अगस्त्य संहिता अर्थात डेनियल सेल क उत्पादन
(भारतौ प्राचीन वैज्ञानिक – २६ )
संकलन – भीष्म कुकरेती
राव साहब कृष्णाजी वझे, १८९१ म पूना बिटेन इंजीनियरिंग परीक्षा पास। कार। भारत म ग्रंथों अन्वेषण करदा करदा वझे तैं उज्जैन म त्र्यंबक जोशी क पास ‘अगस्त्य संहिता’ ग्रंथ क कुछ अंश मिलेन। ग्रंथ शक १५५० क च। भौत वर्ष उपरान्त नागपुर वि वि म कॉलेज क प्राध्यापक डा एम् सी सहस्त्रबुद्धे न ग्रंथ पौढ़ी अर ऊं तै आभास ह्वे कि वर्णन कुछ कुछ डेनियल सेल जन हि च। डा सहस्त्रबुद्धे न इंजीनियरिंग प्राध्यापक पी पी हाले तैं ग्रंथ अनुसार प्रयोग करणो बोलि –
सूत्र इन च –
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे
ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।
छादयेच्छिखिग्रीवेन
चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
अगस्त संहिता
अर्थात –
एक माटक भांड म ताम्बा पट्टी , अर शिखी ग्रीवा डाळो , पुनः मध्य म गिल्लू काष्ठ पांसु /बुरादा लगावो , मथि पारा धारो व दास्त लोष्ट डालो , जब तार मील यो मित्रा वरुण शक्ति क उदय होलु।
प्राध्यापक श्रीन सब समान मंगाई केवल शिखी ग्रीवा समज म नि आयी। शब्दकोश दिखण पर शिखीग्रीवा क अर्थ मोर क गौळ मिल। अब मोर क गौळ की याचना भाव से प्रो हाले चिड़ियाघर गेन। चिड़ियाघर क प्रबंधक न प्रार्थना पत्र दीणो बोल।
इथगा म प्रोफेसर हाले तैं एक आयुर्वेदाचार्य मिलेन तब पता चल बल शिखा ग्रीवा क अर्थ गौळ ना मोर गौळ जन रंग रसायन अर्थात कॉपर सल्फेट।
अब अगस्त्य संहिता ग्रंथ अनुसार परीक्षण करे गे तो मल्टीमीटर से ओपन करेंट वोल्टेज १. ३८ वाल्ट मील व शार्ट सर्किट करेंट २३ मिली एम्पियर छौ।
सन १९९० म नागपुर म स्वदेशी विज्ञान संसोधन क चौथ सम्मेलन म ये सेल उत्पादन प्रयोग करे गे।
अगस्त्य संहिता म अन्य भौत सा वैज्ञानिक प्रयोगों बारा म उल्लेख च जनकि –
अनने जलभंगोस्ति प्राणो
दानेषु वायुषु।
एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥
वायुबन्धकवस्त्रेण
निबद्धो यानमस्तके
उदान : स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्।
अर्थात
सौ कुम्भों शक्ति जु जल पर प्रयोग ह्वावो त जल अपण रूप परिवर्तित करि प्राण वायु (ऑक्सीजन ) व उड़ान वायु म बदल जालो। उड़ान वायु तैं वायु प्रतिरोधक थैला म बंद करे जाव त सया वायु विमान म उपयोग करे जै सक्यांद।
अगस्त्य संहिता म इलेक्ट्रोप्लेटिंग क उल्लेख बि च।
सुरेश जी सैनी क लेख बिटेन साभार (भारत वैज्ञानिकबलोग स्पॉट )