कथा – भीष्म कुकरेती
एक घिंडुड़ी छे। खूब रंगीन स्वभाव की छे। तैंक घोंसला घर क छत क छज्जा तौळ दासुं मध्य छौ। एक दिन स्या घिंडुड़ी खेतों बिटेन एक जुंडळो दाणी लेकि अपण घोंसला तरफ जाणि छे कि दाणी तौळ भ्यूं खते गे। घिंडुड़ी जुंडळौ दाणी शोध म खेत म गे तो तैं का कपाळ पर एक बड़ो कांड पूड़ गे।
घिंडुड़ी क कपाळ पर घौ ह्वे अर घौ बिटेन ल्वे आण लग गे। घिंडुड़ी न बोलि -” द्याखौ द्याखौ ! म्यार कपाळम लाल बिंदि च। “
दुसर दिन तैंक घौ पर पीप भरे गे. घिंडुड़ी बी च्युचाट करदा जोर से बोलि – “द्याखौ द्याखौ ! म्यार भौं मधे चंदन लेई , चंदन लेई च। “
तिसर दिन घौ पर कीड़ पोड़ गेन। घिंडुड़ी बी च्युचाट करदा जोर से बोलि – “द्याखौ द्याखौ ! म्यार दगड़्या क्या आनंद लीणा छन। “
चौथ दिन घिंडुड़ी मरण लग गे। मुरदा मुरदा घुंडड़ी न बोलि -” द्याखौ द्याखौ मेरी नींद द्याखौ। “
जरा उत्तर द्यावो घिंडुड़ी फेंकू छे कि सकारात्मक ?
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती , २०२२