भीष्म कुकरेती : आप कविता क्षेत्र मा किलै आइन ?
उत्तर – पैलाग गुरूजी, बोलण गलत नि होलु कि मि कविता मा नि आयी बल्कि कविता मितैं अफूँ मा ल्याई, दरअसल बात या छ कि मेरा पितजी एक आशु कवि छया, हर कखिमु सु कुछ न कुछ कोट, तुक अर दर्शन रूपी छिटगा शब्द गठयांद छ्या, त सु छत्रछाया मि फर बि पड़ी, भले पिताजिन सु छिटगा कब्बी लिपि बद्ध नि करि अर सु कविता वूं दगड़ चलिगे, हाँ जातिग मेरा याददास्त मा छन तौकु प्रभाव मेरी कविता मा जरूर छ।
भीष्म कुकरेती- काव्य जीवन परिचय , जन्म , स्थान समय आदि शिक्षा , प्रकाशन
उत्तर – गुरूजी मेरु जन्म मटई ग्वाड़ गाँव, वैरासकुंड चमोली मा ह्वे, मिन मात्र बारा तक स्कूल पढ़ी अर अब्बी मि वर्तमान मा 14 गढ़वाल राइफल्स मा बतौर सैनिक सुबेदार पद पर सेवारत छौ।
काव्य जीवन परिचय जादा त कुछ नि फर जनि मेरी जिजीविषा अर जीवन बॉर्डर फर रई वे हिसाब सि कुछ छ बि छन।
मेरी अब्बी तलक एक गढ़वली काव्य संगरे, अर एक हिंदी काव्य एकल संगरे प्रकाशित छन, याँ का अलौ हिंदी साझा संगरे मा छः काव्य संग्रह, एक कहानी संग्रह, अर गढ़वली मा भिज्यां साझा संगरे ह्वेगी। अर अज्यूँ द्वी गढ़वली कानी संगरे, एक उपन्यास, हिंदी मा एक कानी संगरे, एक संस्मरण प्रकाशाधीन छन। अर ‘आस्था से ईलाज‘ एक शोध पोथी बाटपन लगीं छ।
भीष्म कुकरेती: आपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ?
उत्तर – गुरूजी मेरी कविता फर गढ़वळी अर हिंदी का सब्बि कवियों को प्रभाव छ जौ तैं मि पढ़ी साकु, विशेष अपणा पिताजी श्री कलम सिंह राणा अर नरेंद्र सिंह नेगी जी तैं मि अपणी कवितों कुजलमदाता मणदू, अर वर्तमान कव्यूँ मा दीदी बीना बेंजवाल जी , श्री गिरीश सुन्द्रियाल जी, पयास पोखड़ा जी, जगदम्बा चमोला जी, श्री मुरली दीवान जी, आदि सब्बि मेरा आदर्श छन यांका अलो हिंदी मा रामधारी दिनकर, जयशंकर प्रसाद, महादेवी बर्मा, सुमित्त्रानंदन पंत अर सब्बि छायावादी कवि अर नवयुग का बुद्धिनाथ मिश्र, केदार नाथ अग्रवाल, सुधीर चौधरी इंदु जी आदि मेरा श्रद्धेय छन।
भीष्म कुकरेती : आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास, आदि को कथगा महत्व च ?
उत्तर – गुरूजी जखतक लेखन मा भौतिक वातावरण अर अभाव की बात छ त यु द्वी बरोबर छ, पैली डैरी मा पेन पेन्सिलल लिखदू छौ अर 2010 बटे कमप्युटर मा लिखदू, अब मुबेल बि एक बढ़िया साधन ह्वेगी, अर पूरा भारत वर्ष मा 2012 बटे इंडिक टूल का माध्यम से हिंदी मा लेखन कु स्टार प्रचारक बि रयूँ हिंदी रचनाकार संगठन माध्यम से। ज़ख तक इकुलांस की बात छ त सार्थक लेखन का वास्ता इकुलांस भौत जरुरी छ, अर मेरा सैनिक इकुलांस जीवनल यामा भौत बड़ी भूमिका निभै।
भीष्म कुकरेती: आप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा ? कन टाइप का कागज़ आप तैं सूट करदन मतबल कनु कागज आप तैं कविता लिखण मा माफिक आन्दन?
उत्तर – ये सवालौ जबाब मथि वलु ही होलु म्येल्यौ ।
भीष्म कुकरेती: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?
उत्तर -बिल्कुल गुरूजी पैली डैरी रौंदी छै, अब मुबेल नोट पेड छन। मेरु मानण छ कि यीं संगसारे हर रचना कविता छ, बस हमारो नजरिया छन कि हम कन देखदन, अर एक कवि कु नजरिया अर कल्पना असीमित होंदी वे तैं अपणी कविता क़ी काव्य वस्तु कखिमु बि मिल जांद।
भीष्म कुकरेती: माना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जवान अर वै बगत आप उन विचारूं तैं लेखी नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी ? अर फिर क्या करदा ?
