आलेख :भीष्म कुकरेती
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हिमाचल या उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति इन च बल भौत सा ऐतिहासिक चीज वस्तु , गवाह , पांडुलिपि नष्ट ब्रिष्ट ह्वे गेन। फिर श्रीनगर राजधानी म कुछ हूंद बि पैल गुरख्या प्रशासकों अर फिर अंग्रेज अधिकारी जैन व्यापारियोंन महलों तै खंडोळ अर कुछ नि बच। निथर इन नि ह्वे सकद बल जख सरा भारत से हजारों साल से जत्रवे ुख क्वी ऐतिहासिक गवाह नि रै होली , खासकर साहित्यिक , शास्त्रीय पांडुलिपि।
खैर फिर बि शिलालेख, ताम्रपत्र , मुद्रा , मंदिर , देवालय , पुरण लाबों म साहित्य आदि उपलब्ध त छैं इ च, जु भौत सि बत्थों पर प्रकाश डळदन।
इनि 12 वीं की एक पोथी ‘ नृत्याध्याय ‘च ज्वा गढ़वाल उत्तराखंड म शास्त्रीय नृत्य पर प्रकाश डळदी। हां पोथी उत्तराखंड की नी च या उत्तराखंडम नि रचे गे का विरुद्ध क्वी साक्ष्य नि छन किंतु शत प्रतिशत साक्ष्य त यी बि नी बल ‘नृत्याध्याय ‘ पोथी उत्तराखंडौ राजा न ही रची।
असलम ‘नृत्याध्याय ‘ नाट्य शास्त्र को एक अध्याय च। महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ संग्रहलाय बड़ोदा विश्वविद्यालय का श्री बी जे संदेसर अर डा प्रिय बाला शाह यीं पोथी हस्तलेख तै प्रकाश म लैन । नृत्याध्याय का रचयिता अशोक मल्ल च त हिंदी अनुवादक महान विद्वान् वाचस्पति गैरोला छन. (1 )
नृत्याध्याय ‘ क रचयिता नाम अशोक मल्ल च। अर नृत्याध्याय पढ़न से लगद अशोक मल्ल एक शासक थौ पण कथैं शासक थौ यु पता नि चलदो। इन लगद बल अशोक मल्ल क बूबा जी नाम वीर सिंह छौ। हां ये समय याने बारहवीं सदी म भारत म अशोक मल्ल नाम से कै बि राजा क क्वी संदर्भ या सूद भेद कत्तै नि मिल्दो। नृत्याध्याय ‘ म अशोक मल्ल की विशेषता इन छन –
वीर सिंह सुत याने वीर सिंह पुत्र (2 ) वीरसूनना (3 ) , वीरसिहात्मक (4 ) , वीर सिंह सुनंदन (5 )
अशोक मल्ल न अफुकुण निम्न उल्लेख कार –
पूर्णवशोकमल्लेन प्रोक्तावुत्साह्गर्वयो: (6 )
समाचष्ट नृपाशोकमल्लस्तां हरिप्लुप्ताम (7 )
उपरोक्त व अन्य पदों म नृत्याध्याय का रचयिता अशोक मल्ल ने नृप , नृपाग्रणी, विदुषां वर: आदि विशेषणों से उपयोग कार। मतबल अशोक मल्ल एक राजा छौ , विद्वान् छौ अग्रगण्य बि थौ।
ये ही समौ पर आजौ नेपाल धरती से उत्तराखंड पर अशोक चल्लs राज थौ अशोक चल्लन कत्यूरी राज खतम करी अपण राज कायम कार। गोपेश्वर त्रिशूल व बाड़ाहाट अष्टधातु त्रिशूल म राजा नाम अशोक चल्ल या अशोक मल्ल माने जांद। त्रिशूल लेख म कुछ विद्वान् अशोक चल्ल बंचदन पर कुछ विद्वान् जन ऐटकिंसन , मदन चंद्र भट्टन (8 ) अशोक चल्ल बांच। याने अशोक चल्ल अर अशोक मल्ल एकी व्यक्ति थौ। डा डबराल अनुसार बोध गया म लेखों म अशोक चल्ल तै मल्ल लिखे गए (श्रीमल्लक्ष्मणसेन। .. ) व पुरुषोत्तम को बोध गया म कमादेश (कुमाऊं ) नरेश पुरुषोत्तम सिंह कु तिसर क च ये लेखम बि मल्ल शब्द च –
प्रख्यात हि संपादलक्ष शिखिर क्षमापाल चूड़ामणि
शीलै श्रीमदशोकमल्लमयि यो नत्वा विनिय स्वयम (9 )
अशोक चल्ल या अशोक मल्ल का उत्तराधिकारी नाम अणेक मल्ल थौ जां से साफ़ साफ समजे जै सक्यांद बल अशोक चल्ल ही अशोक मल्ल थौ अर ये ही व्यक्तिन नृत्याध्याय की रचना कार।
मतबल अबि तक अशोक चल्ल या अशोक मल्ल ेकी शक्श मालुम हूंद जैन ‘नृत्याध्याय ‘की रचना करि। अब तक ऐटकिंसन , मदन चंद्र भट्ट , प्रेम दत्त चमोली का विरोध या भीष्म कुकरेती द्वारा 2013 म या बात इंटरनेट म बि प्रकाशित च किन्तु क्वी विरोध नि ह्वे याने बल माने जाल बल अशोक मल्ल अर अशोक चल्ल ेकी व्यक्ति थौ जैन बारहवीं सदी म उत्तराखंड ( राजधानी पश्चिम नेपाल डोटी ) म राज कार अर नृत्याध्याय की रचना कार।
क्या च नृत्याध्याय म ?
