
(अवचेतन मन की कथा )
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
मि तब रूढ़िवादी छुट शहर से इख मुंबई औं . मुंबई अर्थात सपना पूर हूणो शहर। मुम्बई अर्थात पुरुष -महिला म हीन से हीन अंतर। पर इन नि छौ। मि तब की बात करणु छौं जब मुंबई म कार्यालयों म टाइपिस्ट अर स्टेनो क अर्थ हूंद छौ गोवन , ईस्ट इंडियन या कर्नाटकी क्रिश्चियन या कुछ सीमा तक केरल क क्रिश्चियन । हिन्दू स्टेनो भौत हीन संख्या अर मुस्लिम महिला क बारा म तो सुचे बि नि सक्यांद छौ. ओफिस ज्वाइन कार तो युवा छा। छोकरी क आस पास जाण प्रकृति क देन छे। नया नया मित्र बण गे छा तो जन सामान्य काल म जन हूंद तनि मित्रों न पूर्वग्रही सुझाव दे कि यदि बिन ब्यौ को छोरी पटाण तो क्रिश्चियन छोरी ही ठीक छन। हिन्दू छोरी फ्रैंक नि हूंदन। अब इन सुझाव क्वी नि द्यालो कारण सती सावित्री , विर्जिनिटी , कम्मीटेड लव की परिभाषा ही परिवर्तित ह्वे गे। अब लड़की पटाणो दृष्टिकोण ही बदल गे। अब फ्रैंकनेस को धर्म या पंथ से क्वी संबंध नि रै गे -मुंबई म ही ना गढ़वळि गांवों म बि पतिव्रता एकनिष्ठ कन्या को अर्थ ही परिवर्तित ह्वे गे।
मी बि क्या से क्या ह्वे ग्यों। हां तो मि छुट शहर से मुंबई औं। आजीविका एक ओफिस म लग गे छे। युवा छौ तो छोर्युं ओर झुकाव क्वी अस्वाभाविक नि छौ , हां जु छोर्युं क आकर्षण नि हूंद तो डाक्टर म जाण ठीक रौंद। ओफिस म तो ना किंतु वीं बिल्डिंग म दुसर ओफिस म कार्य करदार क्रिश्चियन नौनी से लफ्त म परिचय ह्वे। छोरी यदि किलोपेट्रिया नि छे तो टुनटुन बि नि छे। गात म हम दुयुंम समानुपात ही छौ। सैत च तबि हम्म परिचय ह्वे अर धीरे मित्रता तक पौंछ। पैल आँख्यूं आंख्युं अर हूंठ हूंठ से बातचीत ह्वे। अर तब नाम परिचय , कै ओफिस म को परिचय ह्वे। सैत च मीन परिचय म कुछ बिंडी देर कर दे छे। नाम परिचय म मार्था न बोल बि दे , ” मुंबई म कन खै सकिल्या। जब इतना दिन लगिन म्यार नाम पुछण म। इथ्गा झिझक रैली तो मुंबई म मार खैल्या। “
कुछ दिन उपरान्त वींक तो नि पता पर मेरी इच्छा मार्था तैं मिलणो कुछ बिंडी क्या अधैर्य की स्थिति तक ह्वे गे। मार्था बि बींग गे कि मि वींक मिलणो व्यग्रता पूर्वक प्रतीक्षारत रौंद। मि ऑफिस समय से पैल आण लग ग्यों कि बिल्डिंग क गेट से पैल मारता से मिल जौं। तब मीन मार्था तैं बांद्रा म ट्रेन म चढ़नो समय पूछ। मार्था समज गे कि अब मि वीं पर अति आकर्षित ह्वे ग्यों। मार्था बांद्रा से बांद्रा से शुरू हूण वळ ट्रेन से आंदि छे। मीन इच्छा बताई कि मि भोळ नौ बजि सुबेर बांद्रा म मिललु। मार्था न होंसिक ब्वाल ओके। मि दुसर दिन अँधेरी से ट्रेन से ऐक ठीक नौ बजी से पैल प्लेटफार्म म पौंछि ग्यों। मार्था तै जनि मील कि वा बि फ्यूंळी जन खिल गे।
वैदिन तो मार्था अपर सामन्य महिला कम्पार्टमेंट से गे तो मि पुरुष कम्पार्टमेंट से। किन्तु दुसर दिन मार्था अर मि सामान्य कम्पार्टमेंट (पुरुष ) से आवां। अब मेरी रिक्वेस्ट पर जांद दैं बि दगडी ेकी कम्पार्टमेंट से जाण लग ग्यां। अब हम घर जाण म देरी करण लग गेवां। में पर तो देर से औं या समय पर औं क क्वी चिंता नि छे। मार्था घर म देरी क कारण क्या बतांदि छे मीन नि पूछ। हां बीस पचीस दिन उपरांत मार्था न संकेत दे कि वींक डैडी अर ग्रैंडमा मि तैं दिखण चाणा छन। किंतु मार्था बि जणदि छे मि बि जणदु छौ कि मि इंडस्ट्री म अबि औं तो आजीविका म वेतन अर घर हूण म समय लगल तो ब्यौ की बात तर्कसंगत नि छौ।
