
उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
भौत सि घटनाओं भौत सा पुराणों म अलग अलग कथा मिल्दन। दक्ष व बेटी सती कथा म बि पुराणों म कुछ भेद मिल्दो।
दक्ष प्रजापति ब्रह्मा पुत्र छा अर गंगाद्वार म कनखल म राज्य करदा छा। दक्ष की द्वी कज्याण छे – प्रसूति अर वीरणी। दक्ष की प्रसूति से 24 अर वीरणी से 64 पुत्री छे। समस्त सृष्टि यूं इ पुत्रियों से पैदा ह्वेन -गंदर्भ , यक्ष ,पिशाच आदि। कै ना कै रूप म प्रत्येक पुत्री तैं पूजे जांद।
दक्ष प्रजापति न 27 बेटियों ब्यौ चन्द्रदेश से कार अर चंद्रदेव क लगाव रोहणी ओर झुकाव बिंडी ही छौ। शेष कन्याओं न पिता दक्ष से शिकैत कार। दक्ष न चंद्रदेव बुलैक समजेन। चंद्रदेव न वचन दे कि वो सब पत्नियों दगड़ समतुल्य भाव राखल।
रोहिणी को रूप चंद्रदेव तै इथगा भांडों छौ कि चंवचन बिसरी क द्रदेव रोहणी पर ही ध्यान दींदा छा। कन्या पुनः पिता म ऐन अर वास्तविकता बतायी। दक्ष चंद्रलोक गेन। उख चन्द्रमा अर दक्ष प्रजापति म तनातनी बढ़ गे अर दक्ष न चन्द्रमा तैं कुरूपता को श्राप दे दे।
चन्द्रमा न अपर यु दुःख नारद तैं बताई। नारद न शिव तपस्या को परामर्श दे। चन्द्रमा न शिव तपस्या कार अर शिव तै प्रसन्न कार। शिव प्रसन्न ह्वेन अर चन्द्रमा तैं श्राप मुक्त कर दे। यां से दक्ष की शिवजी से मनोमालिन्य शुतु ह्वे गे।
दूसर कथा अनुसार प्रजापति शिव तैं औघड़ मणदा छा अर अपमानित करदा छ।
प्रजापति की एक पुत्री छे सती। जैक ब्यौ वो कखि ऑवर करण चाणा छा किन्तु सती तो शिव की ही छे।
सती को ब्यौ शिव से ही ह्वे। इन बुले जांद कि सती स्वयंबर म शिव अपमान हेतु द्वार पर दक्ष न शिव मूर्ति लगै दे। सती न बि वरमाला शिव मूर्ति म ही चढ़ाई।
एक दैं प्रजापति प्रयाग म यज्ञ करणा छा। तख जब दक्ष यज्ञ मंडप म ऐन तो सब लोक आदर म खड़ ह्वे गेन किन्तु शिवजी खड़ नि ह्वेन तो दक्ष शिवजी से चिढ गेन।
कुछ समय उपरान्त दक्ष न एक हौर यज्ञ गंगा तात कनखल म रचाई अर जाण बुझी सती अर सती पति शिव जी तैं नि न्युतो। सती न चन्द्रमा अर रोहणी तैं विमान से जांद देख तो पता लगाई कि पिता क बड़ो यज्ञ कनखल म उरायूं च। सती न पति शिव से यज्ञ म जाणो याचना कार। शिव न समझायी कि बिन न्यूतो यज्ञ म जाण ठीक नी। किन्तु सती नि मानी तो झक मारी शिवजी न सती तैं गणों दगड़ यज्ञ म भेज दे।
यज्ञ म जैक सती न शिव तैं न्यूट नि दीण पर पिता दक्ष समिण अपर क्रोध जताई किंतु दश न हौर चिरड़ै दे अर शिव निंदा कार। सती न क्रोध म यज्ञ कुंड म आत्मदाह कर दे। शिव गणों ंउत्पात मचाई तो भृगु ऋषि न दक्षिणाग्नि म आहुति देक ऋभु देवता पैदा करिन जौंन शिव गणों तै भगै दे।
शिवजी तैं जब गणों से ज्ञान ह्वे तो शिव जीन अपर जता से वीरभद्र पैदा कार। वीरभद्र न दक्ष को यज्ञ विध्वंस कार अर शिव विरोधी देवों तै धनद दे । वीरभद्र न दक्ष क मुंड यज्ञ कुंड म जळै दे। तब ब्रह्मा व देवताओं न शिव स्तुति कार। शिवजी न तब दक्ष क मुंड क स्थान पर बखरौ मुंड लगै दे। अर तब दक्ष न यज्ञ पूर कार।