भोजन पर्यटन विकास -2
Food /Culinary Tourism Development 2
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना – 388
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -388
आलेख – विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती
उत्तराखंड हजारों साल से भारतीय समाज को पर्यटन हेतु आकर्षित करता रहा है और शुरू से ही धार्मिक पर्यटन मुख्य पर्यटन रहा है। हमारे पास पर्यटन इतिहास तो मिलता है किंतु आर्थिक पर्यटन इतिहास नहीं मिलता है।.अशोक साहित्य व कौटल्य या चरक संहिता, कालिदास जैसे साहित्य में कुछ संदर्भ मिलते हैं ब्रिटिश अधिकारी अपने कार्यों व प्रशासन का रिकॉर्ड रखते थे तो ब्रिटिश शासन के बाद हमारे पास आर्थिक दृष्टि से पर्यटन लाभ इतिहास मिल जाता है।
यह सत्य है कि ब्रिटिश शासन में यात्रा पंक्तियों में स्वास्थ्य चिकित्सा विकास व सरकारी मशीनरी नियंत्रण से पर्यटन को काफी बल मिला। ब्रिटिश शासन तक उत्तराखंडियों हेतु रयटन उद्यम लाभकारी उद्यम रहा था किन्तु ब्रिटिश काल अंतिम काल में पर्यटन विकसित अवश्य हुआ स्वतंत्रता उपरान्त भी उत्तराखंड का पर्यटन में वृद्धि हुयी और उत्तराखंडियों के लिए लाभांश में गिरावट आती गयी। उत्तराखंड बनने के पश्चात पर्यटन में आशातीत वृद्धि हुयी किन्तु लाभांश में और गिरावट आयी याने पर्यटन पलायन न रोक सका।
ब्रिटिश शासन में पौड़ी के गढ़वाल जिले निर्माण होने या लैंसडाउन छवनी स्तापित होने या चमोली गढ़वाल में उप प्रशासनिक कार्यालय खुलने के बाद भी गढ़वाल को पर्यटन से वह लाभ न मिल स्का जो मिलना चाहिए था तो उसके पीछे सबसे मुख्य कारण था पर्यटन हेतु स्थानीय वस्तुओं की अपेक्षा आयातित वस्तुओं का अधिक उपयोग –
मध्य ब्रिटिश काल तक में निम्न वस्तुएं स्थानीय होतीं थीं
१- दूध , घी , सब्जी , स्थानीय शिल्पकारों द्वारा निर्मित कई वस्तुएं जैसे बर्तन , मूर्तियां टोकरियाँ सौगात वस्तुएं
२- स्थानीय बिस्तर आदि
३- चिकित्सा हेतु स्थानीय वैद्य व गढ़वाल में उगे स्थानीय औषध पादपों से निर्मित औषधियां -बाबा काली कमली वाले , शिवा नंद आश्रम , गुरुकुल कांगड़ी की औषधियां
४- होटल व्यवसाय पर गढ़वाली कुमाऊंनियों का एकाधिकार
५- पैदल मार्ग होने से चट्टी संस्कृति के कारण पर्यटन से प्रत्येक क्षेत्र में लाभ वितरण
६- चट्टियों के आवास निवास घर में स्थानीय वस्तु व श्रमिक उपयोग
फिर निम्न वस्तुएं आयातित होने लगे
गेंहू , चावल दाल , मिष्ठान , फल फूल, बर्तन व कई सौगात वस्तुएं
ब्रिटिश शासन के अंतिम दशकों व स्वत्रंत्रता के पश्चात निम्न परिवर्तन आये
१- भोजन सामग्री जैसे गेंहू , चावल , दाल , मसाले , तेल गुड़ , शक्कर के आयात में वृद्धि
