उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -16
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
जातक कथाएं जातक कथाओं का संग्रह बुद्ध निर्वाण के बाद शुरू हुए किन्तु उनमे बहुत सी कथाएं काशी -कौशल में बुद्ध के समय से पहले से ही चलती आ रहीं थीं जिन्हे बुद्ध ने अपने व्याख्यानों में उदाहरण हेतु सुनाया था। पाली साहित्य के इतिहासकार भरत सिंह अनुसार कुछ जातक कथाएं बिक्रमी संबत से दो शतक पहले लिपबद्ध हो चुके थे व बाकी बिक्रमी संबत से चौथी सदी तक लिपिबद्ध होती रहीं। जातक कथाएं बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं अधिक हैं।
चूँकि बुद्ध का उत्तराखंड से सीधा संबंध न था तो उत्तराखंड का वर्णन जातक कथाओं में न मिलना स्वाभाविक है किन्तु कथाओं के संकलनकर्ताओं का उत्तराखंड परिचय था अवश्य।
जातक कथाओं में उत्तराखंड के कई पर्वत श्रेणियों का वर्णन मिलता है।
जातक कथाओं में उत्तराखंड वनस्पति, औषधि और टूरिज्म
डा डबराल (ु इतिहास भाग २ ) का मत है कि महावेस्संतर जातक में भाभर क्षेत्र के वनों व वनस्पतियों का जितना सुंदर वर्णन मिलता है उतना अन्य तत्कालीन प्राचीन भारतीय साहित्य में मिलना दुर्लभ है।
जातक कथाओं में दक्षिण उत्तराखंड की वनस्पतियों में कुटज , सलल , नीप , कोसम्ब , धव , शाल , आम , खैर , नागलता पदम् , सिंघाड़े , धान , मूंग। कंद -मूल , कोल , भल्लाट बेले , जामुन, बिलाली , तककल जैसे वनस्पति का उल्लेख मिलता है।
महाकपिजातक खंड ४ में एक कथा अनुसार गंगा जी में बहते एक आम चखकर वाराणसी नरेश उस आम के मूल स्थान को ढूंढते उत्तराखंड के उस वन में पंहुचा जहां से वह आम पंहुचा था।
सिंहली में लिखित महाबंश (पृष्ठ 27 ) अनुसार सम्राट अशोक को मानसरोवर का गंगाजल , , उसी क्षेत्र का नागलता की दातुन , आंवला , हरीतकी की औषधियां व आम बहुत पसंद थे और सम्राट अशोक उन्हें मंगाते थे।
इससे साफ़ पता चलता है कि अशोक काल में उत्तराखंड से औषधि निर्माण औषधि अवयव निर्यात आदि प्रचलित था।
आखेट व मांश निर्यात
जातक कथाओं में उत्तराखंड के आखेट हेतु वनों व उनमे मिलने वाले जंतुओं का वर्णन मिलता है। उत्तराखंड के भुने हुए मांश के लिए वाराणसी वासी तड़फते थे और आखेट हेतु उत्तराखंड पंहुचते थे। दास भी खरीदते थे। (भल्लाटिय व चंदकिन्नर जातक )
व्यापार
भाभर क्षेत्र में अन्न का व्यापार अधिक था।
विद्यापीठ और ऐजुकेसन टूरिज्म
तक्षशिला , नालंदा के अतिरिक्त उत्तराखंड में भी कई विद्यापीठ थे। जहां बाहर से छात्र विद्याध्ययन हेतु आते थे। छात्र व गुरु अपने लिए पर्ण शालाएं निर्माण करते थे। एक कथा में एक अध्यापक पांच सौ छात्र लेकर उत्तराखंड आये और विद्यापीठ स्थापित किया (तितिरि जातक )। छात्रों के भोजन हेतु माता पिता तंडूल आदि भेजते रहते थे। निकट निवासी भी विद्यार्थियों की सहायता करते थे।
आश्रम व नॉलेज टूरिज्म
उत्तर वैदिक काल में भी उत्तराखंड में गंगा द्वार से लेकर बद्रिका आश्रम तक गंगा किनारे तपस्वियों-औषधि – आश्रम स्थापित करने व विद्यार्थियों को ज्ञान देने की प्रथा चली आ रही थी। जातक कथाओं में आश्रम संस्कृति पर भी साहित्य मिलता है।
विद्या निर्यात व औषधि निर्यात
जातक कथाओं में वर्णित उत्तराखंड वृत्तांत से पता चलता है कि बुद्ध काल से पहले व पश्चात उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन, आखेट पर्यटन , विद्या पर्यटन व निर्यात , वनस्पति निर्यात व औषधि निर्यात के लिए प्रसिद्ध था। जहां निर्यात वहां पर्यटन , जहां कच्चा माल सुलभ हो वहां पर्यटन विकसित होता ही है।
प्रत्येक पर्यटन मेडिकल व्यापार व मेडिकल पर्यटन को भी साथ में ले ही आता है। यदि आखेटक आखेट हेतु भाभर प्रदेश आते थो अवश्य ही उन्हें स्थानीय मेडिकल सुविधा की आवश्यकता पड़ती ही होगी जो तभी संभव हो सकता था जब उत्तराखंड में औषधि ज्ञानी रहे होंगे।