उत्तराखंड संबंधित ऐतिहासिक पुरुष पात्रों की कहानियां श्रृंखला
265 से बिंडी गढ़वळि कथा रचंदेर : भीष्म कुकरेती
माधो सिंह भंडारी उत्तराखंड तैं सबसे वीर , कूटनीतिज्ञ व सामजिक कार्य हेतु याद करे जांद . आज भारत म दशरथ मांझी (1960 -1982 ) तैं सड़क हेतु पहाड़ काटणो हेतु भारत सरकार न डाक टिकट प्रकाशित कार किन्तु 400 वर्ष पैल वीर भड़ माधो सिंह न पहाड़ काटि कूल खोदी छे। माधो सिंह भंडारी गढ़वाल म मलेथा की कूल हेतु ही नि जणे जांदन अपितु गढ़वाल को महान सेनापति व कूटनीतिज्ञ क रूप म बि जणे जांदन।
माधो सिंह भंडारी क हमर लोक गाथाओं म स्मरणीय नाम च। भड माधो सिंह भंडारी क जन्म लगभग 1595 म वर्तमान टिहरी जनपद मलेथा (तब गढ़ देस ) म एक वीर भड़ परिवार म ह्वे छौ। मलेथा वर्तमान देवप्रयाग -बद्रीनाथ मार्ग म श्रीनगर निकट पड़द। मलेथा की कूल निर्माण माधो सिंह भंडारी न ही करी छे।
माधो सिंह भंडारी क पिता क नाम कालो भंडारी छौ। इन बुले जांद बल दिल्ली म कुमाऊं राजा ज्ञान चंद , सिरमौर राजा क इच्छा छे कि गढ़वाल पर अधिकार करे जाय। मंत्री राजा मानसिंघ गढ़वाल पर आक्रमण विरोधी छा। सिरमौर राजा व कुमाऊं राजा न अभिमान , ईर्ष्या म अपर वीर भध गढ़वाल भेज दिनीं। राजा मानसिंघ न गढ़वाल भड़ कालो भंडारी से सहायता मांगी छे। कालो भंडारी न यूं उपरोक्त राजाओं क भड़ो तै परास्त कार तो राजा मान सिंह न कालो भंडारी तै ;सौण बाण ‘ अर्थात स्वर्णिम विजेता की उपाधि दे छे। कालो भंडारी क वीरता वा बुद्धिमता देखि परखी गढ़वाल नरेश न कालो भंडारी तै जागीर प्रदान कै छे। अर्थात माधो सिंह भंडारी जागीरदार ही छा जो राजा हेतु कर उगाणो अतिरिक्त क्षेत्रीय सुरक्षा , न्याय व राजा तै समय आण पर सैनिक आवश्यकता पूर्ति बि करदा छा।
माधो सिंह युवाकाल म सेना म भर्ती ह्वे गे छा व राजा महिपत शाह (1631 -1635 )क सेनापति बण गे छा। तिब्बत के राजाओं की नीयत व नीति भी आज के चीनी शासकों की जन ही ह पड़ोसियों दगड़ सम्पूर्ण मित्रता न हो व सम्पूर्ण शत्रुता न हो क छे । तिब्बत से लगातार छापामारी हमला हूंदा छा तो राजा न भड़ माधो सिंह तै तिब्बत भेज। भड़ माधो सिंह न तिब्बत क छापा बंद तो कराई छा दगड़ म मीनार निर्माण कोरी सीमारेखा स्थापित कार। तिब्बत युद्ध विजय व सीमारेखांकन से माधो सिंह भंडारी क नाम प्रसिद्ध ह्वे गे छौ। तिब्बत युद्ध क आस पास माधो सिंह क ब्यौ उदीना से ह्वे।
सेना क कार्य से अवकास समय माधो सिंह मलेथा म कृषि कार्य म बि रूचि लींदा छा। मलेथा अलकनंदा क निकट हूणो उपरान्त बि रूखो व कृषि हेतु वरखा पर निर्भर छौ। भौत दैं समय पर बरखा नि हूण पर भुकमरी क अवसर ऐ जांदा छा। मलेथा क दैं ओर चंद्रभागा नदी छे किन्तु बड़ो पहाड़ हूणो कारण चंद्रभागा क पाणी गाँव हेतु अप्रभावकारी ही छौ। माधो सिंह भंडारी न पहाड़ मध्य सुरंग खुदणो विचार कार जां से चंद्रभागा क जल गांव म लए सक्या। माधो सिंह भंडारी समय पहाड़ काटि सुरंग खुदणो क्वी लिखित तकनीक व उपकरण बि नि छा । ,माधो सिंह भनंदारी न कोटि , सब्बल की सहायता से पांच वर्षों म सुरंग खोद। जब सुरंग से पाणी बगणो समय आयी तो जल नि पौंछ। देवी तै प्रसन्न करणो हेतु माधो सिंह अपर पुत्र भड़ गजे सिंह को गौळ कटण इ वाळ छौ कि देवी प्रसन्न ह्वे अर सुरंग से पाणी चंद्रभागा से मलेथा बौगण मिसे गे।
चंद्रभागा क जल पौंछण से मलेथा एक धनी क्षेत्र ह्वे गे।
माधो सिंह भंडारी तै राजा न ‘छोटा चीनी ‘क्षेत्र म तिब्बत क दुबर सीमा अतिक्रमण रुकणों भेज किन्तु खराब हीन स्वास्थ्य चलदो तौंकि मृत्यु युद्ध भूमि निकट ह्वे। वीर योद्धा तो वीर हूंद। मरण से पैल माधो सिंह अपर सैनिकों तेन आदेश दे गे छा कि मेरी मृत्यु समाचार शत्रु क्या मित्र व सगा संबंधियों तक तब तक नि दिए जाय जब तक युद्ध शांत नि हो जाय। माधो सिंह न राय दे छे कि तब तक मेरो शरीर तेन बुझयां क्वीला अर कड़ो तेल म लपेटी रखे जाय।
सैनकों ऊनि कार अर सेनापति क मृत्यु समाचार कै तै नि दे। बाद म माधो सिंह को शरीर तै हरिद्वार पंहुचाये गे व तख राजकीय सम्मान को साथ मढ़ासिंघ भंडारी को डाह संस्कार ह्वे।
भारत म माधो सिंह को नाम एक उच्च प्रकार का सामाजिक कार्यकर्ता, तकनीक खोजी व वीर भड़ का हेतु विनय पूर्वक लिए जांद। मृत्यु समय 1640 आंके जान्द।