चंद राज्य (1420 -1499 ) में पर्यटन -2
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -35
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
चंद राजाओं उद्यान चंद (1420 -22 , हरीशचंद (1422 -23 ), विक्रम चंद (1423 -1434 ), कालि कल्याण चंद (1434 -1468 ), भारती चंद (1444 -55 और 1468 -1499 ) का काल युद्ध , आंतरिक विरोध , भाभर तराई में आक्रांताओं की लूटपाट व छीना झपटी व बाहर से सैनिकों व बाह्मणों के आगमन का काल है।
उद्यान /ध्यान चंद ने ज्ञान चंद के पाप प्रायश्चित हेतु एक साल के लिए कर माफ़ किये , बाला जी मंदिर का जीर्णोद्धार किया, ब्राह्मण कूर्म शर्मा व माहेश्वरी को भूमि प्रदान की व मंदिर पूजा हेतु एक गुजराती ब्राह्मण पुत्र सुखदेव को आमंत्रित किया जिससे गुजराती ब्राह्मण श्रीचन्द्र रुष्ट हो चम्पावत से बारामंडल की ओर चला गया। यह प्रकरण संकेत दे रहा है कि मैदानों से ब्राह्मण का आना व कुमाऊं सम्मान सहित बसना एक संस्कृति बन चुकी थी या बन रही थी।
सुलतान की सेना ने 1423 में कटेहर में प्रवेश किया साथ साथ कटेहर से उपद्रवियों का पीछा करते भाभर -तराई में प्रवेश किया वहां से से कर उगाया और चला गया , पुनः 1424 में सुलतान की सेना ने भाभर में ही प्रवेश नहीं किया अपितु कुमाऊं की पहाड़ियों में भी प्रवेश किया।
ध्यान चंद ने कत्यूरी क्षेत्र भी जीता।
कलि कल्याण चंद शासन अत्त्याचार के उसके पुत्र भारती के विद्रोह के लिए अधिक जाना जाता है। डोटी शाशकों के मध्य अंतर्कलह से भी चंद राज्य का विस्तार हुआ।
मानस भूमि पर भूमि व्यवस्था की नींव राजा रत्न चंद ने रखी। रत्न चंद ने जागेश्वर मंदिर हेतु भूमि प्रदान की। रतन चंद का डोटी से फिर युद्ध हुआ।
भारती चंद के समय डोटी व् अन्य छोटे राजा फिर से स्वतंत्र हो गए . भर्ती चंद ने फिर डोटी के क्षेत्र पर अधिकार किया व सीमा पर सैनिक टुकड़ियां रखी गयीं।
इसी समय नाथ गुरु सत्यनाथ का आगमन गढ़वाल हो चुका था व सत्यनाथ की प्रसिद्धि चम्पावत पंहुच गयी थी।
नाथ सम्प्रदायियों की प्रसिद्धि याने सिद्ध गुरुओं का पर्यटन कुमाऊं में बढ़ गया था।
कटेहर पर सुलतान के भारी दबाब से कुमाऊं में शरणार्थी पर्यटन क्रमशः जारी रहा और संकेत मिलता है कि शरणार्थी कुमाऊं में बसते गए।
गुजराती ब्राह्मण श्रीचन्द्र द्वारा चम्पावत छोड़ बारामंडल की ओर प्रस्थान इतिहास इंगित करता है कि बाह्य ब्राह्मण का अप्रत्यासित घटना नहीं अपितु कर्मकांडी व विद्वान ब्राह्मणों को जनता बसाती रहती थी।
मंदिरों के रखरखाव मंदिर बनाने की संस्कृति में ह्रास ही हुआ होगा। कत्युरी मन्दिरों का शासन के ताम्रपत्र , शिलालेखों में उल्लेख से साफ़ संकेत मिलते हैं कि इन मन्दिरों का प्रबन्धन नही किया गया और धार्मिक पर्यटन में गिरावट ही रही .
युद्ध का सीधा अर्थ है कि बाहर से भी सैनिकों को भर्ती किया जाता रहा होगा।