चैत की मोळयार मैनी
फागुणे बयार
डाळी बोटळयू मोळयार सौरी
धरती कु श्रृंगार।
हर्या भर्या बण फुलून
लकदक बण्यांन
पैंया बुरांशा डाळा देखा
कन भला सज्यान।
फ्यूली फूल बीठा पाखो
आंदि-जांदि सनकौंणा
लैंया पैंया घर्या राडू
जन पुगण्यूं गौंणा।
सजिलि धरती सौं-सिंगार
चौदिसू बसंत की बार।
लकदक खतेंणू
धरती मा मोळयार ऐगी
कन भलू दिखेणू।
मठ मंदिरों का घांड घंडवोळा
खमणांदि छन धै लगोणा
धरती माता कु सज देखीतै
ढोल दमौ नौबती बजौणा।
कखि फ्वथ्ळयू चुंच्याट
गुणमुण म्वारी की भौंण
हरी बुग्याळ मा पसर्या
पौन पंछी गाजी धौन
चकुली घेंदुडि गीत लांणी
कफ्फू हिलांश गैल
मायादार माया लगांणा
घणी डाल्यूं का छैल
घर्या राडू पैय्या खिळयां
मेडल्यूं फ्योली फूल
लकदक बणीं सजणां बण
लाल बुरांशी का फूल
बार मैनों कि बसंत जग्वाळ
होली पिचकारी रंग गुलाल
फागुण निमणी चैत अग्याळ
फुल पत्युन डाळयुन श्रृंगार।
रमक झमक धै लगाणू
बार रितु का गीत सुंणाणू
उलार्या मनखि दिशा धियांण
मैत्यूं कु बाटु हयेर्दि रांदु।
–—अश्विनी गौड़ दानकोट अध्यापक राउमावि पालाकुराली रूद्रप्रयाग।
नै लिख्वार नै पौध—-कै भी संस्कृति साहित्य की पछांण ह्वोण खाणै छ्वीं तैंकि नै छ्वाळि से पता चलि सकदि। आज हमारी गढ़भाषा तै ना सिरप सुंण्ढा छिन बलकन नै पीढ़ी गीत गुंणमुंडाणी भी च त लिखणी भी च यन मा गढभाषा का वास्ता यन विकास का ढुंग्गू
——संकलन–@ अश्विनी गौड़ दानकोट रूद्रप्रयाग