भरत मुनि का पैथर अशोक मल्ल ही सबसे बड़ो नृत्य ज्ञाता माने जालो। डा वाचस्पति गैरोला ‘नृत्याध्याय ‘ को अनुवाद बि कार अर प्रकरणों विभाजन बि कार।
‘न्यायाध्याय ‘ नाट्य शास्त्र /कला/ विज्ञानं कु एक मुख्य भाग च। ‘ अशोक मल्ल रचित ‘नृत्याध्याय ‘ म नाच संबंधी अंग प्रत्यंगुं ब्योरा बड़ो भलो , विस्तृत से कर्युं च।
अशोक मल्ल या अशोक चल्ल कृत ‘ननृत्याध्याय ‘ 15 भागुं म बंट्युं च अर अशोक मल्ल कृत ‘नृत्याध्याय ‘ म 1730 ‘ पद्य छन।
प्रकरण सि तौळ छन –
हस्त
अंग प्रत्यंग
दृष्टि
उपांग
हस्त प्रचार
विचित्राभिनय
वर्तना
चालन
स्थानक
चारी
नृत्यकरण
उत्प्लुतिकरनकु निरूपण
अंगहार रेचक मंडल
लास्यांग
कलकरण प्रकरण
असलम यूँ प्रकरणो विभाजन अनुवादक विद्वान् न करी।
यांक अलावा प्रकरण समाप्ति बाद 108 नृत्यकरण मुद्राऊं चित्र सूची च अर 108 नृत्यकरणो अभिनय मुद्रा रेखाचित्र बि छन। (प्रेम दत्त चमोली )
लिख्वारन यां से पैलाक नाट्य शास्त्र्युं परिभाषा बि दियीं च। अर पूर्वाचार्य , पुरातनै , जन शब्द प्रयोग कर्यां छन।
ग्रंथ पवाण (प्रारम्भ ) अर अंत म की क्वी सूचना नी त यी लगद बल यु नाट्य शास्त्र कु एक अध्याय ही च।
वर्णन शैली सरल व स्पष्ट च।
उत्तराखंड इतिहास म अशोक चल्ल अर अशोक मल्ल एकि व्यक्ति माने जांद , फिर भारत म बारहवीं सदी म अशोक मल्ल नामौ कै शासकौ निशान बि नि मिल्दन तो साफ़ च बल ‘नृत्याध्याय ‘ ग्रंथ उत्तराखंड शासक अशोक मल्ल /छल न रची। ग्रंथ से स्पष्ट च बल बारहवीं सदी म गढ़वाल म संस्कृत पढ़ाये जांद थौ तभी तो गढ़वाल म शिलालेहों , त्रिशूलों म संस्कृत का लेख छन। अर वे समय लोक नाटक मंचन व शास्त्रीय नाट्य मंचन एक संस्कृति महत्वपूर्ण अंग छे। ग्रंथ गवाह च बल तब विद्वानों मध्य शास्त्रीय नाटकों पर चर्चा बि हूंदी थै।
1 -चमोली डा प्रेम दत्त , 2006 , गढ़वाल की संस्कृत को देन , प्रकाशक -प्रेम दत्त चमोली , देहरादून पृष्ठ 181 -82
2 – नृत्याध्याय पृष्ठ – 338 , 401 , 465
3 -नृत्याध्याय पृष्ठ – 398 , 486 , 1013
4 -नृत्याध्याय पृष्ठ – 889 , 1041
5 नृत्याध्याय पृष्ठ – 1537
6 – वही -पृष्ठ – 464
7 – वही -पृष्ठ – 1064
8 – मदन चंद्र भट्ट , 27 अगस्त 1976 पर्वतीय इतिहास के कुछ साधन , साप्ताहिक गढ़वाल
9 – डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास , भाग 1 पृष्ठ 398