नकली वैद्य – २
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड – १ सूत्रस्थानम , 29 th उन्तीसवां अध्याय ( प्राणायतनीय अध्याय ) पद ९ बिटेन १२ तक
अनुवाद भाग – २६३
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
रोगी देखि वैद्य भेष म रोगी घर म घुसी जान्दन। वो जंगल म चिड़ीमार जन चुपके घुसण वळ जाळ म फंसाण वळ हून्दन। यूं तैं शास्त्र भवन , कर्मदर्शन , चिकित्सा, काल ,मात्रा शास्त्र ज्ञान नि हूंद। यी मृत्यु सेवक ह्वेका पृथ्वी पर विचरण करणा रौंदन। इलै यूं तैं छोड़ दीण चयेंद। जीविका कुण बण्या चिकित्स्क तै बुद्धिमान रोगी तै छोड़ दीण चयेंद। यी वायु लिए सांप हूंदन। जु शास्त्र ज्ञानी , कर्म दक्ष , पवित्र , कर्म कुशल , सिद्धहस्त , संयमी प्राण भिसर वैद्यों तै प्रतिदिन नमस्कार। ९ – १३।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ –३९०
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