बालिका लक्ष्मी पालाकुराली बटि देखा कन भौ दगड़ि कलम चलौणी च-
लक्ष्मी लगभग पाॅच साल बिटि जब दसवीं मा पढ़दी छे, तब बिटि लिखणीं च अर आज कन लिखणीं च यु मोळ-भौ आप ही करा।
सादर- एक रचना बालिका लक्ष्मी की—-
——— ‘रैबार’——-
रैबार दीन्यूं च, मेरु पहाड कु
त्वेतै गौं-गुठ्यार कु,
तै ‘नौ-खंब्या’ तिबार कु।
सैंकी समाळी कूड़ी
बांजा पडी च,
करी-कमांई पुग्ण्यूं,
हिसूंळ किंगरी जामी च।।
रौत्याळि तिबार,
जैका नी र्या द्वार-संगाड़,
जंग लगी ताळा
भ्वीं पड्यां,
छज्जे पठ्ठाळ
दड़क सब झड्यां।।
ढय्परा मूसौ आवत-जावत
सगत कुटुम्बदरि बसांई,
नौं-नाज कूटी-छांणी
जै उर्ख्याळि,
तख मेंढ़कों
ब्वे ब्यांईं।।
सैरी कूड़ी
मकड़जाळा लग्या,
छपाड़ा-ग्यगड़ा
मौज कना।
द्येबतौं भितर माटू खण्यूं,
कौरा पेथर मकान ढळक्यूं।।
यौक वबरा
ब्यांयां कुकूरा बच्चा
हिटण सीखणा,
अर मकान मालिक
सैर कुकूर जग्वळन्ना।।
लक्ष्मी राणा पालाकुराली बिटि—