
उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
पर्वतराज हिमाला पुत्री श्रीपार्वती शिवश्री तैं पति रूप म प्राप्ति कुण तपस्या म लीन छे। तपस्यांत म ब्रह्माश्री न श्रीपार्वती तै आश्वासन दे कि शिव अवश्य प्राप्त होलु .
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
पर्वतराज हिमाला पुत्री श्रीपार्वती शिवश्री तैं पति रूप म प्राप्ति कुण तपस्या म लीन छे। तपस्यांत म ब्रह्माश्री न श्रीपार्वती तै आश्वासन दे कि शिव अवश्य प्राप्त होलु .
एक दिन श्रीपार्वती शिव चिंतन म ध्यानमग्न छे कि तैं तै एक बच्चा क क्रंदन सुणै दे। श्रीपार्वती नदी जिना गे तो पायी कि एक मगरमच्छ निगळण वाळ छौ। जनि मगरमच्छ बच्चा तै खैंचदो छौ बच्चा क क्रंदन बढ़ जांद छौ। बड़ी हृदयविदारक घटना छे। श्रीपार्वती न ग्राह से प्रार्थना कार कि बच्चा तैं छोड़ दे। मगरमच्छ न ब्वाल , ” विधाता न मेरो भोजन कुण नियम बणयुं च कि छठां दिन जो भी आओ तै तै खै ले। आज छठो दिन यु बालक मील। मि मिल्युं भोजन नि छोड़ सकुद “
श्रीउमा न ब्वाल , : मि त्वे अपर सब पुण्य दींदो तू ये बच्चा तैं छोड़ दे। “
ये सूणी मगरमच्छ शांत ह्वे अर तब ब्वाल , ” ठीक च यदि तुम अपर सब तपस्या मैं दींदा तो मि अपर भोजन छोड़ द्योलू। “
करुणामयी मां न संकल्प ले अर अपर सब तपस्या मगरमच्छ तैं दे दे। जनि दे तनि मगरमच्छ सूर्य जन चमकण मिसे गे। मगरमच्छ न ब्वाल , देवी तुमर बुलण से मि बच्चा छोड़ दींदो। तुम अपर तपस्या वापस ले ल्यावो। “
श्रीउमा न तपस्या वापस लीणो ना बोल दे।
श्रीपार्वती बच्चा लेकि आश्रम ऐ अर बच्चा क देखभाल करण म व्यस्त ह्वे गे। इथगा म शिवजी प्रकट ह्वेन अर बुलण लग गेन , ” देवी अब तपस्या की क्वी आवश्यकता नी। कारण तेरी तपस्या तो मैं नदी म ही मिल गे छे. मि स्वयं मगरमच्छ रूप म छौ ।