“राजा”
मूल कहानी:-खलील जिब्रान
अनुवाद:- सुनीता ध्यानी
सादिक एक राज्य छाइ,जखकु एक राजा छाइ। एकदा राज्य का लोगुन उपदर मचै अर राजा महल घेर द्य। राजा भि एक हथ फर मकोट हैंक हथ फर राजदण्ड लेकि भैर ऐ। राजा देखिकि लोग चुप ह्वेगिन,पर वो राजा ब्वन बैठ बल- ” दगड़ियों! मि क्वी राजा नि राइ,तुम मेरि प्रजा नि छवा,मि बस एक आम आदिम अर तुम म्यरा दगड़्या! चलो आज बटि हम सब पुंगड़ा-बगिचों म काम करला,जन तुम बतैला उन मि भि करुलु।”
लोग घड़ैक चुप्प ह्वेगिंन, यो ही राजा छाइ जैथा वो अपड़ि दुर्गति कारण मनद छाया, पर येन त मकोट मि अर राजदण्ड भि ऊँमा ही दे याल!! सब्योंकु उमाळ ठण्डु ह्वे अर सब राजा दगड़ काम करण बैठ गिन खेति- पाति कु|
पर राजै ये फैसलाऽ मि क्वी फरक नि प्वाड़ु राज्यै हालत पर,लोग अजि भि सुखि नि छाया, सब बैचैन अर हालतों का मर्यां, दुखी अर भ्रस्ट लोगुं का सतयाँ।
फिर दुबरा नाराबाजी ह्वैन कि जब राजा छैं च राज करणौ अर विवस्था सँभलणौ तो किलै न वे थै गद्दी म बैठए जौ? राजा कु पुंगड़ों म क्य काम? सबि फिर वे पुंगड़ा म गैन जैमा राजा पसीना म लथपत काम कनूँ छाइ, लोग राजा थै गद्दी तक लिगिन,मकोट पैनै अर ब्वाल-“इंसाफ अर ताकतै दगड़ राज चलाओ, शासन सँभाळो।
राजा न फिर कसम खैन कि वो इनसाफ कारलु अर द्यवतों आशीर्वाद लेकि राज कारलु।
हैंका दिन भिंडि वैख-ब्यठुला ऐन राजा म एक शौकारै सिकैत लेकि बल यो शौकार मजदूरों दगड़ि भौत ही निरदैपना दिखांद।
राजा न वे शौकार थै बुलै,समझै कि हर इनसानै ज्यानै कीमत एक हूंद,ये मजदूर लोग त्यरा अंगूरों बगिचों म काम करदिन वो त्वेखण नीच-हीणा कनमा ह्वे सकदन? इलै तु ये राज्य थै छोड़िकि चलि जा! यो मेरु दण्ड च।
फिर कुछ दिन बाद लोग एक ब्यठुलि सिकैत लेकिन ऐगिन बल वा पहाड़ो कि मुखिया चा पर भौत हारि-कारि कन वलि ब्यठुलि छै,दया-धरम तो छैं ही नीच वींमा।
राजा न वीं थै भि दरबार म बुलै कर वी आदेश करि कि राज्य बटि निकल जा,जब ऊँ लोगुं पर दया नि करणि,ऊँकु हक मरण जौंकु भ्वार र्वटि खाता छौ तो सीधा यख बटि निकळ जाओ।
अब जनता थै हिकमत बँधि गे राजा जनता हक म फैसला लींदु अर सीधा जनता कि सुणदु, ऊँन धर्माधिकारी कि सिकैत मि कैर दे कि वो अपड़ि तिजोरि भ्वनूँ रैंद,लोखुं म ढुंगा फ्वडा़ंद अर दीणै नौं पर एक ढेला नि देंदु।
धर्माधिकारी थै भि देशनिकळु दीण मां राजा न क्वी देर नि लगै। इनि करदा-करदा लगभग सबि घूसखोर,कामचोर,ध्वखाबाज,निरदै ,लोग सब राजा न दण्ड दे कै भैर कैर दिन।
सादिक राज्य का भला दिन ऐ गिन,सब खुस छाया, सबुकि नीयत साफ,सबुकि जिकुड़्य़ो म धीत कर प्रीत छै।
एक दिन भौत से ज्वान-जवान लोग राजमहल पौंछि, राजा फिर मकोट अर राजदण्ड लेकि भैंया आइ, पर लेकिन प्रजा हथजोड़ि खड़ि ह्वे गे बल यो मकोट अर दण्ड राजै आन-बान च। हम त अपड़ा राजै आन-बान-शान म गीत गांण चाणां छँवा।
राजा न साफ ना बोलि दे बल “अब तुम्हीं राजा छवा,जब तुम कमजोर अर दबीण वळा छाई,तब मि भि कमज़ोर राजा मनै जांदु छाई,अब तुम मजबूत ह्वे ग्यो,तुम अपड़ि खैरियत मीमा ब्वल्दो, मि तुमरि इच्छा जणुदु,तुमरु विचार मनुदु,तबि राज भि भलु चलद ….मि तुमरु विचार छौं अर तुमरा करमों म रैंदु बस्स। जो अफ फर शासन करण सीख जांद वो ही अपड़ु राजा हूंद। मि त बस एक चिह्न जौं।”
सबि ज्वान-सयणा लोग इनु सूणी खुस ह्वे गिन,सब इन समझण बैठि गिन जनु ऊँ सबुमा एक हथ मा मकोट अर हैंका हथ मा राजदण्ड हो!
