( बौद्ध मत प्रचार से उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म विकास )
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) 17
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
महात्मा बुद्ध के समय ही बिहार व पूर्वी उत्तरप्रदेश में लाखों बुद्ध अनुयायी बन चुके थे।
परवर्ती बौद्ध साहित्य अनुसार महात्मा बुद्ध कनखल के पास उशीरनगर तक पंहुचे थे। दिव्यावदान अनुसार बुद्ध उत्तराखंड के श्रुघ्न नगर पहुंचकर उन्होंने एक ब्राह्मण का अभिमान चूर किया था। युवान चांग ने भी उल्लेख किया है।
बुद्ध निर्वाण पश्चात दक्षिण उत्तराखंड में बौद्ध चिंतकों का प्रमुख चिंतन स्थल रहा है। बौद्ध धर्म में उतपन कई उलझनों को सुलझाने में उत्तराखंड के स्थाविरों का प्रमुख हाथ रहा है। हरिद्वार के पास जिन आश्रमों में जहां पहले वेदों , संहिताओं , उपनिषदों , ब्राह्मणों का पठन पाठन होता था वहां बौद्ध धर्म संबंधी साहित्य का पठन पठान व चर्चाएं शुरू हो गए । उत्तराखंड के स्थावीरों ने बौद्ध धर्म संबंधी समस्याओं का निराकरण में अन्य क्षेत्र के स्थावीरों के मुकाबले अधिक भूमिका निभायी।
बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनंद हुए थे। आनंद के दो शिष्य थे – यश और साणवासी सम्भूत स्थविर। साणवासी संभूत कनखल के पास अहोगंगपर्वत पर निवास करते थे। बुद्ध नर्वाण के सौ साल बाद कालाशोक के राज्य काल में साणवासी के जीवनकाल में बौद्धों के मध्य भीषण फूट पड़ गयी थी। साणवासी संभूत ने अहोगंग से मगध पंहुचक कर द्वितीय बौद्ध सङ्गीति (कॉनफेरेन्स ) आयोजित की। (महाबंश पृष्ठ 17 -19 )
अशोक के समय बौद्ध मतावलम्बियों की तीसरी सङ्गीति आयोजित हुयी जिसकी अध्यक्षता अहोगंग के स्थविर मोग्गलि पुत्त ने किया।
गंगाद्वार (हरिद्वार से गोविषाण (काशीपुर क्षेत्र ) बौद्ध मतावलम्बियों हेतु चिंतन का केंद्र बन चुका था और बौद्ध प्रचारकों , चिंतकों व जनता का आना जाना बढ़ गया था। उत्तराखंड का एक पर्वत बौद्धाचल कहलाया जाने लगा (केदारखंड ४० /२८ -२९ ) . बौद्ध मतावलम्बियों के लिए गंगा उतनी ही पवित्र थी जितना सनातनियों के लिए।
बौद्ध स्थविर शिष्य चिकित्सा विशेषज्ञ भी होते थे
अधिकतर बुद्ध व बौद्ध साहित्य को दर्शन , आध्यात्म व मनोविज्ञान तक ही सीमित किया जाता है। किन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि बौद्ध धर्म के उन्नायकों ने भारत ही नहीं चिकित्सा शास्त्र में भी योगदान दिया है। बुद्ध का उद्देश्य ही दुःख हान था। यदि बौद्ध चिंतक चिकित्सा के प्रति संवेदनशील न होते तो सम्राट अशोक को ससर्वजनिक जनता हेतु चिकित्सालय व पशुओं हेतु सार्वजनिक चिकित्सालय विचार आते ही नहीं ।
सातवीं सदी से पहले , गुप्त लिपि में रचित ‘भेषज गुरु -वैदुर्य -प्रभा राजा सूत्र’ सिद्ध करता है कि बौद्ध चिंतक शरीर चिकित्सा में भी ध्यान देते थे।
उत्तराखंड में बौद्ध स्थविरों का वास याने पर्यटन विकास
गंगाद्वार में मुख्य बौद्ध धर्म प्रचार केंद्र होने से उत्तराखंड में भारत से विद्वानों का आना जाना बढ़ा और उत्तराखंड पर्यटन में निरंतरता रही व नए पर्यटक ग्राहक भी मिले। मेडिकल पर्यटन वास्तव में सामन्य पर्यटन के साथ स्वयं ही विकसित होता जाता है। विपासा चिकित्सा पद्धति व अन्य चिकित्सा पद्धति भी उत्तराखंड में प्रसारित हुयी ही होगी।
सलाण गढ़वाल में कुछ गाँव
सलाण के मल्ला ढांगू में पाली , डबरालस्यूं में पाली गाँव व लंगूर में पाली गाँव, ग्वील में बुधरौळ स्थल का होना इंगित करते हैं कि गढ़वाल में बौद्ध मत का प्रभाव तो था ही पर्यटक भी उत्तराखंड आते जाते रहते थे।