उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
265 से बिंडी गढ़वळि कथा रचंदेर : भीष्म कुकरेती
भगवान कार्तिकेय क कति नाम छन जनकि स्कन्ध , कंध , सुब्रमणियम मुरुगन, षडानन व कुमार। भगवन कार्तिकेय की पूजा उत्तर म हीन रूप म हूंद जबकि दक्षिण भारत म अधिक पूजा हूंद।
कार्तिकेय क जन्म विषयक कति कथा प्रचलित छन।
उत्तरी ध्रुव क निकट कुरु क्षेत्र विशेष म कार्तिकेय न स्कन्द नाम से शासन कार।
जब पिता दक्ष यज्ञ म शिव पत्नी सती ह्वे गे छे। पत्नी सोग म भगवन शिव दुःख से ध्यान लिप्त ह्वे गेन। शिव को ध्यान मग्न हूण से पृथ्वी शक्तिहीन ह्वे गे। यीं स्थिति से दैत्य लाभ उठाण लग गेन अर उं मदे तारकासुर दैत्य को आतंक बढ़ गे। दिबता हरण लग गेन। सरा जग म हाहाकार मच जांद। सब दिबता ब्रह्मा जी म समस्या समाधान हेतु गेन। ब्रह्मा जीन ब्वाल , ” तारकासुर को अंत शिव पुत्र ही कर सकदन। ” शिवजी जीन भूतकाल म तारकासुर तैं वरदान दियुं छौ कि तारकासुर को वध केवल शिव पुत्र ही कौर सकुद छौ। तारकासुर तैं विश्वास छौ कि शिवजी ब्यौ नि कारल तो पुत्र कखन होलु।
तब इंद्र व हौर देव भगवन शिव म जांदन।
भगवन शिव पार्वती क परीक्षा लीन्दन अर पार्वती परीक्षा म सफल ह्वे जांदी। शिवजी अर पार्वती क मंगल बेला म ब्यौ हूंद। किन्तु कई देव वर्ष हूणो उपरान्त बि द्वी झणो तै पुत्र प्राप्ति नि ह्वे। देव अति विचलित ह्वे गेन। देवताओं तै लग कि शिवजी तो भोले छन तो मांगलिक मिलन नी हूणु च। तारकासुर प्रसन्न ह्वेक अपर अत्त्याचार बढ़ाणु छौ।
ब्रह्मा व विष्णु की राय मानि सब देव भगवन शंकर म गेन। मां भगवती तै जब पता चौल कि तारासुर वध शिव को काम रहित पुत्र कारल तो मां भगवती क भितरन तेज पुंज निकळ अर शिवजी म समाई गे , उना शिवजी न तीसरो आँख ख्वाल। अर वो तेज गंगा जी से टकराई। तब गंगा देवी वै तेजस तै लेक चलण लग गे। तेजस की कांति से गंगा जल उबळण मिसे गे।
भयभीत गंगा न तै दिव्य अंश तै शरावण वन म स्थापित कौर दे। पर गंगा जीम बगद बगद वो दिव्य अंश छै भागों म बंट गे छौ। इन म भगवन शिव को दिव्य तेज जन्मित वीर्य दिव्य शक्ति पर पोड़ अर तां से एक बच्चा प्राप्त ह्वे। तभी बौण म छै कृतिका कन्याओं दृष्टि तौं पर पोड़ अर तौन मातृत्व प्रेम वस तौं तै स्तनपान कराई तब तक बालक का छै सिर प्रकट ह्वे गे छौ। सी तै बालक तै कृतिकपुर ली गेन। तौन बालक को पालन पोषण कार। यी घटना क सूचना शिव पार्वती म पौंछ। शिव पार्वती अपर मोह हीन -काम -हीं पुत्र लीणो हेतु कृतिकापुर पौन्छिन अर बालक तै कैलास लैन। बालक को पालन पोषण कृतिका कन्याओं न कार तो बालक को नाम कार्तिकेय धरे गे।
कुछ समय उपरान्त कार्तिकेय न तारकासुर को वध कार।