नकली वैद्यों लक्छण
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड – १ सूत्रस्थानम , 29 th उन्तीसवां अध्याय ( प्राणायतनीय अध्याय ) पद ८
अनुवाद भाग – २६२
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
यांक विपरीत गुण वळ वैद तैं रोग मिसार अर्थात रोग लाण वळ अर प्राण नाशी हूंदन । यी वैद वैदा भेष म संसार म कांडा समान दुखदायी , बिगाड़ करण वळ , द्रोह करंदेर , धर्म त्याग कौरि , राजाओं कमजोरी से राष्ट्र म घुमणा रौंदन। यूँ वेदों विशेष गुण छन –
यि वैद्यों झुल्ला पैरिक लोभ म रोगी क गली गाँव जान्दन। कै तैं रोगी जाणि यी वे तै घेर लीन्दन, अपण प्रशंसा जोर जोर से बताण मिसे जान्दन । जु वैद पैल चिकित्सा करणा रौंद छा वैक दोष बार बार दैं बताणा रौंदन। रोगी क मित्र , रिश्तेदारों तै पुळेक , चापलूसी करि , चुगली या सेवा करी अपण बणांदन तौं रोगिक मित्र या रिश्तेदारों तैं। अपण इच्छा तै कम बतांदन। चिकित्सा कार्य मिलण पर बार बार इना ऊना दिखणा रंदन। चालाकी से अपण अज्ञान छुपाणा रंदन। रोगी तै स्वस्थ नई कर सकण पर रोगी तैं इ झिड़कण शुरू कौर दीन्दन (भगार लगाइक जनकि तुमम साधन व सेवक नि छन , पठाय नि लीन्दो आदि )। रोगी तैं मरदो देखि दुसर क्षेत्र म चल जान्दन या क्षेत्र ही छोड़ दीन्दन। भोला मनिख देखि अपण कुशलता मूर्ख मनिख जन जतांदन। विद्वान देखि दम दबाइक भाज जांदन जनकि बौणम भयंकर भी क डरन मनिख भगद। यूं तैं जरा सि बि आयुर्वेद क सूत्र मिल जाय तो वै तै समय -कुसमय , बिन प्रसंग का बुलणा रंदन। ना तो सि कै तै कुछ पुछदन न इ चांदन क्वी यूँ से कुछ पूछो। यी प्रश्न से इन भगदङ जन बुलया मृत्यु आयी गए ह ो। यूंक न क्वी आचार्य हूंद ना ही शिष्य व ना ही सहभागी /सहयोगी। ८।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ — ३८९
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