गुलाबौ सुंदरता को रहस्य ( सिखंदेर ननि नाटिका )
(लोक कथा आधारित )
(ननि -ननि नाटिका श्रृंखला, Short Skits )
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नौटंकी – भीष्म कुकरेती
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पात्र –
गुलाब
गिरगिट
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स्थल – एक बग्वान
गुलाब – ब्वा ! ” मि भौत बिगरैल छौं।” प्रत्येक मकुण प्रतिदिन इनि बुल्दो। अर मी बि इनि सुचद। वैदिन म्वारणिन बोलि बल – म्यार रंग अत्त्याकर्षक च। अर दुसर दिन तितलीन बोल बल मि बगवान म सबसे बिगरैल फूल छौं। पर पता नि किलै लोक मै तैं केवल दिखदन म्यार न्याड़ ध्वार ऐक म्येरि प्यारी सुंगंध नि सुंगदन ! बुरी बात।
(गुलाब दिखद कि गिरगिट च बगल म )
गुलाब – तुम कु छा ? मीन पैलि दैं देखि तुम तैं ? अब तलक कख लुक्यां छा ?
गिरगिट – मि कखि नि लुकुद बल्कण म मि स्थान अनुसार अपण रंग परिवर्तित कौर दींदो। इलै मेपर तुमर दृष्टि नि पोड़।
गुलाब -अर्थात तुम नित्य यखी पुण छया ?
गिरगिट – हां।
गुलाब –पर तुम भद्दा छा। अरुचिकर !
गिरगिट – मीन अपर अन्वार पाणी म नि देखि त मैं नी पता मि बिगरैल छौं या भद्दा। जु मि भद्दो छौं तो क्षमा।
गुलाब – मे से दूर रौ। अब पता चल मैं त्यार डौरन लोक म्यार न्याड़ ध्वार नि आंदन।
गिरगिट -त्वे नखुर लग त मि जांद छौ। मि त तेरी रक्छा बान इख आयुं छौ ।
गुलाब – मेरी रक्छा अर तू ? जा दूर चल जा।
गिरगिट – म्यार जाण से पैल यि त जाण जा मि इखम किलै छौं।
गुलाब – मि तैं आवश्यकता नी। त्वै देखि डौर लगद। जा जा।
(गिरगिट चल जांद )
अंक – २
स्थल वी बग्वान। गुलाब क घर. गिरगिट आंद
गिरगिट – हे सबसे बिगरैल गुलाब ! क्या हाल छन ?
गुलाब – हे राम ! अब कख रै गे मेरी रंगत , मेरी वा सुंदरता ? वा कांति ! तू गे अर तनी मेरी कुगति ह्वे गे।
गिरगिट – अरे हाँ। कनो ? क्या ह्वाइ ?
गुलाब – हूण क्या छौ। त्यार जाणो उपरांत सब कुछ चौपट ह्वे गे।
गिरगिट – ह्यां बता त सै ह्वै क्या च ?
गुलाब – जनि तू गे तनि किरम्वळुं , कीड़ुं डार की डार आयी अर मेरी टहनी , तना, पत्ता अर फूल, पंखुड़ी चबाइ चल गेन, इख तलक कि म्यार कांड बि बुकैक चल गेन अर मि भद्दो ठूंठ का ठूंठ रै ग्यों। मेरी दयनीय स्थिति ह्वे गे।
गिरगिट – मीन बोलि छौ ना कि मि तेरी रक्छा कुण छौ।
गुलाब – हाँ पर तू कन मेरी रक्छा करदी ?
गिरगिट – जनि सि किरम्वळ , कीड़ त्यार तना , टहनी , फूलों म आंदन तनि मि तौं तैं चबट कर जान्दो। इलै इन म तू सबसे बिगरैल फूल रै जांदी। समज गे अब ?
गुलाब – क्षमा ! हालांकि अबेर ह्वे गे। मैं छिमा कर दे। अब मीन ठूंठ का ठूंठ।
गिरगिट – नै नै ! कुछ दिन उपरान्त तीन मौळ जाण अर पुनः तेपर बिगरैल , आकर्षक फूल, पंखुड़ी आई जैला। बस जग्वाळ कौर।
गुलाब – हाँ हां . तू अब कखि नि जा। म्यार दगड़ इ रौ बस।
(गिरगिट गुलाब पर अंग्वाळ बोटि लींद )