डा भवानी दत्त उप्रेती ने जहाँ कुमाऊंनी भाषा में दो प्रकार की संधियों के बारे में पुष्टि की वहीं अबोध बंधु बहुगुणा ने गढ़वा ळी में तीन प्रकार की संधियों के उदहारण सहित व्याखा की है
श्रीमती रजनी कुकरेती ने संधियों का विभागीकरण न कर केवल उदहारण दिए हैं.
बहुगुणा अनुसार की संधि इस प्रकार हैं
१- स्वर संधि
२- व्यंजन संधि
३- वि:सर्ग संधि
गढ़वाली में स्वर संधि
गढ़वाली भाषा के महानतम विद्वान् व लेखक अबोध बंधु बहुगुणा ने स्वर संधियों में किया
अ- दीर्घ स्वर संधि :
झट +आदि = झट्टदि
झट् + ट् = झट्ट
गंध + अक्षत = गंधाक्षत
ब- गुण स्वर संधि:
सुर +इंद्र = सुरेन्द्र
सुख + इच्छा = सुखेच्छा
बड़ो + उड़्यार = बड़ोड़्यार
स- वृद्धि स्वर संधि
जण + एक = जणेक, जणैक
तंत = उखद = तंतोखद
द- यण स्वर संधि
भैजी + आदि = भैज्यादि
बौजि + औरु = बौज्योरू
इ- अयादी चतुष्टय संधि
ने + अन = नयन
पो + इतर = पवितर
२- गढ़वाली में व्यंजन संधि
वाक् + ईस
दिक् + गज = दिग्गज
३- गढ़वाली में विस:र्ग संधि
दु: + कर्म = दुस्कर्म
अध्: + गति = अधोगति
शुरुवाती आधुनिक गढ़वाली के कवि चंद्रमोहन रतूड़ी की कविताओं में कुछ विशेष संधि युक्त शब्द भी मिलते हैं
पैर + टेक = पैर्टेक
बढ़दि + और = बढ़द्यौर
बुंदुन + यख + इंद्र= बुंदुन्यखेंद्र
मृग + और + अन्द्कार = मृगौरंधकार
आतुर – और + स्वास = आतुरोर्स्वास
गढ़वाली में संधि व परसर्ग विलोपन
गढ़वाली में संधि व परसर्ग विलोपन भी होता है और कई एक जैसे उच्चारण वाले शब्दों की रचना हो जाती है. श्रीमती रजनी कुकरेती ने निम्न उदहारण दिए हैं
लिखित रूप ——————-उच्चारण —————————-वा
तक्खौ ————————-तखौ ——————————
तख़ औ ———————–तखौ ——————————
तखौ ————————–तखौ ——————————
तखै—————————
तख ऐ ————————तखै—
तख आ ———————-तखा ——————————
तखाS ———————–तखा ——————————
स्यै ————————— स्यै ——————————
स्वी —————————स्
वै ——————————
वी ——————————
त्वी —————————–
जखी ————————–जखी ——————————
तखी ————————— तखी ——————————
सीतै —————————– सीतै————————–
मिनी —————————मि
तन्नि————————-
रामी ——————————
रामि का अर्थ गाय/भैंस का भूतकाल का राम्भना भी होता है यथा या गौड़ी किलै रामि होली ?
संदर्भ:
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल
३- डा. भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद
४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून
५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला
६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून
७- श्री एम्’एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत
८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत
९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ
१० – भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल
११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल
१२- चन्द्र मोहन रतूड़ी , गढ़वाली कवितावली ( सं. तारा दत्त गैरोला, प्र. विश्वम्बर दत्त चंदोला) , १९३४, १९८९