274 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
तिमलतपड़ा गां म प्रति तीन वर्ष म देवी क सँजैत पुजै हूंद। सरा विश्व व देस से प्रवासी देवी पुजै म सम्मलित हूंदन अर फूफू , बैणि , भणज बि जुट जांदन। ए समय जनसंख्या बिस्फोट से सबसे बड़ी समस्या आदि पाणी की। चारों ओर से गदन हूणो उपरांत बि तिमलतपड़ा म सामान्य दिनों म बि पाणी कुण तरसदन। कबि बल यूं गदनों म बरमासा माछ हूंद छा बल कै जमन म। अर अब ? सुख्यां गदन बतांदन कि कबि हिंवल नयार की बेटी इख अवश्य बगदी ह्वेलि। सँजैत पूजा समय दुगड्डा क गदन से चार पांच टैंकर प्रति द्वी दिन म आंदन।
सँजैत पुजै समय इथगा भीड़ म अधिकतर प्रवासी युवा अपर गांवक भूगोल इतिहास पर भौत ध्यान दींदन। वैदिन कुछ युवा नयाणो एक किलोमीटर गांवक पणचर डड्वा सट्याड़ म भौत छुट धार म अयाँ छा। तौंक भाग्य से तबी सबसे वरिष्ठ दौल दादा जी बि गांवक नळ की भीड़ से बचणो इना नयाणो अयां छा। उन यु पाणी गांव वळ तबि प्रयोग करदा छा जब गोर यीं सारी गोर आवन। पर अब ना गोर ना ये पाणी क आवश्यकता। वो तो युवा पिकनिक की पिकनिक अर नयाण बि ह्वे जाय को उद्देश्य से इख ऐन। धार एक बांस क बड़ो कड़कड़ा पत्ता से बणयूं छौ। पंद्रह मिनट म द्वी बल्टी पाणी भरेंंणु छौ। ये समय क लाभ यो ही छौ कि प्रवासी युवा अपर अपर प्रवास को परिचय देकि परिचय बढ़ाना छा। क्वी अमेरिका, क्वी कनाडा , क्वी न्यूजीलैंड, क्वी दिल्ली , क्वी बनारस से छा। युवा परिचय से आनंद लीणा छा कि नार्थ कैरोलिना म रौण वळ गोल्डी उर्फ़ रोहित न ब्वाल , ” यार गाँव तो आनंद दायी है हमारा किन्तु आइ डोंट अंडरस्टैंड द नोमिनक्लेचर सिस्टम ऑफ प्लेसेज इन द विलेज। गाँव मे स्थानों क नाम कुछ अर अर्थ कुछ हौर। सरप्राइजिंग। “
देहरादून म रौण वळ गोल्डी क चचेरा भाई न पूछ जो भौत वर्ष तक गाँव म ही पौढ़ लिख न पूछ , “कन रै गोल्डी इन किलै बुलणु छे ?”
तबि कनाडा म रौण वळ बत्तीस वर्षीय कपिल न ब्वाल , ” हां हां आई एग्री विद गोल्डी। स्थानों क नामों क कैरेक्टर मेल नि खांद। “
बनारस म रौण वळ युवा विजय न ब्वाल , ” हां हां। नाम च पुर्यत क पाणी अर द्याखौ तो कखि पाणी नी। नाम च इकर क पाणी अर लगद। बांस ख्यात म एक बि बांस नी , भौत सा। “
गोल्डी न दौल ददा क ओर द्याख , ” दादा जी ! बांज की धार में एक भी बांज नहीं , नौली धार में कोई नौली याने वाटर रिजर्ववायर नहीं , ऐसे कोई नाम धर्ता थे क्या पहले ?”
