
(मनोवैज्ञानिक कथा )
290 से बिंडी गढ़वळी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
सतयुग की छ्वीं छन। राम जी रावण वध उपरान्त अयोध्या म आनंद से राज करणा छा।
इक्ष्वाकु सम्राट दशरथ पुत्र रामचंद्र अपर शयन कक्ष म दुफरा विश्राम हेतु ऐन। आणो कुछ समय उपरान्त इ रामजी विचलित शुरू हूण लग गेन । कक्ष म इना उना घुमण बिसेन। कबि घूमन अर कबि खड़ ह्वे जावन पुनः घुमण लग जावन। महारानी सीता न कुछ समय तो जग्वाळ कार किन्तु हब अति चितायी तो पूछ , ” महाराज ! चिंता क विषय त नी च ?”
” ना इन तो नी। ” रामजी क उत्तर च।
कुछ समय ठीक राई किन्तु पुनः रामजी बिंडी विचलित दिखेण लग गेन। सीता न पूछ , ” वैद्यराज बुलाण ?”
कुछ समय उपरान्त वैद्यराज जी ऐन। नाड़ी शोध कार अर इखुलि रामजी से वार्तालाप कार। तब वैद्यराज जीन परामर्श दे कि योगाचार्य वशिष्ठ तैं बुलाओ अर ऊंको परामर्श ल्यावो।
वशिष्ठ पत्नी योगिनी न बताई कि तब योगाचार्य कखि भैर जयां छा अर तौन भोळ आण छौ।
दुसर दिन योगाचार्य वशिष्ठ ऐन अर तौन इखुलि रामजी से वार्ता कार।
योगाचार्य – पुत्र ! क्या दुःख च कि विचलित हूणा छा ?
रामजी – गुरुवर ! जनि मि समळदु कि मीन विद्वान् ब्राह्मण , वीर रावण वध कार मि विचलित हूण लग जांद।
योगाचार्य – कब कब तुम रावण वध समळदा ?
रामजी – जब मि अपर वन गमन , वीरता समळदो तो रावण वध स्मरण ह्वे जांद तो रावण वध को अपराध वोध मि तैं विचलित करण मिसे जांद ।
योगाचार्य – किन्तु तुम योद्धा छा , युद्ध करण तुमर कर्तव्य च तो अपराध वोध किलै ? रावण राजा छौ अर तुम राजकुमार तो युद्ध हूंद इ च तो अपराध वोध ?
रामजी – एक विद्वान् अर ब्राह्मण वध को अपराध वोध मि तैं इन कचोटदो जन बुल्यां जिकुड़ी पर स्वीण (सुई ) पुड़णो हो। जनि समळदु कि दस वेदों , कई पुराणों क ज्ञानी क मीन वध कार तो मि अपराध वोध से भर जांदु। कै वीर को वध हो तो संसार को क्वी हानी नि हूंदी किन्तु जब कै विद्वान् को वध हो तो वैक बुद्धि भितर ज्ञान समाप्त ह्वे जांद अर संसार वो विद्या से वंचित ह्वे जांद जो वै विद्वान् क बुद्धि अंदर हूंद। यीं जग हानी सोचिक मि विचलित ह्वे जांद। विद्या नाश ही तो महानाश हूंद।
योगाचार्य – हां . तो इखम अपराध वोध की बात क्या च ? तुमन ज्ञानी बाली क वध बि कार।
रामजी – हां किन्तु बाली उथगा विद्वान् नि छौ जन महा विद्वान् रांवण छौ। अर दुसर बात या च कि रावण ब्राह्मण बि छौ। ब्राह्मण अर विद्वान वध को अपराध अचानक मन म आंद तो मि अपराध वोध से ग्रसित ह्वे जांदू। भौत दैं तो मि भोजन करणु रौंद कि अचानक विद्वान्रा ब्राह्मण वण की याद ऐ जांद अर मि विचलित ह्वे जान्दो।
योगाचार्य – हां हूंद क्या च। एक संसार म वो हूणु रौंद जैक हम साक्षी हूंदा। एक अवचेतन मन हूंद जख प्रति क्षण वो चित्र निरंतर घुमणु रौंद जो हमन दिख्यां छन , अनुभव कर्युं च या जो हम सुचद छा। यदि अवचेतन मन वर्तमान क घटना म हस्तसक्षेप कर द्यावो तो अवचेतन क क्षण चेतन मन म ऐ जांदन। इनि जनकि तुम भोजन करणा हों तो अवचेतन मन म जो घटना चित्र चलणोसैकड़ों मनिख रौंद वो चित्र भोजन क्रिया म हस्तक्षेप करण लग जांद। इनि तुमर दगड़ बि हूंद।
रामजी – हूं। तो अपराध वोध से छुटकारा क्या समाधान होलु ?