ट्रेन म भीड़ मध्य हमर एक दुसर क शरीर की रगड़ से हम क्वी हौर संबंध रचणो सुचण लग गे छा। भीड़ म वा बि अर मी बि शरीर रगड़न म विशेषज्ञ ह्वे गे छा। रगड़न से अब अग्निक सुख की आशा बढ़ तो एक दिन हमन सिनेमा दिखणो सबसे पैथराक सीटों क टिकट लेन। आधा या पौण घंटा म हमन नि जाणी कि फिल्म कन च क्या च। हम द्वी अति उत्तेजित ह्वे गे छा। हम एक दुसराक अंगो पर हाथ फिराणा छा अर आस पास का लोगों उपस्थिति बि हम बिसर गेवां। हम द्वी इथगा उत्तेजित ह्वे गे छ कि हाल से भैर ऐ गेवां। मीन ब्वाल क्वी होटल खुजे जाय। मार्था बि उद्यत ह्वे गे। दुयुं क समज ऐ गे छौ कि काम पीड़ा समाप्ति कुण ब्यौ से पैल इ मांगलिक मिलन आवश्यक च।
हमन निर्णय कौर याल छौ को होटल सही रालो। पैदल ही हम होटल क जिना चलण मिसे गेवां। मि कुछ लज्जाहीन ह्वेक मार्था क अंगों क असभ्य प्रशंसा करणु छौ अर मार्था बि आनंद म म्यार हाथ बार बार पटकाणी छे। जनि होटल दिखे कि म्यार संस्कार अगनै ऐ गेन। धोखा, शरीर शोषण पता नी क्या क्या विचार ऐन कि इन मांगलिक मिलन अमांगलिक च। अर उना मार्था क बि जोश समाप्त ह्वे गे। मार्था न ब्वाल , ” आई डोंट नो ! मेरी ग्रैंडमा न बोली छौ कि दगुड करी किन्तु विर्जिनिटी बचैक रखी “
अर कुछ देर वा बि अर मी बि हिमशिला जन जामि गेवां। मि प्रयत्न करणु छौं कि मिलन ह्वे इ जा किन्तु फिर मी बि मानि ज्ञान। हम द्वी होटल नि गेवां अपितु अपर अपर घौर।
दुसर दिन से हमर एक दुसर से मिलणों उत्साह हीन हूंद गे। ज्वा भावना ब्याळि तक छे मिलन को आनंद की वा सर्वथा समाप्त ह्वे गे। अर धीरे धीरे हमन मिलण समाप्त ही कर दे। लिफ्ट की लाइन म ही मूल मूल हंसण तक हमर संबंध सीमित ह्वे गेन।
अर मि मुंबई क प्रतियोगिता जंजाळ म फंस ग्यों। ओफिस म सहयोगियों से प्रतियोगिता, वेतन वृद्धि हेतु प्रतियोगिता , एक से हैंक कम्पनी बदलण , प्रतियोगिता। घर क्रय म प्रतियोगिता , परमोसन म प्रतियोगिता। म्यार संसार ही प्रतियोगी संसार ह्वे गे छौ। अब मेरो सब भावना प्रतियोगी प्रबंधन क अधिकार म छौ। कथगा हंसण , कन हंसण , कथगा दुःख दर्शाण , कन दुःख दर्शाण , नि हंसण , नि दिखाण अपितु रुखा व्यवहार करण सब प्रतियोगिता क मापदंड तय करण लग गे।
प्रतियोगिता अर धन इथगा हावी ह्वे गे कि मि अड़सठ वर्ष को हूणो उपरान्त बि नौकरी या कंसल्टेंसी करदो अर देस विदेशों म लंबे टूर करदो। नाती नातण छन पर ऊं कुण समय नी। समय च तो केवल प्रतियोगिता अर धन हेतु। कुज्याण कब मि मार्था तैं बिसर गे छौं धौं।
मि एक मूल्यवान प्रोजेक्ट पर सिंगापोर आयुं छौ। एक मैना से मि टूर पर हि छौ। एक होटल म सात दिनों से ठैर्यूं छौ।
आज मि डिनर म इखुलि छौ। क्लाइंट दगड़ न नि छौ तो होटल क रॉयल लॉबी मि व्हिस्की क चुस्की लगाणु छौ अर समिण पर एक महिला दगड़ आँख लड़ाणु छौ। संभवतया वा कैकि वोमन फ्रेंड छे।
पीणो अर भोजन उपरान्त रूम म औं अर से ग्यों । रात सुपिन म आज मार्था आयी। मार्था अर मि पैल ओफिस म छा कि पुनः फटाक से वै होटल म ऐ गेवां जै होटल म हम तब जाण चाणा छा। अब हम एक हैंकाक वस्त्र गाडणा छा। मी पर तो शीघ्रता छे तैं तैं निर्वस्त्र करणो किंतु मार्था धीरे धीरे अर मेकुण बि वा धीरे कपड़ा उतारणो बुलणी छे। मि सुपिन म अति उत्तेजित छौ। अगनै कुछ् हूंद कि डुअर बेल बजी अर मेरो सुपिन क प्रेम मिलन बि रुक गे। सुपिन टूट गे।
मीन दरवाजा ख्वाल तो क्या द्याख कि रात वळि महिला खड़ी छे। वींन ब्वाल , ” हाय हनी। अभी फारिक हों। डू यू नीड मी ? टू थाउजेंड सिंगापुरी डॉलर फॉर वन आवर। “
मि अनिर्णय क कुंवा म तैरणों छौ।