उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
270 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
विश्वामित्र पुत्री शकुंतला अर महाराजा भरत द्वी गढ़वासी छा।
शकुन्तला मुनि विश्वामित्र व अप्सरा मेनका की पुत्री छे किन्तु दुयुंन अपर व्यवसायिक हितों देखि स्वार्थ म शकुंतला तैं नि अपणायी तो कण्व ऋषि न शकुंतला तैं भाभर म अपर आश्रम कण्वाश्रम म बेटी जन पाळ।
शकुंतला चन्द्रमा क कला जन शरीर व मन से बढ़दी गे व एक बिगरैली युवती ह्वे गे छे। आश्रम म व प्रसन्न छे। शकुंतला क द्वी शैली छे।
शकुंतला इथगा बिगरैली छे कि भौत समय पुष्प तक वीं पर मोहित ह्वे जांद छा।
एक समय महर्षि कण्व क्वी शास्त्र म भाग लीणो मिथिला जयां छ। शकुंतला इखुली छे। पुरुवंशी हस्तिनापुर नरेश राजा दुष्यंत बिजनौर की ओर से शिकार खिलदा -खिलदा कण्वाश्रम म आश्रय हेतु रुकिन। महर्षि कण्व क नि हूण से राजा क आदर सत्कार शकुंतला न हि कार। इन म दुयुं म प्रेम ह्वे अर दुयुंन गंधर्व विवाह कार। दुष्यंत न शकुंतला तै अंगूठी भेंट म प्रदान कार।
विवाह उपरान्त राजा दुष्यंत हस्तिनापुर चल गेन। दुष्यंत क जाण से दुःख म शकुंतला आश्रम म एक डाळ तौळ उदास बैठीं छे कि मुनि दुर्वाशा ऐन। शकुंतला न तौं पर ध्यान नि दे। दुर्बासा न क्रोध म श्राप दे कि जैकी याद म तीन मेरी सुध नि ले वो त्वै तैं बिसर जाल , कुछ समय उपरान्त दुर्वाशा न ब्वाल अंगूठी दिखाण पर ही प्रेमी याद कारल।
जब कण्व ऋषि आश्रम बौड़ि ऐन तो वसतस्थिति को ज्ञान ह्वे। शकुंतला गर्भवती छे। समय आण पर शकुंतला क गर्व से एक तेजश्वी पुत्र उतपन्न ह्वे जैक नाम सर्वदमन (भरत ) धरे गे।
कुछ समय उपरान्त ऋषि कण्व न शकुंतला व सर्वदमन तै हस्तिनापुर भेज। बाट म शकुंतला क अंगुली से अंगूठी ताल म गिर गे जो एक मछली न घूळ दे छौ।
शकुंतला दुष्यंत से मील किंतु दुष्यंत सब कुछ बिसर गे। पहचान चिन्ह अंगूठी बि नि छे। शकुंतला लज्जायुक्त ह्वे भरत तै लेकि महल से भैर आयी। तो मेनका बिजली बौणी आयी व शकुंतला व भरत तै कश्यप ऋषि आश्रम म छोड़ गे। भरत की राजकुमार जन ही शिक्षा दीक्षा ह्वे।
एक मछवारा तै एक मछली पेट न वै अंगूठी मील जो दुष्यंत न शकुंतला तै दे। मछुवारा मुद्रिका बिचणो बजार गे किन्तु खरीददार नि मिलेन तो वो सम्राट दूसयंत म गे। सम्राट दुष्यंत तै मुद्रिका देखि शकुंतला याद ऐ अर लज्जा बि आयी। सम्राट दुष्यंत शकुंतला क शोध म गे तो कश्यप आश्रम एक बच्चा शेर दगड़ खिल्दां मील तख ही वै ज्ञान ह्वे कि यो ही वैक पुत्र च। शकुंतला बि तक्खी मील.
सम्राट दुष्यंत शकुंतला व पुत्र भरत लेक हस्तिनापुर आयी अर भरत को ध्यान से ललन पोषण ह्वे।
भरत को सम्राट बणन से भस्तिनापुर क विकाश तीब्रता से ह्वे। भारत को नाम सम्राट भरत से ही पोड़।