उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
270 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
गुरु द्रोणाचार्य महाभारत का प्रमुख पात्रों में से एक पात्र छन द्रोणाचार्य कौरवों पांडवों क गुरु छा । द्रोणाचार्य गंगाद्वार (कनखल , हरिद्वार ) का एक प्रमुख ऋषि भारद्वाज अर घृताची क पुत्र छा।
यूंको जन्म विषय म द्वी कथा छन। एक कथा अनुसार एक दिन ऋषि भारद्वाज नदी म स्नान कौरी भैर आणा छा कि तौंन धृताची अप्सरा तै नंगे नयांद देख तो कामातुर ह्वैक तौंक वीर्य स्खलन ह्वे गे अर तौन सि वीर्य एक द्रोण (माटक कलसा ) म धर दे अर तांसे एक पुत्र प्राप्त ह्वे जैक नाम ड्रोन पड़। दुसर कथा अनुसार ऋषि भारद्वाज अर धृताची क मांगलिक मिलन से पुत्र पैदा ह्वे। चूँकि धृताची क योनि द्रोण (कलस ) मुखी छौ तो वे पुत्र क नाम द्रोण धरे गे। द्रोण क जन्म या ललन पोषण द्रोण घाटी (वर्तमान देहरादून -हरिद्वार क्षेत्र ) म ह्वे।
द्रोण की शिक्षा दीक्षा अपर पिता क आश्रम म ही ह्वे। तख तौंक दगड़ प्रशत राजा क पुत्र द्रुपद भि छौ। दुयुं म प्रगाढ़ मैत्री छे।
एक दैं गुरु परुशराम महेन्द्रगिरि पर्वत म तप करणा छा तो द्रोण दान लीणो पोँछ गेन। परुशराम तो अपर अस्त्र शस्त्र ब्राह्मणों तै दान दे चुकि छा। तो याँक समतुल्य म द्रोण न परुशराम से अस्त्र शस्त्र की शिक्षा ले। अस्त्र शस्त्र , ब्रह्मास्त्र को सम्पूर्ण ज्ञान लीणो उपरान्त द्रोणाचार्य न कृपाचार्य की बैणि कृपी से ब्यौ कार..
कृपी से द्रोणाचार्य क अश्वथामा पुत्र ह्वे। निर्धनता क कारण अश्वथामा क पालन पोषण समुचित प्रकार से नि हूणु छौ तो सहायता हेतु द्रोणाचार्य अपर दगड्या राजा द्रुपद म गेन किन्तु राजा द्रुपद न द्रोणाचार्य को पद भेद से अपमान कौर दे। द्रोणाचार्य न ब्रह्मास्त्र की शिक्षा अपर पुत्र अस्वथामा तैं दे छौ।
अपमान प्रतिशोध लीणो हेतु यी अपर युक्ति से राजकुमारों व भीष्म तै प्रेरित कोरी कौरव वंश क राजकुमारों गुरु बणिन सभी कौरव व पांडवों न गुरु द्रोणाचार्य से अस्त्र शस्त्र की शिक्षा ले। अर्जुन गुरु द्रोणाचार्य क प्रिय शिष्य छौ।
भीष्म व गुरु द्रोणाचार्य , कृपाचार्य कुरुक्षेत्र राज्य से बंध्या छा तो कौरव पांडवों क युद्ध म सब्युंन कौरवों क ओर से युद्ध लौड़।
गुरु द्रोणाचार्य तै वरदान छौ कि जब तक द्रोणाचार्य क हाथ म अस्त्र राल क्वी बि द्रोणाचार्य तैं नि मार सकद छौ। कुरुक्षेत्र युद्ध म जब भेष की मृत्यु उपरान्त गुरु द्रोण कौरव सेना क सेनापति बणिन तो पांडव सेना तैं हानि उठाण पोड़। द्रोणाचार्य तै मरण आवश्यक छौ किन्तु युद्ध क्षेत्र म जब तक अस्त्र शस्त्र हाथ म होवन तो द्रोणाचार्य तै क्वी नि मार सकद छौ। तब कृष्ण योजना अनुसार युधिस्ठर न घोषणा कार ‘अश्वथामा हत्तोहत (अश्वथामा मारे गे ) अर तनि पांडव सेना न प्रसन्नता म उद्घोष कौर दे अर युद्धिस्ठर न तब ब्वाल , ” मनिख या हाथी पता नी च “
गुरु द्रोणाचार्य न युधिस्ठर का यी शब्द सूणि कि पुत्र प्रेम म अपर सब अस्त्र शस्त्र छोड़ देन अर युध्क्षेत्र म बैठ गेन। इथगा म द्रौपदी भाई धृष्टद्यम्नु न गदा से द्रोणाचार्य तै वीरगति पंहुचायी दे।
द्रोणाचार्य पर द्वी बड़ा अभियोग लगदन एक द्रौपदी चीयर हरण म मूक दर्शक बणन अर अभिमन्यु की हत्या युद्ध नियमों विरुद्ध करण।