उत्तराखंड के ऐतिहासिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
270 से बिंडी गढ़वळि कथा रचंदेर : भीष्म कुकरेती
तीलू रौतेली की तुलना केवल रानी लक्ष्मी ई से नि करे जांद अपितु महारानी कैकयी , चित्रकोट की चमेली देवी गोंडवाना की दुर्गावती , बेलूर की महारानी तपस्विनी , मेवाड़ की कर्णावती, धार की द्रौपदी राव , नाना साहेब की दत्तक पुत्री मैना कुमारी दगड़ बि करे जांद।
उत्तराखंड शासन न तीलू रौतेली क याद म कति पुरुष्कार व योजना बि बणयिं छन।
तीलू रौतेली क बचपनौ नाम तिलोत्तमा छौ व गढ़वाल देस क राजा पृथ्वीपति शाह क सभाषद भूपसिंह गोरेला रावत की पुत्री छे। तिलोत्तमा रौतेला क जन्म गुराड़ गाँव म 8 अगस्त 1661 म ह्वे छौ। तीलू क बचपन अधिकतर वीरों खाळ को कांडा म बीत।
13 वर्ष की आयु म तीलू रौतेली क मंगनी इड़ा क भूप सिंह नेगी को पुत्र भवानी नेगी से ह्वे।
ये ही समय पूर्व से कत्यूरी सेना क आक्रमण गढ़वाळ पर निरंतर हूणा रौंद छा। कत्युर्यूं दगड़ युद्ध म तीलू क बूबा जी , तीलू क द्वी भाई अर मंगेतर युद्ध म बलिदान ह्वे अर यां से तीलू क हृदय म बदला की ज्वाला भडकणि छे।
तब कांडा कौथिग आण वळ छे तो तीलू न कौथिग जाणों इच्छा बताई टी तीलू की ब्वै तै द्वी पुत्रों की हत्त्या याद ऐ गे अर ब्वेन न बोली, ” यदि म्यार पुत्र जीवित हूंदा तो अवश्य ही कत्यूरों तै मार भगायी दींदा। “
तभी तीलू रौतेली न कत्युर्यूं क विनाश क सौगंध खायी आल छे।
त ब तीलू न क्षेत्र का उन्याल , सजवाण , असवाल , डंगवाल , गोर्ला , खूँटी , बंगारी , जसतोड़ा , खंद्वारी , खुगशाल जन क्षत्रिय व ढौंडियाल , पोखरियाल, ध्यानी , बौड़ाई , जोशी , भदोला, सुन्दरियाल जन बामणु तै अर अपर द्वी दगड्याणि बेलू अर देवली तै शस्त्र अस्त्र से सुसज्जित कार अर घोषणा कार कि ये वर्ष कांडा क कौथिग नि होलु अपितु कत्युर्यूं नाश होलु।
सबसे पैल तीलू की सेना न खैरागढ़ पर आक्रमण कार व तख बिटेन कत्युर्यूं तै भगायी व ये युद्ध म द्वी विश्वस्त हुतात्मा ह्वेन . तब टकोली खाल अर उमटागढ़ पर अधिकार कार अर विज्यापलक्ष म तख बूंगी देवी मंदिर की स्थापना कार।
इख बिटेन तीलू का वीर सल्ट घाटी पौंछि अर कत्युर्यूं तै सल्ट घाटी से भगायी व तख सल्ट मादेव मंदिर की स्थापना कार व मंदिर क पूजा भार संतू उन्याल सौंपी।
यांक उपरान्त तीलू सेना न भिलण -भौण की ओर परस्तान कार अर कत्यूरी भायीं , ये युद्ध म तीलू क द्वी शैली बलिदान चढ़ गेन। विजयोत्साह मनाये जाणु छौ कि कत्यूरियूंन ज्यूंदालगढ़ पर अधिकार कार तो सात वर्ष तक गढ़वळि सेना न तौं तख बिटेन भगायी व क्लिनकखाल , बूंगी, बीरोंखाल , चौखुटिया आदि तै कत्यूरी मुक्त करणी राई। अंत म कत्यूरी सेना न संधि प्रस्ताव धार।
विजय पताका फहराणों उपरान्त तीलू व वींक सेना न भूप सिंह क तर्पण कार व आराम करण लग व तल्ला कांडा शविर निकट पूर्वी नयार म तीलू नयाणो गे व एक कापुरुष कत्यूरी सैनिक न पैथर से तीलू पर वार कार। तीलू अस्त्र हीन छे तो प्राणरक्षा हेतु कुछ नि कौर साक , तखमी तीलू रौतेली न बलिदान म प्राण त्यागीन। वीस वर्ष की आयु म तीलू न वीरगति प्राप्त कार।
तीलू की याद म असंख्य लोक गीत प्रसिद्ध ह्वेन व आधुनिक कवियों द्वारा बि गीत लिखे गेन। खंड काव्य लिखे गेन।