दौल ददा शती से हंसण लग गे। कुछ समय उपरान्त दौल ददा न ब्वाल ,” तुम इ ना। मीन बि अपर ददा जी तैं यी प्रश्न पूछ छौ अर ददा न अपर बूबा जी या ददा जी से पूछ छौ। हां हम सबुन गढ़वळि म प्रश्न पूछ छौ तुम क्वी अंग्रेजी म या हिंदी म प्रश्न पुछणा छ। गढ़वळि म क्वी बि गांव विषय म क्वी प्रश्न नी पुछणु। क्वी बात नी तुमर प्रश्न गाँवप्रेमी प्रश्न छन। तो गोल्डी सबसे पैल तेरो प्रश्न को उत्तर आवश्यक च। तेरो प्रश्न बांज धार म बांज किलै ना को उत्तर से ही बांस ख्यात म बांस किलै ना , हल्डुण धार म हल्डुण नि हूण, नौली नाम किन्तु नौलि तो दूर पाणी ना , इनि सब पाणी क नाम छन किन्तु गाँव म पाणी नी। इखम ही देख ल्यावो। जरा ठीक से दृष्टि डाळो तो जरा तो पचास पिचहत्तर वर्ष पूरण धान का रोपण वळ खेतों क मींडो क अवशेष , कूल का अवशेष दिखेणा छन ? जरा टक्क लगैक द्याखौ। “
सबुं न ध्यान से द्याख तो चिल्लैंन , ” हाँ , मींड़ , कूल का अवशेष छन। “
यूं सब प्रश्नों क उत्तर बाजक धार म बाजक एक बि डाळ किलै नि का उत्तर म च ? दौल ददा न ब्वाल अर तब गांवक भूगोल कथा सुणाई।
जखम हम छा यू ह्वे डड्वा क पाणी सारी। इथगा पाणी छौ कि गांव वळ रोपण वळ धान की खेती करदा छा अर भौत दैं ग्यूं क बुताई म बि खेत कुलांदा छा। ये से सीधा मथि पुरयत डांड म कुंवा जन छौ पाणी। भौत पाणी छौ तख बि डांड म। अर ये गदना गदन अळग च इकर जैकु नाम च ‘इकर क पाणी या इकर क गदन। तख इथगा पाणी छौ कि तख बिटेन तैली धार ठाकुर परिवार कूल से अपर सग्वड़ अर बगवान कुल्यांद छा। अब तो कुछ स्थानों पर सौ वर्ष पुरण कूल क अवशेष होला। “
“पुर्यत मथि साकी डांडा म घनघोर बाजक जंगळ छौ। पूरब म जावो तो भटिंडा डांड अर्थात इकर क पाणी ंथी डांड म बि बाजक जंगळ छौ। बगल म जख नौलि छे अर उख चैनु दास क परिवार वळ रौंद छा तख कबि। नौलि मथि छ रिखणी डांड सी बै बंजण छौ। बगल ज डांड मिथाळ डांड जैक तौळ गांवक ाजक पाणी धार च स्यु बि बाजक जंगळ ही छौ। मिथाळ डांडक बगल वळ च बाजक धार स्यु तो अति बाजक जंगळ छौ। बाजक जंगळ अर्थात बुरांस ,काफल आदि क जंगळ। “
दिली वळ प्रेमरतन न पूछ ,” हमर गाँव म अर काफळ ?”
” हमर गांवक सब डांड बांज , बुरांस , काफळ आदि क डांड छा। “दौल ददा न बताई।
सबुं मुख खुल्यां क खुल्यां रै गेन जो डांड आज कुंळैं क जंगळ छन सि हमर गौं का बांजक जंगळ छा जख काफळ अर बुरांस बि छा।
दौल ददा न ब्वाल , ” तब हमर गां म सब स्थानों म कुल्याण लैक पाणी छोया छा। पुर्यत क तौळ क छाया तो बगद बगद दुसर गांव वळो कुण कुल्याणो इथगा बड़ स्रोत्र छा कि सी गांवक लोक लगभग तौंक गांवक न्याड़ ध्वार पणचर सट्युं खेती करदा छा। ल्यासण प्याज का भंडार वळ गांव मने जांद छौ सि तौळ वळ गां। अर अब पाणी नळ बि दूर छै किलोमीटर गदन बिटेन ऐना।
बंगलोर म आइ टी कम्पनी म कार्यरत युवा हरी सिंह पूछ, ” पर दादा जी चार छै किलोमीटर लम्बे हमारे डांडों में एक बि बांज नहीं दीखता है। ” अर भावुक ह्वे वो गढ़वळि म पुछण लग गे , ” इन क्या बज्जर -बिजोग पोड़ कि बांज लुप्त ह्वे गेन। “
भावुक ह्वेक दौल ददा न व्याख्या कार , ” बच्चा लोगो परतंत्रता कई भाँती क शोषण लांदी। अंग्रेजों से पैल हमर गाँवों म चीड़ -कुंळैं बांज बुरांस जंगळ से मथि ही पनपदा छा। तौळ बांज , बुरांस , काफळुं क अधिकार छौ। गांव वळ बि चीड़ों तैं पनपण नि दींद छा तो चीड़ बांज -बुरांस पंक्ति नि लांघदा छा। गाँव वळ चीड़ का छुट पेड़ों तै उखाड़ी दींदा छा। बुले बि जांद छौ चीड़ क खंजर करे भूमि तैं बंजर। अंग्रेजों पैल गढ़वळि राजा भूगोल परिवर्तन म हीन हस्तक्षेप करदा छा तो गुरख्या बि। तब एक तल अर्थात भ्यूंतल (ground flour ) भवन को ही संस्कृति छे। तो भवन हेतु चीड़ क लकड़ी क भौत हीन आवश्यकता होंदी छे बस दिवळ छिल्ल हेतु।
अंग्रेजों न गढ़वाल म द्वी भयंकर परिवर्त्तन करैन। जनि अंग्रेजी राज शुरू ह्वे तो अंग्रेजों न लगान हेतु खेती वृद्धि पर ध्यान दे अर लोगों तैं जंगळ काटि खेत निर्माण तै उत्साहित कार। यी जो गांव से दूर दूर का खेत छन यी अंग्रेजों क युग म जंगळ काटि निर्मित ह्वेन। कुछ बाजक जंगळ बि भूमि हेति बलि चढ़ाये गेन।
फिर आयी पौणे द्वी वर्ष पैल ब्रिटिश आदेस कि गाँव क आस पास बांज काटि चीड़ क बगीचा। ब्रिटिश शासन न गांव वळों तै चीड़ बगान लगाण पर ;लगान माफ़ी ‘ दे तो लोगों न बाजक जंगळ काटि चीड़ क बगीचा लगाण शुरू कर दे। “
एकान प्रश्न कार , ” पर अंग्रेज बांज काटी चीड़ किलै चांदा छा ?”
