(भारतौ प्राचीन वैज्ञानिक -16 )
संकलन – भीष्म कुकरेती
शालिहोत्र पशुचिकित्सा क जनक मने जान्दन। इन मने जांद बल शालिहोत्र क काल ईशा से ३५० वर्ष पाइलाक़ च। शालिहोत्र क बूबा जी क नाम हयगोष अर यी श्रावस्ती का वासिन्दा था। शालिहोत्र न अश्व चिकित्सा व अश्व पालन पर ग्रंथ रच तो जैक नाम ‘शालिहोत्र संहिता’ छौ जाँसे भारत म पशुचिकत्सा का नाम इ शालिहोत्र शास्त्र बुले गे। शालोतर संहिता महाभारत से पािल रचे गे छौ। िखि बिटेन पशु आयुर्वेद बि शुरू ह्वे।
शालिहोत्र संहिता तै अश्वसंहिता बि बुले गे जैमा ४८ प्रकारा घ्वाड़ों वर्णन च। घ्वाड़ों वर्गीकरण करे गे। ये म लम्बा मुख , बाळ , भारी नाक , माथा व खुर ; व् लाल जीब -हूंठ , छुट कन्दूड़ -पूछ वळ घ्वाड़ों तैं अच्छा मने गे।
मुख की लम्बाई – २ अंगुळ , कन्दूड़ – ६ अंगुळ , पूँछ २ हाथ बताये गे।
घ्वाड़ा वास्तविक गुण गति हूंद।
उच्च वंश , आकर्षक रंग , शुभ आवर्तों वळ घ्वाड़ा म गति नि हो तो बस्युं सटी जन इ हूंदो।
शरीरौ अनुसार बि घ्वाड़ा नाम धरे गेन – , त्र्ययंड (तीन वृषण वळ ), त्रिकरणिन (तीन कन्दूड़ ), द्विखुरिन , हीनदंत , हीनाड (बिन वृषण का ) , चक्रवर्तिन (कंधा पर एक या तीन अलक वळ ) , चक्रवाक (सफेद खुट व आँख वळ ) नाम बी।
गति अनुसार घ्वाड़ों नाम छन ये ग्रंथ म – तेजस , धूम्केतु , टाइज बताये गेन।
ये ग्रंथ म घ्वाड़ा क १२००० शिराएं बताये गेन। ग्रंथ म पालन क्रिया चिकित्सा वर्णन बि च। घ्वाड़ा आयु ३२ वर्ष बताये गे।
शालिहोत्र संहिता क पैंथर हस्ती आयुर्वेद या हठी चिकित्सा (मुनि पालकपया ) बी ये क्षेत्र म प्रसिद्द ह्वेन। इनि गांव आयुर्वेद पर बि कार्य ह्वे।
भारत सदा ही शालिहोत्र क ऋणी रालो।