(खलील जिब्रान की मूल कहानी- ‘राजा’)
लोग घड़ैक चुप्प ह्वेगिंन, यो ही राजा छाइ जैथा वो अपड़ि दुर्गति कारण मनद छाया, पर येन त मकोट मि अर राजदण्ड भि ऊँमा ही दे याल!! सब्योंकु उमाळ ठण्डु ह्वे अर सब राजा दगड़ काम करण बैठ गिन खेति- पाति कु|
पर राजै ये फैसलाऽ मि क्वी फरक नि प्वाड़ु राज्यै हालत पर,लोग अजि भि सुखि नि छाया, सब बैचैन अर हालतों का मर्यां, दुखी अर भ्रस्ट लोगुं का सतयाँ।
फिर दुबरा नाराबाजी ह्वैन कि जब राजा छैं च राज करणौ अर विवस्था सँभलणौ तो किलै न वे थै गद्दी म बैठए जौ? राजा कु पुंगड़ों म क्य काम? सबि फिर वे पुंगड़ा म गैन जैमा राजा पसीना म लथपत काम कनूँ छाइ, लोग राजा थै गद्दी तक लिगिन,मकोट पैनै अर ब्वाल-“इंसाफ अर ताकतै दगड़ राज चलाओ, शासन सँभाळो।
राजा न फिर कसम खैन कि वो इनसाफ कारलु अर द्यवतों आशीर्वाद लेकि राज कारलु।
हैंका दिन भिंडि वैख-ब्यठुला ऐन राजा म एक शौकारै सिकैत लेकि बल यो शौकार मजदूरों दगड़ि भौत ही निरदैपना दिखांद।
राजा न वे शौकार थै बुलै,समझै कि हर इनसानै ज्यानै कीमत एक हूंद,ये मजदूर लोग त्यरा अंगूरों बगिचों म काम करदिन वो त्वेखण नीच-हीणा कनमा ह्वे सकदन? इलै तु ये राज्य थै छोड़िकि चलि जा! यो मेरु दण्ड च।
फिर कुछ दिन बाद लोग एक ब्यठुलि सिकैत लेकिन ऐगिन बल वा पहाड़ो कि मुखिया चा पर भौत हारि-कारि कन वलि ब्यठुलि छै,दया-धरम तो छैं ही नीच वींमा।
राजा न वीं थै भि दरबार म बुलै कर वी आदेश करि कि राज्य बटि निकल जा,जब ऊँ लोगुं पर दया नि करणि,ऊँकु हक मरण जौंकु भ्वार र्वटि खाता छौ तो सीधा यख बटि निकळ जाओ।
अब जनता थै हिकमत बँधि गे राजा जनता हक म फैसला लींदु अर सीधा जनता कि सुणदु, ऊँन धर्माधिकारी कि सिकैत मि कैर दे कि वो अपड़ि तिजोरि भ्वनूँ रैंद,लोखुं म ढुंगा फ्वडा़ंद अर दीणै नौं पर एक ढेला नि देंदु।
धर्माधिकारी थै भि देशनिकळु दीण मां राजा न क्वी देर नि लगै। इनि करदा-करदा लगभग सबि घूसखोर,कामचोर,ध्वखाबाज,निरदै ,लोग सब राजा न दण्ड दे कै भैर कैर दिन।
सादिक राज्य का भला दिन ऐ गिन,सब खुस छाया, सबुकि नीयत साफ,सबुकि जिकुड़्य़ो म धीत कर प्रीत छै।
एक दिन भौत से ज्वान-जवान लोग राजमहल पौंछि, राजा फिर मकोट अर राजदण्ड लेकि भैंया आइ, पर लेकिन प्रजा हथजोड़ि खड़ि ह्वे गे बल यो मकोट अर दण्ड राजै आन-बान च। हम त अपड़ा राजै आन-बान-शान म गीत गांण चाणां छँवा।
राजा न साफ ना बोलि दे बल “अब तुम्हीं राजा छवा,जब तुम कमजोर अर दबीण वळा छाई,तब मि भि कमज़ोर राजा मनै जांदु छाई,अब तुम मजबूत ह्वे ग्यो,तुम अपड़ि खैरियत मीमा ब्वल्दो, मि तुमरि इच्छा जणुदु,तुमरु विचार मनुदु,तबि राज भि भलु चलद ….मि तुमरु विचार छौं अर तुमरा करमों म रैंदु बस्स। जो अफ फर शासन करण सीख जांद वो ही अपड़ु राजा हूंद। मि त बस एक चिह्न जौं।”
सबि ज्वान-सयणा लोग इनु सूणी खुस ह्वे गिन,सब इन समझण बैठि गिन जनु ऊँ सबुमा एक हथ मा मकोट अर हैंका हथ मा राजदण्ड हो!
(खलील जिब्रान की मूल कहानी- ‘राजा’)