उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
265 से बिंडी गढ़वळि कथा रचंदेर : भीष्म कुकरेती
( किरातर्जुनीय कथा तै हम पौराणिक घटना मणदवां कारण महाभारत म सर्वपर्थम किरात व अर्जुन युद्ध की लघु कथा मिलदी। यांक उपरान महान कवि भारवि न यीं महाभारतीय कथा पर आधार से एक महान महाकाव्य रच – किरातर्जुनीय। किरातर्जुनीय महाकाव्य का सब नियम पूरा करद। किन्तु मेरी धारणा च कि अर्जुन नागपुर बधाण ओर या उत्तरकाशी जिना अस्त्र -शस्त्र निर्माण हेतु ताम्बा खानों की ओर गे ह्वाल व ताम्बा अस्त्र शास्त्र तकनीक का स्वामी तकनीक नि दीण चाणा रै होलु तो संभवतया युद्ध से ही अर्जुन तै ताम्बा अस्त्र शस्त्र तकनीक व अस्त्र -शस्त्र मील होला। )
युधिस्टर जब दुर्योधन से जुवा म राजपाठ , द्रौपदी हार गे छ व इख तक कि तरह वर्षों वनवास व एक वर्ष क अज्ञातवास भि मील। पांडव , द्रौपदी हिम प्रदेश म वनवास कटणा छा कि युधिष्ठर को वनवासी गुप्तचर हस्तिनापुर से आयी अर सूचना दे कि दुर्योधन व सहयोगी राजा भविष्य का युद्ध हेतु अस्त्र शस्त्र जुटाणा छन। अर्थात दुर्योधन क इच्छा राज्य बौड़ाणो नी च। व्यास जी न परामर्श दे कि पांडवों तै इन्द्रकील आदि स्थानों से अस्त्र शस्त्र कट्ठा करण चयेंद। अर्जुन तै कर्ण वध हेतु पाशपातास्त्र चयेंद छौ तो अर्जुन इन्द्रकील (संभवतया चमोली गढ़वाल ) पर्वत म माटौ शिव मूर्ति निर्मित कोरी शिव की कठोर तपस्या म लग्न ह्वे गे। अर्जुन की कठोर तपस्या (हवन क्रिया -क्या यह मिटटी तै गळाणो /smelting अर ताम्बा प्राप्ति तो नि छे ?) से वन तपण लग गे व ऋषि मुनियों रौण कट्ठंण ह्वे गे तो वूंका प्रतिनिधि शिवजी -पार्वती म गेन कि हम तै बचाओ ।
भगवान शिव न सब तैं आश्वस्त कैर। जब ऋषि लोक चल गेन तो शिव न पार्वती से ब्वाल , “नश्चित ही यु अर्जुन होलु “
पार्वती न पूछ , ” तो अर्जुन इथगा कठोर तपस्या क्योक करणु च ?”
शिव क उत्तर छौ , ” अवश्य वो पहाड़ जन ही अर्जुन पाशपातास्त्र हेतु कठोर तपस्या करणु च अर बिना पाशपातास्त्र पयाँ एन तपस्या समाप्त नि करण। “
‘तो अब ?” पार्वती न पूछ।
” एकी परीक्षा आवश्यक च कि यु पाशपात अस्त्र योग्य च बि कि ना ? हम ेकी परीक्षा लीणो उख चलदा अर यदि अर्जुन योग्य च तो मि वै तैं पाशपात अस्त्र द्योलू ” शिव को उत्तर छौ।
शिव अर पार्वती न किरात व किरातण व् गणों न कितात भेस धारण कार अर इन्द्रकील को वे उपवन म गेन जखम अर्जुन तपस्या करणु छौ।
अर्जुन का अस्त्र शस्त्र निकट धर्यां छा कि निकट ही एक आतंकवादी ‘मूक ‘ नामौ राक्षस न सुंगर रूप धारण कार अर तपलीन अर्जुन पर आक्रमण कर दे।
शंकर विचलित ह्वेन कि वूंक भक्त की हत्या नि ह्वे जा ऊंन अपर धनुषवां सजाई अर वाण ‘सुंगर बण्युं सुंगर पर चलै दे। . इना सुंगरौ आण से अर्जुन की तपस्या भंग ह्वे अर अर्जुन न धनुष पर वां सजाई व सुंगर पर वाण चलै दे। अर्जुन क अर शिव को वाण एक इ समय पर ‘मूक’ अर्थात सुंगर पर लगिन। मूक को माया समाप्त ह्वे अर पहाड़ जन भ्यूं पोड़। वन का लोक प्रसन्न ह्वेन अर प्रसन्नता म शवजी क किरात रूप म गण बि नचण -गाण लग गेन।
