेरो प्रेम सच्चो छौ। मि ही गलत छौ। ” वींक आंसू प्याला म पोड़िन अर प्याला टूट गे। टुकड़ों म वायु ऐ अर भैर गे।
भैर बिटेन मधुर संगीत , प्रसन्नता भर्यु संगीत मोरी मार्ग से भितर आयी नाविक की आत्मा प्रसन्न ह्वे कि वैन अंततः प्रेम जीत याल।