
(नर नारायण कथा -1 )
उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
298 से बिंडी मौलिक गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
नर नारायण क उत्तराखंड से परोक्ष संबंध च। बद्रीनाथ मंदिर क द्वेवी ओर नर अर नारायण पर्वत श्रृंखला छन। नर अर्जुन अर नारायण कृष्ण को को अवतार बि बुले जांदन। महाभारत क शान्ति पर्व अर देवी भागवत पुराण म नर अर नारायण की कथा छन। कुछ कथा तौळ छन –
नर नारायण जन्म कथा
ब्रह्मा क हृदय से एक पुत्र ह्वे जैक नाम छौ धर्म। दक्ष प्रजापति की 13 पुत्रियों क ब्यौ धर्म से ह्वे। धर्म की पत्नी मूर्ति क द्वी पुत्र नर अर नारायण पैदा ह्वेन। दुयुं न अपर ब्वे क सेवा कार। मूर्ति न अपर पुत्रों से वरदान मंगणो ब्वाल। दुयुं न घोर तपस्या करणों वरदान मांग।
एक उपरान्त नर अर नारायण बद्रिकाश्रम म घोर तपस्या करण लग गेन।
इंद्र को कपट
नर अर नारायण को तप से दुयुं क तेज इथगा बढ़ कि देवताओं कुण बि ऊंक जिना दिखण कट्ठण ह्वे गे। सरा संसार म दुयुं तपस्या की प्रसिद्धि पसर गे। इंद्र ईर्ष्या व भय से भयभीत ह्वे गे। इंद्र तैं भय लग कि धर्म पुत्र नर अर नारायण की तपस्या से कखि मेरो सिंघासन नि डोल जाय अर दिबता नर नारायण तैं इन्द्रासन नि दे द्यान। इंद्र न दुयुं तपस्या भंग करणै विचार कौर अर बद्रिकाश्रम पौंछि दुयुं समिण पौंछि गेन।
इन्द्रन न ब्वाल , ” तुम लोगों जो भी कार्य हो मि मि करलु अदेय बि हो तो भि मि द्योलू। “
ध्यानमग्न नर -नारायण पर कुछ बि प्रभाव नि पोड़। तब इन्द्रन मायाजाल से दुयुं तैं भयभीत करणो प्रयत्न कार किंतु दुयुं ध्यान भंग नि ह्वे।
कार्य निष्फलता से इंद्र को क्रोध की क्वी सीमा नि छे। जब इन्द्रक सब करतब निष्फल ह्वे गेन तो इंद्र न कामदेव तैं बुलाई अर आदेश दे , कामदेव ! तुम तैं बद्रिकाश्रम म जाण पोड़ल अर तख नर -नारायण को ध्यान भंग करण पोड़ल। तुम अपर दगड रंभा, तिलोत्तमा , मेनका, सुकेशी, मनोरमा आदि अपसरा व संगीत रचणो हेतु गंधर्वराज बि राला ।
कामदेव रति सहित बद्रिकाश्रम गेन। तौन नर -नारायण को ध्यान क्षेत्र द्याख अर भा, तिलोत्तमा , मेनका, सुकेशी, मनोरमा आदि अप्सराओं तैं ध्यान भंग को कार्य दे। गंधर्वराज सब मधुर मधुर , आकर्षक स्वर म प्रेम गीत गाणा छा अर सब अप्सरा नृत्य म संलग्न ह्वे गेन।
नारायण न द्याख कि इंद्र ईर्ष्या से यु सब परपंच जुड्युं च। नारायण न ब्वाल , ” आप बिश्राम से जु करणायी सि कारो। मि तुमर स्वागतार्थ कुछ करदो।
नारायण न ध्यान कार अर एक युक्ति विचार कार।
नारायण कुछ समय हेतु ध्यान माय ह्वे गेन. तब नारायण न अपर जांघ पर हथेली क जोर से थाप दे तो एक सर्वसुन्दर आकर्षक , आभूषणयुक्त अपसरा पैदा ह्वे। चूंकि जंघा से जन्म ह्वे तो तुरंत नाम उर्वशी पोड़।
उर्वशी क सुंदरता पर कामदेव हि ना तखम इंद्रलोक से अयां अपसरा बै आकर्षित ह्वे गेन अर तौंकि इच्छा उर्वशी तैं छूणै ह्वे गेन अर छूणो हेतु विचलित ह्वे गेन।
जब सब अपसरा तुरंत सुध म ऐन तो समज गेन कि नारायण ऋषि क्वी ना भगवन विष्णु छन अर नर अर्जुन च।
सब्युंन ऋषि नारायण अर्थात विष्णु से क्षमा मांग अर विष्णु न उर्वशी तैं तौंक दगड़ इंद्रलोक भेज दे।