अर्जुन न शिव जिना देख अर ब्वाल , ” ऊं उन तुम बि विशेषज्ञ धनुधर छया किन्तु तुमन तीर चलाण म अबेर कर दे। “
शिव रूप किरातन ब्वाल , ” पर यु सुंगर तो म्यार वाणों से मोर मीन पैल तीर चलै छौ।
अर्जुन न क्रोध म बवाल , ” सुंगर म्यार वां से मोर। ना कि तुमर वाण से। “
शिवजी न किरात रूप म क्रोधित ह्वेक ब्वाल , ” ना ना म्यार वाण से ही मोर। “
” ना ना म्यार वाण से। ” अर्जुन न पुनः ब्वाल।
किरात सुपी शिवजी न ब्वाल , ” तो ठीक च , यांक न्याय तुमर अर म्यार मध्य युद्ध से होलु कि कु कथगा वीर च। “
अर्जुन न स्वीकृति दे अर दुयुं क मध्य घनघोर युद्ध शुरू ह्वे गे। एक हैंक पर वाणों क स्वाड़ा चलण लग गे। एक तीर चला तो दुसर तुरंत अपर तीक्ष्ण वाण से काट द्याओ। अर्जुन आश्चर्य म क्रोधित ह्वे कि म्यार वां वयवय ह्वे गेन किन्तु सफलता नि मील।
तब अर्जुन न फांस -वाण मार अर फांस म किरात फंस बि च किन्तु दुसर इ क्षण किरात फांस वाण से मुक्त ह्वे गे।
क्रोध म अर्जुन न किरात पर तलवार उठायी ार किरात पर टूट गे। पर जनि तलवार किरात क सरैल पर टकरांदी छे तनि तलवार टूट जांद छे।
अर्जुन को रोष सातवां आसमान म पौंछ गे। अर्जुन इना उना से पेड़ उखाड़िक किरात पर चुटैन किन्तु सब पेड़ टूट गेन। किरात पर कुछ भि दुष्प्रभाव नि पड़णु छौ।
अर्जुन क अंग अंग तक व किरात का वाणों मार से पीड़ा करणा छा। वेब्स ह्वेक अर्जुन शिव प्रतिमा क न्याड़ गे अर प्रार्थना करण लग गे , ” हे प्रभु एक किरात मे से भारी वीर ? “
अर्जुन न पुष्प माळा मूर्ति म चढ़ाई व अर्जुन क शरीर पीड़ारहित ह्वे गे। तब अर्जुन किरात क जिना आयी तो अर्जुन क आश्चर्य से दिल फटण लग गे कि माळा तो किरात क गौळ म छे।
अर्जुन बींगी गे कि किरात ही स्वम्भू शिव छन। तत्काल अर्जुन किरात क खुट म पोड़ गे अर बुलण मिसे गे , ” प्रभु यी तो आप छन। मेरी परीक्षा लीणा छा ?”
शिवजी न बोलि , बत्स ! तुम परीक्षा म सफल होवां। बोल क्या चयेणु च बोल ?”
अर्जुन न उत्तर दे , ” प्रभु मि तैं पाशपात अस्त्र चयेणु च। “
शिवजी न ब्वाल , ” पुत्र ! पाशपात अस्त्र मिल जाल। किन्तु त्वे तैं पाशपात चलाणों विधि सिखण पोड़ल। दुसर यु अस्त्र को प्रयोग निर्बल पर प्रयोग बिलकुल निषेध च। पाशपात केवल एक ही बार प्रयोग ह्वे सकद “
अर्जुन तै भगवान शिव न पाशपात अस्त्र दे व अस्त्र प्रशिक्षण बि दे। इनम शिव पार्वती अंतर्धान ह्वे गेन।
अर्जुन इन्द्रकील पर्वत से पाशपात अस्त्र व अन्य ताम्र अस्त्र लेक भायों क पास ऐ।
कुरक्षेत्र क युद्ध म अर्जुन न पाशपात अस्त्र से कर्ण वध कार व इन्द्रकील से लयां हौर आधुनिक अस्त्रों को उपयोग ह्वे।