उत्तर -हाँ कबारी ना बल्कि आम यनु होंद, कभी भौत बढ़िया कन्टेन मिलणा बाद भी गुम ह्वे जांद, अगर मानस पटल फर फेर याद एगी त सु एक बहुत बढ़िया कविता बण जांद।
भीष्म कुकरेती: आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवीजन करदां ?
उत्तर – अगिणत गुरूजी। बिगैर रिवीज़नल त भली कविता क्या एक साधारण लेख भी साधारण नि ह्वे सकदु, अर कविता मा त भौत चीज छन कै कंटेंट तैं प्रासंगिक कविता बणाणु, अर छंद विधान मा ल्योखण त वा होर भी जटिल अर मुश्किल काम छ, मात्र एक तुकबंदी कविता नि होंदी, बल्कि छंदबद्ध अर छंद मुक्त द्वी तरिकों कु अपणु विधान छ।
भीष्म कुकरेती: क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाच? नई छिंवाळ तैं गढवाळी कविता गढ़णो को प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या हूण चएंद /
उत्तर – जी गुरूजी महत्वपूर्ण सवाल करि आपन, अर यु कारिज़ हमुल करोनाकाल लॉक डोन मा धाद मातृभाषा तत्वाधान मा करि, जै परिणाम स्वरूप भौत नै छवाली कवि आज प्रशिद्ध अर प्रतिष्ठित ह्वेग्यां। बिल्कुल यनु होंण चयेंद, देश सेवा मुक्ति बाद अपणी भाषा खातर एक नयां अभियान क़ी सुरुवात कनु विचार छ जैका बारा मा खुलासा सुरु कना बाद खुद व खुद ह्वे जैलो।
सवाल – आपन कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण ल़े च ?
उत्तर – औपचारिक प्रशिक्षण त ना गुरूजी। मिन बोली नि शब्द गंठयांण पिताजी दगड़ सीखी अर लेखन सुरु कना बाद विधिवत स्वाध्याय से कविता तत्व तैं समझी बींगी अर गुणी।
भीष्म कुकरेती: हिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च . क्वी उदहारण ?
उत्तर – गुरूजी समालोचना अर आलोचना देश समाज मा घटित सब्बि चीजों मा भौत जरुरी होंदन, यूँ द्वी कारकों का बिगैर क्वी सकारात्मक परिणाम अपेक्षित नि होंद, पर एक बात छ कि बामपंथी आलोचनात्मक चलन अर परसेप्सन बिल्कुल ठिक नि, कि आप आलोचना कोरा, गल्ती बातावा फर सुधारा वास्ता आप मु क्वी विकल्प नि। जीवन मा सब गलत होणु इनी सोच कख तक ठीक होंद यनु चलन समाज मा विद्रोह कु कारक होन्दू । पर हाँ। हाँ-हाँ कोरी मुख मुल्याज्या काम बि कतै सई नि जन कि आज सोशियल मिडिया मा भसड़ रचनों पर वाह वाही करि पूठा पराळ द्योणा यीं ताळी रिवाजन साहित्य अर भाषा मूल को ह्रास होणु।
भीष्म कुकरेती: आप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सुखो बि आई होलो त वै रचनात्मक सुखा तैं ख़तम करणों आपन क्या कौर ?
उत्तर – गुरूजी उन त आपो यु सवाल मितैं अटपटो लगणु, मतलब रचनात्मक सुख अर वे तैं ख़तम कन ?? सुख तैं कौ ख़तम कन चालो, जीवन मा संघर्ष कष्ट खैरी कु अभिप्राय ही सुख होंद। त ये सवालो उत्तर मिमा नि, हाँ रचनात्मक सुख का वास्ता संघर्ष आजीवन रैलो। अज्यूँ त मात्र रचनात्मक आत्मिक सुख चिताणू, असली सुख वे तैं माणदू जब मेरा शब्द कैका जीवन मा काम आवो।
भीष्म कुकरेती: कविता घड़याण मा, गंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद ?
उत्तर -भौत, ये कु संक्षिप्त उत्तर मथि दियूँ कि एक प्रासंगिक रचना वास्ता इकुलांस जरुरी च, भिभड़ाट मा कभी भी सकारात्मक लेखन होण मुश्किल काम छ।
भीष्म कुकरेती: इकुलास मा जाण या इकुलासी मनोगति से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन पर क्या फ़रक पोडद ? इकुलासी मनोगति से आपक काम (कार्यालय ) पर कथगा फ़रक पोडद
उत्तर – भौत फरक पोड़द, अब घौर मु क्वी जरुरी काम छ अर तुम लग्यां कविता गंठयाण पर, त स्वेणल गाळी त दीणी छ। दगड़ मा समाज का दुख सुख मा शामिल होण बि जरुरी होंद पर कब्बी लेखन का चक्कर मा सु काम भी मिस ह्वे जांद।
भीष्म कुकरेती: कबि इन हूंद आप एक कविता क बान क्वी पंगती लिख्दां पं फिर वो पंगती वीं कविता मा प्रयोग नि करदा त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ?
