Uttarakhand Tourism in Narendra sha Period
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) 68
राजा नरेंद्र शाह का शासन काल 1919 से 1946 तक रहा। . यह काल टिहरी में स्वंत्रता आंदोलन व राज अत्त्याचारों का काल रहा। टूरिज्म या पर्यटन दृष्टि से निम्न घटनाएं प्रमुख रहीं –
नरेंद्र नगर की स्थापना
प्रताप शाह व कीर्ति शाह ने अपने नाम से नगर बसाये थे किन्तु वे मोटर मार्ग से भी जुड़ पाए। नरेंद्र शाह ने ऋषिकेश से 10 मील की दुरी पर 5000 फ़ीट की ऊंचाई पर उड्याळी गाँव में नरेंद्र नगर बसाया जो आज भी उत्तराखंड पर्यटन में अपना योगदान देने में सक्षम है। नगर निर्माण कार्य 1921 में सहस्त्र चंडी कर्मकांड से शुरू हुआ और दस सालों तक चलता रहा। महल कार्य 1924 में सम्पन हुआ। गृह प्रवेश उत्स्व भी धूमधाम से मनाया गया। सेक्रेट्रिएट भवन 1942 में पूरा हुआ। नरेंद्र नगर में डाकघर , दुकाने कर्मचारियों के लिए भवन आदि सभी का प्रबंध किया गया था और 30 लाख रूपये में नगर बसाया गया था।
हेली हॉस्पिटल
१९२५ में नरेंद्र नगर में हेली हॉस्पिटल का निर्माण कार्य 1921 से शरू हुआ। टिहरी से ऋषिकेश पैदल मार्ग का चौड़ीकरण भी किया गया। जनता से मुफ्त में ‘प्रभु सेवा ‘ के नाम पर कार्य करवाया गया।
चिकित्सालयों की स्थापना
नरेंद्र शाह ने पुराने चिकित्सालयों में नए यंत्रों का प्रबंध किया व कुछ और चिकित्सालय भी खुलवाए। कुछ डिस्पेंसरियां भी खोलीं गयीं।
वीर गबर सिंह स्मारक
प्रथम विश्व युद्ध में शौर्य हेतु विक्टोरिया क्रॉस पदक प्राप्त गबर सिंह की स्मृति में 1924 में चम्बा में एक स्मारक का निर्माण हुआ।
नरेंद्र शाह द्वारा विदेश यात्राएं
नरेंद्र शाह ने 11 बार विदेश यात्रायें कीं।
ऋषिकेश कीर्ति नगर मोटर मार्ग
1937 -38 में देवप्रयाग से कीर्ति नगर तक मोटर मार्ग निर्मित किया गया।
नरेंद्र नगर टिहरी मोटर मार्ग व टिहरी से उत्तरकाशी मोटर मार्ग योजनाएं
नरेंद्र शाह और मंत्री चक्रधर जुयाल मोटर मार्ग के पक्षधर थे। 1939 तक नरेंद्र नगर से टिहरी मार्ग पर चम्बा तक मोटर चलने लगीं थीं।
टिहरी से उत्तरकाशी मोटर मार्ग हेतु सर्वेक्षण कार्य भी किया गया। कीर्ति नगर से टिहरी मोटर मार्ग की भी योजना बनाई गयी थी।
तीर्थ यात्रा सुधार बिल
1924 में तीर्थ यात्री आगमन वृद्धि हेतु तीर्थ यात्री सुधार बिल पास हुआ। इस विधान में पंडों , पुजारी हेतु हिंदी , संस्कृत शिक्षा अनिवार्य किये गए व यात्रियों की सुविधा हेतु चट्टियों में नव प्रबंधन व निरीक्षण का प्रावधान किया गया व अन्य सुविधा हेतु कार्य प्रावधान किये गए। पंडों , पुजारियों को तीर्थ यात्री उन्मुखी बनाने का कार्य प्रशंसनीय ही माना जाएगा।
द्वितीय विश्व युद्ध में गढ़वालियों का शौर्य
प्रथम विश्व युद्ध की भांति द्वितीय विश्व युद्ध में भी गढ़वाल प्लैटून का शौर्य अविश्मरणीय रहा व गढ़वाल को एक नई छवि व प्रसिद्धि मिली। दोनों गढ़वाल को सेना में भर्ती होने से समृद्धि के नए द्वार खुले जो आज तक चल ही रहा है। गढ़वालियों द्वारा विदेश यात्राों या यहीं से कई नई संस्कृति गढ़वाल को मिलीं जैसे गंगासलाण में गेंद व हिंगोड़ खेल व उत्तररखण्ड को मुशकबाज वाद्य यंत्र। सेना कर्मियों द्वारा उत्तरखंड के मैदानी हिस्से में बसने का हौसला भी सेना ंवृत कर्मियों द्वारा गढ़वालियों को मिला।
भूतपूर्व सैनिकों ने पर्यटन उद्यम में भी निवेश किया जैसे दुकानें खोलना या भवन निर्माण करना। सैनिकों द्वारा गढ़वाल में आधुनिक संस्कृति या सभ्यता भी आयात हुयी। कोटद्वार , काशीपुर जसपुर , देहरादून में नई बसाहत का श्रेय तो भूतपूर्व सैनिकों को ही जाता है। गाँवों में शराब प्रचलन भी सैनिकों द्वारा ही बढ़ा।