हरी सिंह क उत्तर छौ , “मीन पौढ़ छौ कि 1857 उपरान्त यूरोप म चीड़ क स्लीपरों व लीसो बड़ी डिमांड बढ़ छे। “
दौल ददा न हामी भौर , ” हां अंग्रेजों तै चीड़क स्लीपर चयेणा छा , लीसो चयेणो छौ तो तौंन हमर पहाड़ों बिटेन बांज बुरांस निबटाइक चीड़ जंगळ ऊपजै देन। थोड़ा सी प्रोत्साहन राशि म ही गांव वळो न चीड़ जंगल पैदा कर देन। “
गोल्डी न ब्वाल , ” औ जन अंग्रेजों न बिहार म पारम्परिक फसल छुड़वैक नील की खेती करवाई। यनि ही इख “
भूतपूर्व प्रधानाध्यापक दौल ददा न ब्वाल , सही ! अंग्रेजों अपर लाभ हेतु गढ़वाल क पारम्परिक वन ही परिवर्तित करवै देन। आज जो भि चीड़ क जंगळ छन सि अंग्रेजों की देन च। “
” अर्थात हमन ही बांज निबटाइन ? ” एकन टिप्पणी दे।
दौल ददा न बोलि , हां जब शासकीय प्रोत्साहन हूंद तो भौगोलिक संस्कृति ही परिवर्तित ह्वे जांद। “
स्वयंबर न पूछ , ” पर दादा जी बट दादा जी ! बाजक जंगळ समाप्ति अर चीड़ क जंगळ आणों हमर गांव क पाणी से क्या संबंध ?”
दौल ददा न व्याख्या कार , ” इन च बांज भूमि तै जकड़ीक वर्षा म जल संचयन व अन्य समय म जल भंडारण व मुक्तिकरण म एक संतुलन रखदन। बांज बुरांस की पत्ती बरखा पाणी तै भूमि पुटुक बैठाण म सहायक हूंदन। किन्तु चीड़ की पत्ती पाणी तैं भूमि म नि टिकण दींद अपितु बगाण म सहायक हूंद। बांज क जंगल ग्राउंड वाटर रिचार्ज म सहायक हूंदन जबकि चीड़ क पेड़ ग्राउंड वाटर रिचार्ज तै भौत बुरी तरह से कम करद। चीड़ अपर आस पास दुसर पौधों , पेड़ , घास नि पनपण दींदो तो जंगळ म ग्राउंड वाटर रिचार्ज वळ वनस्पति नि हूण से सब बरखा जल बौग जांद। अर चीड़ जंगळ आण से द्वी सौ वर्ष म हि हमर गां आज जल विहीन ह्वे गे। “
सब युवा भौत दुखी छा कि एक जलयुक्त क्षेत्र सौ डेढ़ सौ वर्ष म कन जलविहीन क्षेत्र ह्वे गे।
सब उत्तेजित बि छा , सब निरास बि छा। तबी हरी सिंह न ब्वाल , ” ये क्यों न हम युवा बांज प्लांटेशन करें गाँव में ?”
एकन उत्साह म ब्वाल ,” हाँ यांसे हमर जल स्रोत्र वापस रिचार्ज ह्वे जाल। “
एकाक आशंका सही छे , ” पर हम तो प्रवासी छंवां। कनो इन ह्वे सकद। “
गोल्डी क उत्तर छौ , आउट सोर्सिंग। इख तीन चार लोगों तै अच्छी सेलरी पर बांज उगाओ सहकारी समिति म रखे जाय तो ह्वे सकद च। “
अब तिमलतपड़ा गांव का प्रवासियों न एक सहकारी संस्था बणै याल जैमा प्रतिमैना प्रत्येक युवा एक हजार रुपया सहयोग राशि देला। दौल दादा तैं पूरी आशा च प्रोजेक्ट अवश्य ही सफल होलु।