योगाचार्य वशिष्ठ – पुत्र ! बस एक द्वी बैठक हौर आवश्यक च।
यीं बैठक क उपरांत योगाचार्य वशिष्ठ घर गेन अर यीं घटना की बात अपर पत्नी योगनी दगड़ छ्वीं लगिन।
योगिनी – रामजी कै रोग से ग्रसित छन ?
योगाचार्य – विद्वान् ब्राह्मण वध को अपराध वोध को रोग से ग्रसित छन।
योगिनी – अर्थात रेचन या शुद्धकरण पद्धति से ही रामजी अपराध वोध मुक्त ह्वे सकदन।
वशिष्ठ – हां रावण वध की ग्रंथि तौंक मन से निकळण म ही समाधान च।
योगिनी – तो तुमन क्या कार्य रामजी तैं सुझाण ?
वशिष्ट – कुछ दिन निकटस्थ वन म जैक तपस्या को मार्ग सुझौल।
योगिनी – यु कार्य इथगा सरल नी च। एक वीर , बलिष्ठ राजपूत जैन सैकड़ों वीर अर पशुओं को वध कार हो यदि वो वीर रांवण वध से ग्रसित च तो कुछ भिन्न तपस्या हूण चयेंद।
वशिष्ठ – सत्य। तेरो परामर्श क्या च ?
योगिनी – रामजी तैं तपस्या करणों हिमालय भ्याजो कि ऊं तैं लगण चयेंद कि बड़ो पाप या अपराध हेतु कठिन भूमि म तपस्या हूणी च।
वशिष्ठ – हिमालय म भल स्थल को होलु ?
योगिनी – हिमालय म मंदाकिनी तट चंद्रशिला म तपस्या क सुझाव द्यावो। यु स्थल जाण कठिन मार्ग च अर तख तपस्या करण बि प्रत्येक को बस की बात बि नी च। दुसर यु क्षेत्र भगवन शिव भूमि नाम से आदिकाल से ही प्रसिद्ध च।
दुसर दिन , तिसर अर चौथ दिन योगाचार्य वशिष्ठ रामजी क बात सुणना रैन कि रामजी क जिकुड़ी म सेळ पोड़ जाओ।
पंचौं दिन योगाचार्य वशिष्ठ न ब्वाल , ” राम ! तुम तैं ब्राह्मण वध को अपराध वोध मुक्ति या पाप मुक्ति हेतु हिमाला म मंदाकिनी तट क्षेत्र म चंद्रशिला म घोर तपस्या करण पोड़ल अर लाखों बार तीन मंत्र बुलण पोड़ल। “
रामजी तुरंत उद्यत ह्वे गेन। लक्ष्मण न मंदाकिनी अलकनंदा संगम तक पुष्पक विमान को प्रबंध कार। यां से अगनै रामजी स्वयं चंद्रशिला पौंछिन।
चंद्रशिला तक पौंछि रामजीन स्थानीय लगों क सहायता से कुछ वस्तु निड़ैन अर इखुलि तपस्या म लीन ह्वे गेन।
कुछ समय तौन एक लाख बार स्वाच कि रावण वध की ग्रंथि मन म एक थैली म च अर वा थैली फट गे अर थैली कसौब तरल द्रव शरीर का भिन्न भिन्न अंग व छिद्रों से भैर हूणु च। एक लाख बार सुचणों उपरान्त राम न दुसर क्रिया शुरू कार।
एक लाख बार रामजीन ब्वाल , ” रावण वध मेरो कर्तव्य छौ तो रावण वध क्वी पाप नी च। “
यांक उपरान्त राम जीन रट , ” हे महेश्वर में तैं पाप मुक्त कारो , पाप मुक्त कारो। “
रामजी तपस्या म इन लीन ह्वेन कि ऊं तै पता बि नि चौल कि तौंक चारों ओर घनघोर वृक्षों क जंगल उपजी गे।
तीन ही शुद्धिकरण का योगिक रेचन क्रिया उपरान्त रामजीक एक दिन मन म शंकर जी दिखेन अर शंकर जी बुलणा छा, ” वत्स तुम्हारी तपस्या पूरी ह्वे गे अर अब तुम ब्राह्मण वध को पाप से मुक्त छंवां। एक शस्त्र बार दोहराओ कि “मि पाप मुक्त ह्वे ग्यों “”
रामजीन शस्त्र बार दोहराई , मि पाप मुक्त ह्वे ग्यों “
रामजीक आँख खुल गेन अर अब वो मन से खाली खाली छा। शरीर बि हळको हळको छौ लगणू।
अयोध्या आणों उपरान्त तौं तैं रावण याद आंदो छौ किन्तु कभी भी ब्राह्मण वोध वध अपराध वोध अनुभव नि ह्वे।