Uttarakhand medical Tourism in Medanishah Period
( उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म इतिहास )
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -50
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
इतिहास लेखकों के अनुसार मेदनीशाह का शासन काल 1660 -1684 माना जाता है और उसने अपने पिता से शासन छीना था। क्या औरंगजेब जैसी नेथ उस समय पहाड़ में फ़ैल चुकी थी ? मेदनीशाह काल गढ़वाल में पर्यटन व यात्रा दृष्टि से हलचल भरा था।
रामसिंह का श्रीनगर आगमन
औरंगजेब ने अपने भतीजे सुलेमान शाह को लौटाने हेतु सभी छल , प्रभोलन, भय दाता कार्य किये। औरंगजेब ने देहरादून व भाभर छीन लिया था। कई राजनैयिक वार्ताएं चलीं। तब जाकर मेदनीशाह सुलेमान शाह को सौंपने तैयार हुआ। 12 दिसंबर 1660 को औरंगजेब ने जय सिंह के पुत्र राम सिंह को भाभर से सुलेमान को पकड़ कर लाने का आदेश दिया। रतूड़ी अनुसार रामसिंह श्रीनगर आया और पृथ्वीपति शाह से भी मिला था। राम सिंह -मेदनीशाह के षडयंत्र भांपकर सुलेमान ने तिब्बत भागने का भी प्रयत्न किया था।
मुस्लिम गाथा लेखक व मौलाराम अनुसार श्रीनगर नहीं आया था। उनके अनुसार सुलेमान को लेकर मेदनीशाह भाभर पंहुचा और 27 दिसंबर 1660 के दिन राम सिंह को सुलेमान शिकोह को सौंपा। 2 जनवरी 1661 को राम सिंह व अन्य मनसबदारों के साथ दिल्ली ंहुचा। कुछ गाथा लेखकों अनुसार मेदनी शाह भी दिल्ली पंहुचा था।
वास्तव में औरंगजेव ने तुरंत दून प्रदेश वापस नहीं सौंपा था। औरंगजेव की आज्ञा अनुसार मेदनीशाह ने बुटोल गढ़ जीता और औरंगजेब को सौंपा। मेदनीशाह दिल्ली पंहुचा व तब औरंगजेब ने दून परदेह वापस किया।
लोककथाओं में पुरिया नैथानी का दिल्ली दरबार में दर्शन देने की बात कही जाती है किन्तु इतिहास में कोई साक्ष्य नहीं है।
मेरी गंगा ह्वेलि मेरी पास आली व हरिद्वार में पर्यटकों का आगमन
एक बार कुम्भ में मेदनीशाह हरिद्वार गया। प्रथा अनुसार ब्रह्मकुंड में सर्व प्रथम स्नान गढ़ राजा करता था। इस बार बहुत से राजाओं ने परिरोध किया और गढ़वाल राजा से पहले स्नान की योजना बनाई। मेदनीशाह चंडीघाट में था। उस रात मेदनीशाह ने कहा ‘मेरी गंगा ह्वेलि मेरा पास आली ‘ .कहते हैं गंगा ब्रह्मघाट छोड़कर चंडीघाट की और बहने लगी।
लगता है उस साल ऋषिकेश में कोई भयंकर भूस्खलन हुआ होगा जिससे गंगा का रास्ता बदल गया होगा। मेदनी शाह काल में हरिद्वार कुम्भ मेला 1664 , 1676 , 1688 में हुए होंगे। सुजन राय रचित ‘खुलसत -उत -तवारीख” (1695 ) में उल्लेख है कि हर वर्ष बैसाखी में हजारों लोगों द्वारा आगरा सूबा के तहत हरिद्वार में स्नान व हर बारह वर्ष में हरिद्वार कुम्भ मेला का वर्णन मिलता है जिसमे दूर दूर कोने कोने से लाखों तीर्थ यात्री भाग लेते थे। हरिद्वार में पिंड दान , अस्थि विसर्जन का भी उल्लेख उपरोक्त ग्रंथ में है।
धार्मिक पर्यटक हरिद्वार से ऋषिकेश होते हुए चार धाम की भी यात्रा करते थे। आगे बताया जाएगा कि किस तरह कुम्भ समय हैजा प्रसारित होता था व भक्त जब गढ़वाल आते थे तो गढ़वाल में यात्रा मार्ग पर भी हैजे का प्रकोप शुरू हो जाता था व हजारों की संख्या में मौतें होतीं थी कई गाँव खाली हो जाते थे व उजाड़ हो जाते थे। तब राजकीय चिकित्सा सहायता नाम की कोई विचारधारा गढ़वाल -कुमाऊं में नहीं थी।
गुरु रामराय का देहरादून आगमन
गुरु राम राय को सिक्खों द्वारा गुरु पद न दिए जाने के कारण विद्रोह कर औरंगजेब से साथ मित्रता करनी पड़ी व अंत में सन 1875 गढ़वाल के दून प्रदेश में खुड़बुड़ा गाँव में डेरा डालना पड़ा।