उत्तर – जी अक्सर यनु होंद, कब्बी सु पंक्ति उनि छूटी जांदी अर कब्बी हैकि कविता मा शामिल ह्वे जांद।
भीष्म कुकरेती: जब कबि आप सीण इ वाळ हवेल्या या सियाँ रैल्या अर चट चटाक से क्वी कविता लैन/विषय आदि मन मा ऐ जाओ त क्या करदवां ?
उत्तर – गुरूजी मि त तबारी उठी वे विचार की रुपरेखा रख देंदो भले हैका दिन या कभी बि सु लेन पूरा ह्वावो या इनी छूटी जावो, अर नोट पेड मा इना हजार विषय अब्बी अपणी जगवाल मा छन।
भीष्म कुकरेती: आप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
उत्तर – मि श्री अरविन्द पुरोहित अर श्रीमती बीना बेंजवाळ रचित शब्द कोस सदानी दगड़ मा रखदू, पर उन इतिगा जरोरत नि पोड़दी किलै कि अपणी मातृभाषा फर विस्वास छ कि जै भाषा मा पळयां बड़ियां तैका शब्द कोस हिया मा विराजमान छ, मातृभाषा माँ कि भाषा होंदी अर माँ नाकब्बी गलत शब्द उच्चारण करदी अर ना ही गलत व्याकरण। इलै अपणी ठेठ इलाकई भाषा मा ल्योखा अर जरोरत समझदन त गढ़वली मानकीकरण मा कुछ शब्दों तैं सर्वज्ञ बणे सकदन। सैद नै पीड़ी इनी झीझ कनि कि मेरी बधाणी, राठी उगैरा तैं कौ समझलु ।
भीष्म कुकरेती – हिंदी आलोचना तैं क्या बराबर बांचणा रौंदवां ?
उत्तर -ड्यूटी का चलदा इतिगा संभौ नि ह्वे सकद पर जब समय मिलदो पढ़दू।
भीष्म कुकरेती: गढवाळी समालोचना से बि आपक कवित्व पर फ़रक पोडद ?
उत्तर – बिल्कुल गुरूजी, आलोचना समलोचना से अगर क्वी सुधार नि करदू त वा भसड़ ही रचालो। जनुकी अजक्याल दिखेणु, हाँ सु भसड़ वे लिखवार तैं आत्मसंतुष्टि दे सकद पर साहित्य समाज तैं भ्रम का अलो कुछ नि दे सकदो।
भीष्म कुकरेती : भारत मा गैर हिंदी भाषाओं वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां ? या, आप यां से बेफिक्र रौंदवां।
उत्तर – गैर हिंदी काव्य की स्थिति सारा भारत मा एकनसी छ, हिंदी अंग्रेजी का प्रभाव से लोक साहित्य सोजी सोजी क्षीण होणु छ, एक ख़ुशी या छ कि हमरी हिंदी कु दायरा बढ़णु पर दुख या छ कि कातिगा लोक भाषा यीं जद मा ऐ मोना धौरा फर छन या मोरीगे, मोना धौरा हमरी गढ़वली भी छ अगर समै रै ईलाज नि करि त।
भीष्म कुकरेती : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?
उत्तर – यदा कदा पढ़णे कोसिस करदू, अर ये बारा मा अपणा बेटा ‘सचिन राणा‘ से जानकारी लेंदु रैंदू किलैकि सु एक युवा फ़िल्म मेकर का दगड़ बहुभासी रचनाकार छ, सु जादाकर कविता हिंदी अर अंग्रेजी मा लिखदो अर कानी स्क्रिप्ट संवाद गढ़वाळी, हिंदी, अंग्रेजी आदि मा ल्योखदो। तैकी अंग्रेजी कविता विदेशी पत्रिकों मा बि छपदी। गढ़वली कविता वास्ता सु प्रयासरत छन, अर मि उणि अति गर्व होलु जै दिन तैकी गढ़वली कविता संगरे आलो।
भीष्म कुकरेती: भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां ?
उत्तर – गुरूजी भैर देसूं साहित्य वास्ता कुछेक राष्ट्रीय अर अंतराष्ट्रीय पत्रिकाओं तैं पढ़दू जु हिंदी मा होंदी बाकी वर्तमान मा गुगल AI ट्रांसलेट एक बहुत बड़िया साधन छ अंतराष्ट्रीय जानकारी वास्ता।
भीष्म कुकरेती : आप हिंदी, अंग्रेजी, या हौरी भाषाओं क क्वा क्वा कविता , कथा तैं गढवाली मा अनुवाद करण चैल्या ?
उत्तर – गुरूजी अनुवाद मा अज्यूँ जादा ध्यान नि दिनी पर कुछ संताली कविता, कुछेक हिंदी अर अर द्वी तीन रुसी कानियों अनुवाद जरूर करि मिन ज्व हिंदी मा छायी, अग्नेँ माँ सरस्वती यनु आश्रीवाद रैलो त अनुवाद मा बि जरूर कोसिस करुला।
भीष्म कुकरेती: आपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?
उत्तर – ढ़ोल दमुवा भौंकर जु मेरा होर पोर रैंदा छौ।
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