२- दूध , घी , सब्जियों का अधिकांश हिस्सा आयात वृद्धि
३- आवास सुविधा वस्तुओं का आयात जैसे बिछौने आदि
४- ऐलोपैथी ने आयुर्वेद को धराशायी किया
५-सौगात वस्तुएं आयात , फास्ट फ़ूड संस्कृति से स्थानीयता का सर्वथा उखड़ना
६- मोटर सड़कों से पर्यटन खरीदी खर्च कुछ केंद्रों में सिमटना व लाभ वितरण कुछ केंद्रों तक सीमित होना
७- श्रीनगर से बद्रीनाथ तक काला , फूलचट्टी से देवप्रयाग तक की छतियों में बड़थ्वाल , भट, बिष्ट , नेगी आदि लोग जो चट्टीयों में व्यवसाय करते थे उनका पर्यटन उद्योग से बाहर हो जाना
८- फल फूलों , मिठाईयों ,गुड़ शरवत पेय पदार्थों , शराब , का सत प्रतिशत सर्वथा आयात
९- होटल उद्यम पर बाहरी लोगों का अधिपत्य
१० होटल बनाने हेतु कच्चा सामान पूर्णतया आयत निर्भरता
उत्तराखंड निर्माण पश्चात तो आयात में दोगुना चौगुना वृद्धि हुयी होगी।
पर्यटन भोजन में स्थानीयता का नगण्य योगदान
ब्रिटिश काल से ही गेंहू , चावल व अन्य सब्जियों (नई ) आकर्षण के कारण स्थानीय उत्पादन जैसे मोटा अनाज , स्थानीय सब्जी , वन सब्जी आदि की मांग नेपथ्य में चली गयी और स्थानीय निर्मित वस्तुओं की मांग बिलकुल नगण्य हो गयी तो पर्यटन से लाभ सम्पूर्ण पहाड़ी भाग को न मिल सका। शिल्प मांग में भी भयंकर गिरावट आ गयी।
धीरे धीरे पहाड़ी भोजन व पहाड़ी वस्तुएं केवल इतिहास पुस्तकों तक सीमित हो गए। पर्यटन विकसित हुआ किन्तु पहाड़ियों को लाभांश नहीं मिला व पहाड़ी पर्यटन उद्यम से बाहर होते गए।
धीरे धीरे कोटद्वार , हल्द्वानी , ऋषिकेश , नैनीताल , मसूरी , देहरादून, हरिद्वार में होटल साइन बोर्डों में पंजाबी फ़ूड , साउथ इंडियन फ़ूड, कॉन्टिनेंटल लिखा जाने लगा तो गढ़वाली , उत्तराखंडी फ़ूड को खुद पहाड़ी ही बिसर गए। उदाहरण चाउ माउ की मांग बढ़ी है किन्तु नोड्यूल्स पहाड़ों में नहीं बनते अपितु आयात होते हैं। इडली की मांग बढ़ी है किन्तु चावल आयात होता है।
उधर श्रमिक मजदूरी सिद्धांत के चलते कृषि में लाभ के स्थान पर हानि होने लगी व कृषि भी चौपट होने लगी तो पर्यटन भोजन हेतु स्थानीय भोज्य सामग्री की मांग संस्कृति ही ध्वस्त हो गयी। पलायन इतना बढ़ गया कि मांग हुयी भी तो मांग पूर्ति हेतु गाँवों में पूर्ति कर्ता ही नहीं रहे ।
पर्यटन का सिद्धांत है स्थानीय कि वस्तु आपूर्ति किन्तु उत्तराखंड में स्थानीय वस्तु आपूर्ति संस्कृति ही नहीं पनपी तो पर्यटन विकास से पहाड़ियों को कोई लाभ नहीं मिल सका।
किसी भी उद्यम का अर्थशास्त्रीय सिद्धांत है उद्यम के लाभ का वितरण किन्तु उत्तराखंड में लाभ वितरण उल्टा हुआ पहाड़ों के स्थान पर मैदान को लाभ। यही कारण है स्थानीय व प्रवासी पर्यटन को तबज्जो नहीं देते हैं।